कब है, शीतला षष्ठी व्रत, जाने पूजा का महत्व, कथा

हिंदू धर्म में संतान सुख की प्राप्ति के लिए कई व्रत किए जाते हैं, उन्हीं में से एक है शीतला षष्ठी के दिन किया जाने वाला शीतला माता का व्रत| कहते हैं इस दिन व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, और संतान सदैव निरोग रहती है| साल 2021 में यह व्रत बुधवार के दिन 3 फरवरी को रखा जाएगा| तो आइए नीचे दिए गए इस लेख में जानते है,  शीतला षष्ठी व्रत की पूजा विधि और पौराणिक कथा| 

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शीतला षष्ठी व्रत का महत्व

हिन्दू धर्म में माना गया है कि, शीतला षष्ठी के दिन यदि कोई महिला संतान सुख की कामना कर पूरे विधि-विधान से शीतला माता का व्रत करती है, तो शीतला माता उसकी सूनी गोद अवश्य भरती हैं| ऐसी भी मान्यता है कि, जब छोटे बच्चों को दाने निकल आते हैं, तो घर के बड़े-बुजुर्ग शीतला माता का प्रकोप मानते हैं|  शीतला माता को शांत और प्रसन्न करने के लिए भी इस व्रत को किया जाता है|  

ध्यान रखने योग्य बातें

  • व्रती महिला प्रातः काल उठकर ठंडे पानी से स्नान करें|
  • शीतला माता की पूजा कर संतान सुख की कामना करें|
  • रात का रखा बासी भोजन करें |
  • दिन भर कोई भी गरम और ताजी वस्तु का सेवन ना करें|
  • शीतला षष्ठी व्रत के दिन घर में चूल्हा ना जलाएं |
  • शीतला षष्ठी के दिन चूल्हे की भी पूजा की जाती है, इसलिए चूल्हा जलाने की मनाही है|

शीतला षष्ठी व्रत की रोचक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक नगर में एक ब्राह्मण परिवार रहता था| ब्राह्मण के सात बेटे थे, उसने अपने सभी सातों बेटों का बड़े धूमधाम से विवाह किया, परंतु काफी वक्त गुजरने के बाद भी उस ब्राह्मण के घर संतान प्राप्ति का योग नहीं बना| तभी ब्राह्मण के घर एक दिन एक बुढ़िया आई और उसने  ब्राह्मणी को अपनी सातों बहुओं के साथ शीतला माता का व्रत करने की सलाह दी| ब्राह्मणी ने बुढ़िया की बात मानते हुए शीतला षष्ठी के दिन पूरे नियम के साथ व्रत किया, और कुछ समय बाद उसकी बहुओं को संतान सुख की प्राप्ति हुई | 

उसके बाद हर बार शीतला षष्ठी के दिन अपनी सातों बहुओं के साथ ब्रह्मणी व्रत करने लगी, पर एक बार ब्राह्मणी और उसकी बहुओं ने व्रत के नियम का पालन नहीं किया, गर्म पानी से स्नान किया, ताज़ा भोजन ग्रहण किया, और घर में चूल्हा भी जलाया| उसी रात ब्राह्मणी को एक भयानक सपना आया और उसने देखा की उसके परिवार के सभी सदस्य मर गए हैं| वह घबराती हुई जंगल में उसी बुढ़िया के पास पहुंची, तो उसने देखा वह बुढ़िया भी आग की लपटो में जल रही है| उस बुढ़िया ने ब्राह्मणी से कहा कि, तुम एक मिट्टी के बर्तन पर दही का लेप करोगी, तो मेरी ज्वाला शांत हो जाएगी, और मैं फिर से स्वस्थ्य हो जाऊँगी| 

ब्राह्मणी  ने वैसा ही किया जैसा बुढ़िया ने बताया| ब्राह्मणी  को अपनी गलती का एहसास हो गया, और उसने शीतला माता से क्षमा मांगते हुए परिवार के सदस्यों को पुन: जीवित करने की प्रार्थना की, जिसके बाद शीतला माता ने उस ब्राह्मणी को दर्शन दिया,और बोला, कि परिवार के सभी सदस्यों को दही का लेप करो| वह स्वस्थ्य हो जाएंगे| उसी दिन से शीतला माता के व्रत का महत्व बढ़ गया,और व्रती महिलाएं इस दिन संतान सुख और उनके निरोग होने की कामना करते हुए, सभी नियमों का पालन कर व्रत रखने लगी | 

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