हिन्दू पंचांग अनुसार, वर्ष 2019 में अजा एकादशी आज यानी 26 अगस्त, सोमवार को देश भर में मनाई जाएगी। इस एकादशी पर विशेष तौर से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने का विधान होता है। कई जगहों पर अजा एकादशी को कामिका एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी को लेकर मान्यता है कि यदि कोई इस दिन रात्रि जागरण कर इसका व्रत सच्ची श्रद्धा-भाव से रखता है, तो उस व्यक्ति को अपने इस जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसी कारण हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग इस दिन श्रद्धा पूर्वक तरीक़े से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं।
अजा एकादशी मुहूर्त
अजा एकादशी पारणा मुहूर्त | 13:39:49 से 16:14:19 तक 27, अगस्त को |
अवधि | 2 घंटे 34 मिनट |
हरि वासर समाप्त होने का समय | 10:33:05 पर 27, अगस्त को |
अजा एकादशी के व्रत का महत्व
समस्त सभी एकादशी व्रत में से अजा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होती है। जहाँ हर महीने रखे जाने वाले एकादशी व्रत के दौरान व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखने की ज़रूरत होती है,उसी तरह अजा एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती हैं। अपनी पौराणिक और धार्मिक दोनों ही महत्ता के चलते यह व्रत प्राचीन समय से आज तक रखे जाने का विधान है। अजा एकादशी के व्रत रखने से व्यक्ति को अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले पुण्यों से भी अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन रखा जाने वाला व्रत न केवल व्यक्ति के मन को अंदर से निर्मल बनाता है बल्कि उसका हृदय भी शुद्ध कर उसे सदमार्ग की ओर चलते के लिए प्रेरित करता है।
अजा एकादशी का व्रत करते हुए इन बातों का रखें ध्यान
अजा एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति व्रत रखना चाहता है, उसके लिए शास्त्रों में कुछ विशेष नियम बताए गया हैं। व्यक्ति को इस व्रत का अधिक से अधिक फल पाने के लिए मुख्यरूप से इन नियमों का पालन करना चाहिए:-
- व्रत से एक दिन पूर्व, दशमी की रात्रि को मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए। क्योंकि माना जाता है कि जो भी व्यक्ति व्रत से पहले मसूर की दाल खाता है, उसे इस व्रत से शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है।
- इसके साथ ही इस दौरान आपको चने, करोदों आदि का सेवन भी व्रत से पहले नहीं करना चाहिए।
- व्रत वाले दिन शहद का सेवन करना भी बेहद अशुभ माना जाता है।
- दशमी और एकादशी के दिन व्रती को ख़ास तौर से ब्रह्माचर्य का पालन करना चाहिए, अन्यथा आपको भगवान विष्णु की कृपा की प्राप्ति नहीं होगी।
चलिए अब जानते हैं अजा एकादशी व्रत की सही पूजा विधि:-
- अन्य एकादशी के व्रत की ही तरह अजा एकादशी के व्रत के लिए भी सच्ची भावना से संकल्प लेने का विधान है।
- इस दिन सुबह जल्दी उठे और अपने सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर, स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद मंदिर की साफ़-सफाई कर उसमें लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।
- उस वस्त्र पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें।
- अब उस प्रतिमा को गंगाजल का छिड़काव कर शुद्ध कर लें।
- इसके पश्चात भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर सच्चे मन से व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- अब भगवान विष्णु जी की प्रतिमा के सामने धूप, दीप, नेवैद्य, फूल और फल अर्पित करें।
- इस दौरान मां लक्ष्मी की भी पूजा किये जाने का विधान है, इसलिए उन्हें भी पूजा सामग्री अर्पित करें।
- व्रत के दौरान व्रती को दिन भर उपवास रखना चाहिए। हालांकि अगर ऐसा संभव न हो तो फलाहार लिया जा सकता है।
- इसके बाद सच्ची भावना से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर उनकी आरती करें।
- इसके बाद शाम के समय उन्हें पंचमेवों से भोग लगाएँ।
- इस दौरान ध्यान रखें कि विष्णु जी को भोग लगाए जाने वाले भोजन में तुलसी का प्रयोग ज़रूर करें, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि तुलसी का प्रयोग करने से भगवान नारायण अति प्रसन्न होते हैं।
धार्मिक मान्यताओं अनुसार जो भी व्यक्ति अजा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से इन बातों का ध्यान रखते हुए पूजा करता है और उनका व्रत रखता है, तो भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। जिससे उसे अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।