धन त्रयोदशी पर इन सरल उपायों से करें यमराज की आराधना मिलेगा आशीष !

हिन्दू पंचांग अनुसार धनतेरस के दिन धन्वन्तरी त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस होता है। इसके साथ ही दीपावली का पांच दिवसीय पर्व भी इसी दिन से आरंभ होता है। यही वो दिन होता है जब लोग अपने घरों में भगवान गणेश और मां लक्ष्मी लाते हैं। इस दिन विशेष रूप से कोई किसी को उधार नहीं देता है। इस दिन लोग दिल खोलकर घर के लिए खरीदारी करते भी दिखाई देते हैं। 

धनतेरस पर की जाती है मृत्यु के देवता की पूजा 

इस दिन हर घर में माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा-आराधना के साथ-साथ मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा किये जाने का विधान है। माना जाता है कि सालभर में यही एक दिन होता है जब लोग मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करते हैं। यमराज की पूजा के लिए रात का समय उत्तम माना जाता है। इसलिए धनतेरस वाले दिन रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है। 

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धनतेरस पर यमराज पूजन का महत्व 

धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ इस दिन का ऐतिहासिक महत्व भी होता है। माना जाता है कि जो भी परिवार धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान करता है, उस परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। इसके साथ ही इसी दिन से घरों में दीपावली की सजावट का कार्य भी शुरू कर दिया जाता है। चलिए अब जानते हैं वो कुछ सरल उपाय जिन्हे धनतेरस के दिन यमराज पूजन के लिए विशेष रूप से हमे अपनाने की सलाह दी जाती है। 

-धनतेरस के दिन सबसे पहले घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर किसी भी अन्न से जैसे: साबूत गेहूं या चावल आदि, की ढेरी बनाए या बिछाएँ। -अब अन्न की उस ढेरी पर एक अखंड दीपक रखें। 

-शास्त्रों अनुसार माना गया है कि इस प्रकार द्वार पर दीपदान करने से यम देवता के पाश और नरक से परिवार को मुक्ति मिलती है।

-इसके अलावा यदि आप किसी कारणवश ये पूरा उपक्रम ना कर पाएँ तो आप घर के मुख्य द्वार पर यमराज के लिए आटे का एक दीपक बनाकर अनाज की ढेरी पर ज़रूर रखें।

-इसके बाद रात के समय घर की किसी स्त्री द्वारा दक्षिण दिशा में एक बड़े दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाएं।

-इस दौरान एक दीपक घर के मंदिर में हर वक़्त जलाकर रखें। 

-रात के समय दीप के साथ जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि से यमराज का पूजन करें।

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मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।

त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम।

Dharma

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