हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन धर्म और बौद्ध धर्म में परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है। कहते हैं परिक्रमा करने से व्यक्ति के तमाम तरह के पाप दूर होते हैं और जीवन से समस्याओं का साया भी दूर होने लगता है। यही वजह है कि, मंदिरों में परिक्रमा के साथ-साथ हिंदू धर्म में तो मांगलिक कार्यों में भी परिक्रमा या फेरी लगाने की परंपरा है।
आपको जानकर शायद अचरज हो लेकिन सभी देवी देवताओं की परिक्रमा अलग ढंग और प्रकार से की जाती है। इस आर्टिकल के माध्यम से जान लीजिये परिक्रमा के दस प्रकार क्या होते हैं और किन देवी-देवताओं की कैसी परिक्रमा करनी चाहिए।
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अलग-अलग तरह की परिक्रमा और उनका महत्व
- देव मंदिर परिक्रमा: इस परिक्रमा का मतलब सीधे तौर पर जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम, शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग आदि की परिक्रमा से जोड़कर देखा जाता है।
- देव मूर्ति परिक्रमा: जब हम मंदिरों में जाकर भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान विष्णु, भगवान हनुमान, इत्यादि मूर्तियों की परिक्रमा करते हैं तो इन्हें देव मूर्ति परिक्रमा कहा जाता है।
- नदी परिक्रमा: तीसरी परिक्रमा नदी परिक्रमा होती है जिसे बेहद ही मुश्किल कहा जाता है। इसमें प्रमुख और पावन नदियों जैसे मां नर्मदा, सिंधु नदी, सरस्वती, गंगा, यमुना, सरयू, शिप्रा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, इत्यादि नदियों की परिक्रमा का विधान बताया गया है। नदियों की परिक्रमा करने वालों को सालों साल पहाड़ों जंगलों आदि से होकर गुजरना पड़ता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि यह परिक्रमा बिल्कुल भी आसान नहीं होती है।
- पर्वत परिक्रमा: नाम से ही जाहिर है यह परिक्रमा पर्वतों की होती है। क्योंकि भारत देश में पर्वत भी पूजे जाते हैं ऐसे में लोग कई बार पर्वतों की भी परिक्रमा करते हैं। जैसे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, गिरनार पर्वत की परिक्रमा, कामदगिरी, मेरु पर्वत, हिमालय, नीलगिरी, तिरुमलै आदि पर्वतों की परिक्रमा।
- वृक्ष परिक्रमा: हिंदू धर्म में जो भी वृक्ष या पेड़ पौधे पूजनीय माने जाते हैं लोग उनकी भी परिक्रमा करते हैं और इसे वृक्ष परिक्रमा कहा जाता है। जैसे पीपल के पेड़ की परिक्रमा की जाती है, बरगद के पेड़, तुलसी के पौधे की परिक्रमा की जाती है, इत्यादि। इस परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है।
- तीर्थ परिक्रमा: तीर्थ स्थल वाले शहरों की परिक्रमा को तीर्थ परिक्रमा कहा गया है। जैसे चौरासी कोस की परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन, पंचकोशी प्रयाग यात्रा, इत्यादि।
- चार धाम परिक्रमा: हिंदू धर्म के प्रमुख चार धामों की परिक्रमा को चार धाम परिक्रमा कहा जाता है। जैसे छोटी चार धाम की यात्रा जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, और गंगोत्री आते हैं या फिर बड़ी चार धाम की यात्रा जिसमें बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ और रामेश्वरम की यात्रा करना आता है।
- भरतखंड परिक्रमा: जब पूरे भारत की परिक्रमा की जाती है तो इसे भारत खंड परिक्रमा कहते हैं। मुख्य तौर पर संत और साधु यह यात्रा करते हैं। यह यात्रा बेहद ही मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होती है। यह सिंधु से शुरू होकर कन्याकुमारी में खत्म होती है।
- विवाह परिक्रमा: हिंदू धर्म की शादियों में वर और वधू अग्निकुंड के चारों तरफ सात बार परिक्रमा करते हैं। इसके बाद ही विवाह संपन्न होता है और इसे विवाह परिक्रमा कहा जाता है।
- शव परिक्रमा: अंतिम में आता है शव परिक्रमा। इसमें हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उस व्यक्ति के मृत शरीर की परिक्रमा की जाती है जिसे शव परिक्रमा कहा जाता है।
हर देवी देवताओं की है अलग परिक्रमा नियम
- भगवान शिव: आधी परिक्रमा
- माँ दुर्गा: एक परिक्रमा
- भगवान गणेश और हनुमान जी की तीन परिक्रमा
- भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा
- सूर्य देव की चार परिक्रमा
- पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा
- शनिदेव की सात परिक्रमा
परिक्रमा करने का सही तरीका
जब भी देवी-देवताओं की परिक्रमा करें तो इस बात को सुनिश्चित करें कि, परिक्रमा दायें की तरफ से शुरू करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि देवीय शक्ति की अभामंगल की गति हमेशा दक्षिणावर्ती होती है। जानकार बताते हैं कि, उलटी परिक्रमा करने से व्यक्ति को इसके दुष्प्रभाव भी झेलने पड़ सकते हैं।
परिक्रमा करते समय पढ़ें ये मंत्र
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
इस मंत्र का सरल शब्दों में अर्थ हुआ कि, ‘हे भगवान! जाने अनजाने में मेरे द्वारा किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप इस प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। भगावन मुझे अच्छी बुद्धि प्रदान करें।’
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