गुरूवार विशेष: यहां गुरु बृहस्पति को मिला था भगवान शिव से ये विशेष स्थान

यूँ तो भारत वर्ष में अनेकों मंदिर स्थापित हैं और सभी मंदिरों की अपनी कोई न कोई धार्मिक विशेषता ज़रूर होती है। इसी तरह जहाँ भारत के उत्तराखंड राज्य को देवभूमि कहा जाता है तो वहीं उत्तर प्रदेश का काशी भगवान शिव की नगरी के नाम से विश्वभर में विख्यात है। क्योंकि जितना काशी शहर मां गंगा के लिए प्रख्यात है उतना ही विश्वनाथ मंदिर के लिए भी ये प्रसिद्ध है। क्योंकि भगवान शिव की इस नगरी में बाबा विश्वनाथ के साथ-साथ यहाँ गुरुदेव बृहस्पति का मंदिर भी स्थापित है।

बृहस्पति को माना जाता है देवताओं का गुरु

ग्रह बृहस्पति का हमेशा से ही ज्योतिष शास्त्र में अपना एक अहम महत्व रहा है। इन्हे देवताओं के गुरु की उपाधि प्राप्त है और यही कारण है कि इन्हें गुरु कहा जाता है। इन्हे धर्म, ज्ञान, संतान और परोपकार आदि का कारक माना गया है। शुक्र देव की तरह ही गुरु की भी गिनती समस्त शुभ ग्रहों में की जाती हैं। हालांकि गुरु और शुक्र आपस में शत्रुता का भाव रखते हैं। क्योंकि शुक्र को दैत्यों का गुरु और बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा गया है। जिनकी कृपा से ही जातकों को उचित सलाह मिलती है, वरिष्ठ अधिकारियों का सहयोग मिलता है, जातक का व्यवसाय फलता-फूलता है और साथ ही जातक सही निर्णय लेने में समर्थ होता है। 

गुरु बृहस्पति की कृपा से होती है कई सुखों की प्राप्ति 

इसके साथ ही जिस भी कुंडली में बृहस्पति की स्थिति कमजोर होती है उस जातक को संतान सुख में देरी या कमी देखने को मिलती है। वैदिक शास्त्र में बृहस्पति को धनु और मीन राशि का स्वामित्व प्राप्त है और सूर्य, चंद्रमा व मंगल ग्रह से गुरु मित्रवत स्वभाव रखते हैं जबकि बुध और शुक्र से इनकी शत्रुता होती हैं। इसके अलावा शनि ग्रह के प्रति गुरु समानता का भाव रखते हैं। ऐसे में काशी के इस मंदिर का महत्व भी कई मायनों में ख़ास हो जाता है। 

भगवान शिव ने अपनी नगरी में दिया था बृहस्पति गुरु को विशेष स्थान 

जानकारी के लिए बता दें कि काशी का ये मंदिर कई सदियों पहले बनाया गया था। जिस कारण आज काशी को शिवशंकर का निवास स्थान माना जाता है और इसको लेकर कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने बृहस्पति गुरु के मंदिर को स्थापित किया गया था। काशी के प्रख्यात मंदिरों में इस मंदिर का नाम भी हमेशा से ही जोड़ा जाता रहा है।

काशी के सभी प्राचीन मंदिरों में से एक है गुरुदेव बृहस्पति का ये अनोखा मंदिर 

अगर प्रदेश के काशी की बात करें तो उसको लेकर ये माना जाता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव ने जब ये नगरी स्थापित की तो सभी देव इस मोक्ष नगरी में निवास करने के लिए उत्साहित थे। मान्यता है कि उस दौरान खुद देवों के देव महादेव ने गुरु बृहस्पति को यहां स्थान दिया था। जिसके बाद से ही आज तक गुरुदेव बृहस्पति के इस मंदिर का स्थान काशी के सभी प्राचीन मंदिरों में सबसे ऊंचा स्थान माना जाता है। 

गुरु देव की शांति के लिए लोग कराते हैं ग्रह पूजा 

चूँकि बृहस्पति देव को सभी नौ ग्रहों में से सबसे प्रमुख माना गया है। जिन्हे धन, और बुद्धि के देवता कहा गया है और उन्हें पीली वस्तुएँ बेहद पसंद हैं। ऐसे में बृहस्पति देव की इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए इस मंदिर में लोग अपनी प्रार्थना पूरी होने पर यहाँ आकर बृहस्पति देव को हल्दी-चंदन लगाते हैं। इसी के साथ जिन भी जातकों की कुंडली में बृहस्पति दोष होता है या उनकी कुंडली में बृहस्पति कमज़ोर होता है तो वो जातक भी इस मंदिर में आकर गुरु देव की शांति के लिए ग्रह पूजा करवाते हैं।

इस मंदिर में बृहस्पति गुरु होते हैं साक्षात विराजमान 

गुरु बृहस्पति के इस प्राचीन अनोखे मंदिर में गुरुवार के दिन पूजा का विशेष महत्व माना जाता है, इसलिए यहाँ मुख्य तौर पर गुरूवार के दिन लाखों की तादाद में श्रद्धालु बृहस्पति देव के दर्शन करने इस मंदिर में दूर-दूर से आते हैं। इसके साथ ही ज्योतिष शास्त्र की माने तो जिन लोगों पर बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं उन लोगों को अपने जीवन में वैवाहिक सुख, धन लाभ और संतान सुख की भरपूर प्राप्ति होती है। पौराणिक महत्ता के अनुसार माना जाता है कि इस मंदिर में स्वयं बृहस्पति गुरु साक्षात विराजमान हैं। ऐसे में जो लोग ग्रह दोष से पीड़ित होते हैं वो गुरुवार के दिन इस मंदिर में आकर विशेष विधि के साथ पूजा कर बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त कर करते हैं।

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