हिन्दू धर्म के अनुसार हर साल पंद्रह दिनों के समय को पितृपक्ष माना जाता है। इस दौरान विशेष रूप से पितरों के श्राद्ध करने की प्रथा है। बता दें कि पंद्रह दिनों के इस समय को श्राद्ध पक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान विशेष रूप से पितरों और पूर्वजों की पूजा अर्चना कर उन्हें श्रद्धा अर्पित की जाती है। आज हम आपको विशेष रूप से बताने जा रहे हैं कि आखिर पितरों का श्राद्ध क्यों किया जाता है। आइये जानते हैं पितृपक्ष और श्राद्ध विधि के बारे में विस्तार से।
श्राद्ध या पितृपक्ष का महत्व
आपकी जानकारी के लिए बता दें की पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध क्रिया मुख्य रूप से अपने पूर्वजों, पितरों और कुलदेवता के प्रति विशेष रूप से श्रद्धा अर्पित करना होता है। अब यहाँ ये समझ लेना ख़ासा जरूरी है कि आखिर पितर कहते किसे हैं। बता दें कि मुख्य रूप से जब कोई बुजुर्ग महिला व पुरुष, बच्चे या किशोर इस दुनिया को छोड़कर चले जाते हैं तो उन्हें पितर कहा जाता है। उनकी आत्मा की शांति के लिए ही पितृपक्ष के दौरान विशेष पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है जिस परिवार के पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है उनके घर में सुख समृद्धि की कमी रहती है। माना जाता है श्राद्ध के दौरान पितरों की पूजा अर्चना करने से उनका आशीर्वाद परिवार के ऊपर बना रहता है और हर काम में उनका साथ मिलता है।
इस साल कब से शुरू है पितृपक्ष
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष मुख्य रूप से भादो माह की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होकर आश्विन माह की अमावस्या तिथि को समाप्त होगा। वास्तव में आश्विन माह में आने वाले कृष्ण पक्ष को ही पितृपक्ष कहा जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार कृष्ण या शुक्ल पक्ष में जिस तारीख़ को व्यक्ति का देहांत होता है, पितृपक्ष में उसी तिथि को उनके लिए श्राद्ध क्रिया करनी चाहिए।
श्राद्ध से जुड़ी इन तथ्यों के बारे में भी अवश्य जान लें
- बता दें कि यदि किसी की मृत्यु चतुर्दशी तिथि को हुई हो तो उस व्यक्ति का श्राद्ध कभी भी चतुर्दशी को नहीं करना चाहिए बल्कि पितृपक्ष के दौरान त्रयोदशी या श्राद्ध के आखिरी दिन अमावस्या तिथि को करना चाहिए।
- आकस्मिक या किसी दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हुए व्यक्ति का कभी भी उसी तिथि को नहीं करनी चाहिए बल्कि ऐसे मृतकों का श्राद्ध हमेशा चतुर्दशी तिथि को ही की जानी चाहिए।
- यदि किसी सुहागिन महिला की मृत्यु सामान्य रूप से हुई हो तो उनका श्राद्ध पितृपक्ष के दौरान पड़ने वाले नवमी तिथि को की जानी चाहिए। इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता की उनकी मृत्यु किस तिथि को हुई थी। अगर वो सुहागिन थी तो उनका श्राद्ध नवमी तिथि को ही की जानी चाहिए।
- यदि आपके पूर्वज या पितर सन्यासी थे तो आपको उनका श्राद्ध पितृपक्ष की द्वादशी तिथि को ही करनी चाहिए। भले ऐसे पूर्वजों की मृत्यु किसी भी दिन हुई हो लेकिन उनका श्राद्ध हमेशा पितृपक्ष के द्वादशी तिथि को ही की जानी चाहिए।
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