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नवरात्रि के नौवें और आख़िरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन को नवमी कहते हैं। बहुत से लोग इसी दिन पारणा भी करते हैं।
मान्यता है कि मां दुर्गा का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। माता सिद्धिदात्री की आराधना करने से जातक सभी प्रकार का ज्ञान आसानी से मिल जाता है और कभी कोई कष्ट नहीं होता है। नवमी के दिन कन्या पूजन करना भी पुण्यकारी माना गया है।
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तो चलिए आज इस लेख में आपको माँ सिद्धिदात्री से जुड़ी सभी जानकारी और साथ ही कन्या पूजन की विधि, नवरात्रि पारणा मुहूर्त और उससे जुड़ी सभी बातें बताते हैं –
नवरात्रि नवमी पूजा मुहूर्त
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का प्रारंभ 24 अक्टूबर दिन शनिवार, प्रातः 07 बज-कर 02 मिनट से हो रहा है, जो 25 अक्टूबर दिन रविवार को प्रातः 07 बज-कर 44 मिनट तक है। ऐसे में मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना रविवार की सुबह होगी।
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शरद नवरात्रि पारणा
पारणा का सीधा स्पष्ट मतलब होता है नौ दिनों तक चलने वाली शरद नवरात्रि का समापन हो जाना। शरद नवरात्रि का पारणा अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। हालाँकि पारणा के मुहूर्त को लेकर शास्त्रों में दो तरह के मत सामने आते हैं। जहाँ कुछ लोग नवमी को पारणा मानते हैं वहीं कुछ लोग दशमी के दिन पारणा करते हैं। दशमी के दिन पारणा करने वाले नवमी के दिन तक उपवास रखते हैं। हालाँकि शास्त्रों के अनुसार बताएं तो, अगर नवमी तिथि दो दिन पड़ रही हो, तब उस स्थिति में पहले दिन उपवास रखा जाएगा और दूसरे दिन पारणा होगा। नवमी नवरात्रि पूजा का अंतिम दिन है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की षोडषोपचार पूजा करके कन्या पूजन करना चाहिए।
शरद नवरात्रि पारणा 2020 की तारीख व मुहूर्त
25 अक्टूबर, 2020 (रविवार)
नवरात्रि पारणा का समय :07:44:04 के बाद से
(शरद नवरात्रि पारणा का मुहूर्त Delhi, India के लिए अपने शहर के अनुसार मुहूर्त जानें)
नवरात्रि पारणा का महत्व
हिंदू मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब महिषासुर नामक एक दैत्य ने तीनों लोक में उत्पात मचाया था। तब देवता भी इस दैत्य से परेशान आ गए थे और वो माँ दुर्गा की शरण में गए थे। देवताओं को और पूरी दुनिया को महिषासुर से मुक्ति दिलाने के लिए देवी ने महिषासुर से युद्ध किया था। माँ दुर्गा और महिषासुर का यह घोर युद्ध लगातार नौ दिनों तक चला जिसके बाद माता ने राक्षस का वध कर दिया।
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ऐसे में नवरात्रि का यह पावन त्यौहार और इसका नौवां दिन राक्षस महिषासुर पर देवी की शक्ति, ताकत और ज्ञान के साथ जीत का भी प्रतीक माना गया है। इसलिए, नवरात्रि पारण को नई और अच्छी शुरुआत के लिए भी शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि जो कोई भी भक्त माता का नौ दिनों तक उपवास रखता है, उनकी विधि-पूर्वक पूजा करता है और फिर दशमी तिथि में पारण करता है, ऐसे लोगों के माँ दुर्गा दुख हर लेती हैं, और उनके जीवन के सभी अ-मंगल को दूर कर देती हैं। माता की सच्ची भक्ति और पूजन करने से इंसान के जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
माँ का नाम सिद्धिदात्री क्यों पड़ा?
नवरात्रि के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही अनेकों सिद्धियां प्राप्त की थीं। मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हो गया था। जिस वजह से शिव जी का नाम ‘अर्द्धनारीश्वर’ पड़ा। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, गरिमा, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वाशित्व आठ सिद्धियां हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर भक्त सच्चे मन से कोई जातक मां सिद्धिदात्री की पूजा करें, तो ये सभी सिद्धियां मिलती हैं। माँ सिद्धिदात्री के नाम का अर्थ होता है, सिद्धी का मतलब “आध्यात्मिक शक्ति” और दात्री का मतलब “देने वाली”, अर्थात् सिद्धी देने वाली। देवी सिद्धिदात्री भक्तों के अंदर की बुराइयों व अंधकार को दूर करती हैं और उनके अंदर ज्ञान का प्रकाश भरती हैं, इसीलिए माँ को सिद्धिदात्री कहा जाता है।
ऐसा है माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप
अगर मां सिद्धिदात्री के स्वरूप की बात करें, तो इनका स्वरूप बहुत ही सौम्य व आकर्षक है। देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें मां ने अपने दाहिने हाथों में से एक हाथ में चक्र और दूसरे हाथ में उन्होंने गदा धारण किया है, जबकि बाएँ हाथ में से एक हाथ में कमल का फूल, और दूसरे हाथ में शंख धारण किया है। माँ सिद्धिदात्री का वाहन शेर है और माँ कमल पर विराजमान हैं। देवी सिद्धिदात्री का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।
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मां सिद्धिदात्री की पूजा में करें इस मंत्र का जाप
देवी सिद्धिदात्री की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप ज़रूर करें, इससे माता जल्द ही प्रसन्न होती है।
मंत्र | ओम देवी सिद्धिदात्र्यै नमः। |
मंत्र | अमल कमल संस्था तद्रज:पुंजवर्णा, कर कमल धृतेषट् भीत युग्मामबुजा च। |
बीज मंत्र | ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:। |
ऐसे करें सिद्धिदात्री माँ की पूजा
- नवरात्रि के नौवें दिन यानी कि नवमी के दिन सबसे पहले स्नान कर साफ़ वस्त्र धारण करें। मां सिद्धदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं, इसीलिए इनकी पूजा ब्रह्मा मुहूर्त में करना उत्तम होता है।
- अब एक साफ़ जगह पर कपड़ा बिछा कर मां की फोटो या प्रतिमा को स्थापित करें।
- इसके बाद की माँ के सामने दिया जलाएं।
- अब एक फूल लेकर हाथ जोड़े और मां का ध्यान करें।
- मां सिद्धिदात्री को माला पहनाएं, लाल चुनरी चढ़ाएं और श्रृंगार की चीज़ें अर्पित करें।
- अब मां के सामने फूल, फूल और नैवेद्य आदि चढ़ाएं।
- इसके बाद देवी सिद्धिदात्री की आरती उतारे।
- मां को खीर व नारियल का भोग लगाएँ। इसके अलावा आज के दिन मां को तिल का भोग लगाने से आपके जीवन में होने वाली अनहोनी से आपका बचाव होगा।
- नवमी के दिन चंडी हवन करना शुभ होता है और इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। नीचे आपको कन्या पूजन की विधि बताएँगे।
- पूजा समाप्त होने के बाद अंत में घर के सदस्यों और आस-पड़ोस में प्रसाद बांटें।
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इस दिन है कन्या पूजन का विधान
इस पावन अवसर पर कुछ लोग कन्या पूजन भी करते हैं। कन्याओं को मां दुर्गा का रूप माना जाता है।
- कन्या पूजन के लिए सबसे पहले अपने यहां आप 9 कन्याओं और एक बालक को आमंत्रित करें।
- कन्याओं के सबसे पहले पैर धोएं, उन्हें तिलक लगायें और फिर स-सम्मान उन्हें भोजन परोसें।
- अब उनकी पूजा करें और आरती उतारें।
- इस दिन स्नान आदि करके पूरी, चना, हलवा, इत्यादि स्वादिष्ट भोजन बनाएँ। इस अन्न का भोग माँ दुर्गा को अवश्य लगायें।
- भोजन हो जाने के बाद उनके चरण छूकर आशीर्वाद लें और भेंट देकर उनको खुशी-खुशी विदा करें।
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इस रंग का वस्त्र पहनकर करें माँ सिद्धिदात्री की पूजा
मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री को लाल व पीला रंग बेहद पसंद है। ऐसे में माता की पूजा के दौरान यदि जातक लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें, तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है और माता का आशीर्वाद मिलता है।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा से होने वाले लाभ
नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना से जातक के सभी शोक, भय और रोगों का नाश हो जाता है। श्रद्धा पूर्वक माता की पूजा करने से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां सिद्धिदात्री मोक्ष दायिनी भी हैं, इसीलिए जीवन में होने वाली अनहोनी से भी रक्षा करती हैं। महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना करने से देवी सिद्धिदात्री सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं, इसीलिए देवी की पूजा से केतु ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
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