29 सितंबर से नवरात्रि का आगाज हो चूका है और साथ ही कई जगहों पर रामलीला का जश्न भी शुरू हो गया है। माना जाता है कि यही वो समय है जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। तभी से इसी कहानी को रामलीला के रूप में दिखाया जाता है। लेकिन रामलीला में एक ऐसी चीज़ है जो दिखाई नहीं जाती है और वो है “अकाल बोधन”। अकाल बोधन में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। यह मुख्यतः बंगाल में आश्विन माह में की जाती है। आप में से बहुत कम लोग ही अकाल बोधन के बारे में जानते होंगे। तो चलिए आज अपने इस लेख में आपको बताते हैं कि आखिर अकाल बोधन है क्या और इसका भगवान श्रीराम से क्या संबंध है।
क्या है अकाल बोधन?
आश्विन माह में मां दुर्गा के आह्वान को बोधन, काल बोधन या अकाल बोधन कहते हैं। यह संस्कृत के दो शब्दों से बना है, अकाल जिसका अर्थ होता है “असमय” और बोधन यानि “आह्वान या पूजन”। अकाल बोधन की क्रिया षष्ठी के दिन शाम के समय की जाती है। मुख रूप से बोधन से तात्पर्य होता है नींद से जगाना। मां दुर्गा को इस मौके पर नींद से जगाया जाता है। दरअसल हिंदू मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवता दक्षिणायान काल में निंद्रा अवस्था में होते हैं। चूंकि दुर्गा पूजा का उत्सव साल के मध्य में यानि दक्षिणायान काल में आता है इसलिए देवी दुर्गा को बोधन के द्वारा नींद से जगाया जाता है।
कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने युद्ध से पहले आराधना करके देवी दुर्गा को जगाया था और उनकी पूजा की थी। इसके बाद ही भगवान राम ने रावण का वध किया था। चूंकि देवी दुर्गा को असमय ही नींद से जगाया जाता है, इसलिए इस क्रिया को अकाल बोधन के नाम से जाना जाता हैं।
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कैसे होती है बोधन की परंपरा ?
बोधन की यह परंपरा भगवान राम द्वारा शुरू कि गयी थी। अकाल बोधन में षष्ठी के दिन शाम के समय देवी दुर्गा की पूजा होती है। बोधन की परंपरा में सबसे पहले किसी कलश या अन्य पात्र में जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे रखा जाता है। शिव पूजन में भी बिल्व पत्र का बड़ा महत्व होता है। उसके बाद बोधन की क्रिया में मां दुर्गा को निंद्रा से जगाने के लिए प्रार्थना करते हैं। बोधन के बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा पूरी की जाती है। माँ दुर्गा की वंदना को ही आह्वान के तौर पर भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना करते हैं, जिसे आह्वान कहा जाता है। आह्वान को ही अधिवास के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान राम द्वारा शुरू की गयी इस प्रथा को आज भी भक्तगण हर्षोल्लास से मनाते आ रहे हैं। आशा करते हैं अकाल बोधन के बारे में दी गयी यह जानकरी आपको पसंद आयी होगी।
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