संक्रांति हर महीने आती है और भाद्रपद महीने की संक्रांति 17 अगस्त यानि शनिवार के दिन पड़ रही है। यहाँ संक्रांति का अर्थ सूर्य के राशि परिवर्तन करने से है और शनिवार के स्वामी शनि देव हैं। लेकिन क्या आप यह जानते हैं सूर्य और शनि के बीच पिता-पुत्र का नाता होने के बावजूद भी दोनों के बीच गहरी शत्रुता है। आज हम इस खबर के माध्यम से यह जानेंगे कि सूर्य और शनि के शत्रुता क्यों है?
ऐसे हुई थी सूर्य देव और शनि देव के बीच शत्रुता
पौराणिक कथा के अनुसार, कहते हैं कि सूर्य देव का विवाह त्वष्टा की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ। दोनों के बीच विवाह तो हो गया लेकिन, सूर्य देव का तेज संज्ञा से सहन नहीं होता था। किंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे वह सूर्य के तेज को सहन करती रहीं। वैवस्त मनु, यम और यमी के जन्म के बाद संज्ञा सूर्य देव का तेज सहन करने में असमर्थ हो गईं। इस पर संज्ञा को एक उपाय सूझा और इस उपाय के तहत वह अपनी परछाई छाया को सूर्य देव के पास छोड़कर चली गईं।
इधर सूर्य देव को छाया पर जरा भी संदेह नहीं हुआ कि यह संज्ञा नहीं हुआ। अब सूर्य देव और छाया खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे उनके मिलन से सावर्ण्य मनु, तपती, भद्रा एवं शनि का जन्म हुआ। जब शनि छाया के गर्भ में थे छाया तपस्यारत रहते हुए व्रत उपवास करती थीं। कहते हैं कि अत्यधिक उपवास करने के कारण गर्भ में ही शनि देव का रंग काला हो गया।
जन्म के बाद जब सूर्य देव ने शनि को देखा तो उनके काले रंग को देखकर उसे अपनाने से इंकार करते हुए छाया पर आरोप लगाया कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता, लाख समझाने पर भी सूर्य देव नहीं माने। इसी कारण खुद के और अपनी माता के अपमान के कारण शनि देव सूर्य देव से वैरभाव रखने लगे।
ज्योतिष में शनि और सूर्य की शत्रुता के प्रभाव
यदि सूर्य और शनि की शत्रुता को ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो, यह ज्ञात होता है कि जब सूर्य ग्रह मेष राशि में उच्च का होता है तो शनि का स्थान वहाँ नीच का होता है वहीं तुला में अगर सूर्य नीच का होता है तो शनि वहाँ उच्च का होता है।
एक राशि में एक समय दोनों का टिकना बहुत मुश्किल होता है यदि किसी राशि में दोनों की युति हो रही हो तो दोनों के बीच परस्पर विरोध होता रहता है। इसी तरह सूर्य के साथ-साथ शनि उनके मित्र चंद्रमा से भी वैरभाव रखते हैं। सूर्य और शनि की स्थिति कष्टदायी अवश्य होती है लेकिन कई बार यह बड़ी सफलता भी लेकर आती है।