बंगाल में क्यों खेलती हैं महिलाएं ‘सिंदूर खेला’?

नवरात्रि के नौ दिन तक मां दुर्गा की पूजा और भक्ति होती है और 10वें यानी आखिरी दिन जिसे हम “विजयदशमी” के नाम से जानते हैं। दशमी को लेकर देश के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग मान्याताएं होती हैं। इस दिन बंगाल में सिंदूर खेलने की परंपरा होती है, जिसे “सिंदूर खेला” के नाम से जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पंडालों में मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। दशमी पर सिंदूर लगाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। खासतौर से बंगाली समाज में “सिन्दूर खेला” का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा करीब चार सौ साल पुरानी है। चलिए आपको आज अपने इस लेख में “सिन्दूर खेला” से जुड़ी कुछ मज़ेदार बातें बताते हैं –

क्या है सिंदूर खेला ?

सिंदूर खेला शादीशुदा महिलाओं का त्योहार माना जाता है। हिन्दू धर्म में सिंदूर का बहुत महत्व होता है, इसे महिलाओं के सुहाग की निशानी माना गया है। मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व‍ है। कहते हैं कि सिंदूर मां दुर्गा के शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है, इसलिए दशमी वाले दिन सुहागिन महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनती है, और मांग में ढेर सारा सिंदूर भर कर पंडाल जाती है, जहाँ वे मां दुर्गा को उलूध्‍वनी निकालकर विदा करती हैं। सभी शादीशुदा महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं। उसके बाद माँ को पान और मिठाई का भोग लगाती है, और आखिर में एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिन्दूर लगाने की इसी प्रथा को सिन्दूर खेला कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला में शामिल होती हैं, उनके पति की उम्र लम्बी होती है और उनका सुहाग सलामत रहता है।

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कैसे करते हैं सिन्दूर खेला ?

दशमी के दिन मां दुर्गा को विसर्जन से पहले उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता है। सिंदूर खेला में सबसे पहले पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाते हैं। इसके बाद माता रानी को मिठाई का भोग लगाते  हैं। और आखिर में सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर खेलकर पति के लम्बे उम्र और उनकी खुशहाली की कामना करती हैं। इसके बाद लोग ढाक की ताल पर नाचते झूमते मां दुर्गा को विसर्जन के लिए ले जाते हैं, और अगले साल फिर से आने की प्रार्थना करते हैं।

सिंदूर खेला से जुड़ी मान्‍यता

मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। कहते हैं कि जिस तरह से एक लड़की जब अपने मायके आती है, तो उसे खूब प्यार मिलता है, उसकी सेवा की जाती है। उसी तरह माँ दुर्गा के लिए भी जगह-जगह पंडाल लगते हैं और उनकी सेवा की जाती है। जब मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, तो उनकी मांग को सिंदूर से भर कर ही उन्हें विदाई देते हैं। 

पहले के समय में सिंदूर खेला में किसी भी विधवा, तलाक़शुदा, किन्नर और नगरवधुओं को शामिल नहीं किया जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में हुए समाजिक बदलाव की वजह से अब ये भेदभाव खत्म होते जा रहा और सिंदूर खेला में सभी महिलाओं की भागीदारी देखी जाती है। 

तो उम्मीद है कि इस लेख में “सिंदूर खेला” के बारे में दी गयी जानकारी आपको पसंद आयी होगी। एस्ट्रोसेज से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद ! 

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