इस साल आने वाले 2 सितंबर से देश भर में गणेश जी के जयकारे “गणपति बप्पा मोरया ” की गूँज हर जगह सुनाई देगी। गणेश चतुर्थी के दस दिनों का ये समय विशेष रूप से गणेश पूजा और गणेश आरती में मग्न रहने का है। गणेश जी को खासतौर से महाराष्ट्र में बप्पा कहकर पुकारा जाता है और गणेश चतुर्थी का त्यौहार भी वहां काफी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। हालांकि अब इस त्यौहार को पूरे देश में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाने लगा है। आज हम आपको विशेष रूप से गणपति बप्पा मोरया जयकारे के पीछे छिपे मुख्य कहानी से अवगत कराने जा रहे हैं। कहते हैं कि गणेश जी के इस जयकारे में उनके एक परम् भक्त का नाम भी शामिल है।
जानिए “गणपति बप्पा मोरया ” का अर्थ
गणेश चतुर्थी का त्यौहार 2 सितंबर से लेकर 12 सितंबर तक मनाया जाएगा। इस बार गणपति पूरे ग्यारह दिनों तक आपके घर में विराजमान होंगें और ग्यारहवें दिन उनका विसर्जन होगा। इस दौरान “गणपति बप्पा मोरया ” के जयकारों से वातावरण में गणेश भक्ति की सुगंध हर तरफ महसूस की जा सकेगी। विशेष रूप से महाराष्ट्र के रहने वालों को छोड़कर शायद की किसी को मालूम हो की आखिर गणपति मोरया का विशेष अर्थ क्या है। वास्तव में “गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया, पुढ़च्यावर्षी लवकरया” का अर्थ है कि “हे मंगलकारी परमपिता गणेश जी आप अगले साल फिर आना और जल्दी आना। “
गणपति बप्पा मोरया के जयकारे में लिया जाता है उनके इस भक्त का नाम
आपको बता दें कि गणपति बप्पा के साथ मोरया शब्द विशेष रूप से उनके एक भक्त का नाम है। माना जाता है कि करीबन पांच सौ साल पहले गणेश जी का एक परम भक्त मोरया गोसावी हुआ करता था। मोरया महाराष्ट्र के चिंचवाड़ा गावं का रहने वाला था, उनका जन्म साल, 1375 में हुआ था। कहते हैं कि वो बचपन से ही गणेश जी के परम भक्तों में से एक थे। गणेश जी के प्रति उनकी श्रद्धा इसी बात से पता चल जाती है कि वो गणेश चतुर्थी के अवसर पर हर साल करीबन 100 किलोमीटर पैदल चलकर मोरपुर स्थित मयूरेश्वर मंदिर में गणेश जी के दर्शन के लिए जाते थे।
माना जाता है कि मोरया गोसावी जब करीबन 118 साल के हुए तो बुढ़ापे और कमजोरी की वजह से गणेश मंदिर जाने की उनकी प्रथा छूट गयी। इस बात से वो काफी उदास रहने लगे, लेकिन एक दिन गणेश जी ने उनसे सपने में आकर कहा की तुम कल सवेरे चिंचवाड़ा स्थित कुंड में मुझसे आकर मिलो। मोरया सुबह होते ही वहां गए और कुंड में स्नान करने के बाद जब बाहर निकले तो उनके हाथ में गणेश जी की एक मूर्ति थी। इस घटना के बाद से ही उस गावं के लोग गणेश जी के साथ ही मोरया का नाम भी लेने लगे। चिंचवाड़ा में मोरया गोसावी का एक मंदिर भी बनवाया गया जहाँ गणेश जी के साथ ही उनकी भी पूजा होती है।