पापकुंशा एकादशी एक ऐसा व्रत जिसे सच्चे मन से करने से व्यक्ति के सारे पाप मिट जाते हैं। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को “पापांकुशा एकादशी” कहते हैं। महाभारत काल में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्त्व बताया था। इस एकादशी पर भगवान ‘पद्मनाभ’ की पूजा की जाती है। पाप रूपी हाथी को इस व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इस एकादशी का नाम ‘पापांकुशा एकादशी’ हुआ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पापांकुशा एकादशी के व्रत से व्यक्ति को कठिन तपस्या के बराबर पुण्य मिलता है, अर्थ एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन भगवान की भक्ति करने से मन शुद्ध होता है और व्यक्ति में अच्छे गुणों का समावेश होता है। कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से करता है, तो उसे इसके प्रभाव से अनेकों अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है। चलिए आज पापांकुशी एकादशी के दिन आपको इस लेख के माध्यम से इस व्रत की पूजा विधि बताते है, ताकि आप भी इस व्रत को सच्चे मन से कर अपने पापों को कम कर सके।
पापाकुंशा एकादशी व्रत पूजा विधि
- पापांकुशी एकादशी व्रत के नियमों का पालन एक दिन पहले यानि दशमी तिथि से ही करना चाहिए। दशमी को सात तरह के अनाज बिलकुल न खाएं जैसे- गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल न। ऐसा इसीलिए करते हैं, क्योंकि इन सातों अनाज की पूजा एकादशी के दिन की जाती है।
- एकादशी वाले दिन पर प्रात:काल उठकर स्नान आदि के बाद सबसे पहले व्रत का संकल्प लें।
- संकल्प लेने के बाद घट स्थापना करें और एक कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर सच्चे मन से उनकी पूजा करें और उन्हें धूप, दीप,नारियल और पुष्प अर्पित करें।
- पूजा के बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अन्न का दान करने के बाद व्रत खोलें।
पापाकुंशा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहा करता था। उसने अपनी पूरी जिंदगी गलत कामों में जैसे कि हिंसा,लूट-पाट, मद्यपान और झूठे भाषणों में व्यतीत कर दी। जब उसके जीवन का आखिरी समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी। यमदूत ने क्रोधन को इस बात की जानकरी दे दी कि कल उसके जीवन का अंतिम दिन है। मृत्यु के डर से भयभीत क्रोधन महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा। महर्षि ने क्रोधन की दशा देख उसपर दया दिखा कर उससे पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने को कहा। इस तरह पापाकुंशा एकादशी का व्रत-पूजन करने से क्रूर बहेलिया को भी भगवान की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
ज़रूर ध्यान रखें इन बातों का
पापाकुंशा एकादशी के दिन भूलकर भी चावल और भारी खाद्य का सेवन न करें। वहीं रात के समय भगवान की पूजा उपासना करनी चाहिए। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण और भजन-कीर्तन आदि करने का विधान है। व्रत करने वाले व्यक्ति को क्रोध नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए और अपने आचरण पर नियंत्रण रखना चाहिए। इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ सोना, तिल, गाय, अन्न, जल, छाता और जूते का दान करने से पूर्व जन्म के भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
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