ज्योतिष विज्ञान में कुल नौ ग्रहों का वर्णन किया गया है। जिनमें से समस्त सभी ग्रहों में से चंद्र सबसे तेज गति से चलने वाला ग्रह है। जो हर ढाई दिन में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। ज्योतिष में चंद्र को व्यक्ति के मन का कारक बताया गया है। साथ ही इसे सबसे सुंदर और चमकीला ग्रह माना जाता है। आज हम आपको सोमवार के दिन चंद्र से जुड़ी कुछ खास मान्यताएं और तथ्य बताने जा रहे हैं।
चंद्र का हुआ था 27 नक्षत्रों से विवाह
हिन्दू धर्म में चंद्र ग्रह की उत्पत्ति के संबंध में कई कथाएं बताई गई हैं। उन्हीं पौराणिक मान्यताओं में से एक कथा के अनुसार जब ब्रह्माजी सृष्टि की रचना कर रहे थे तब उन्होंने अपने मानस पुत्र ऋषि अत्रि को अपनी शक्तियों से उत्पन्न किया था। उन्ही ऋषि अत्रि का विवाह आगे चलकर कर्दम मुनि की कन्या अनसूया से हुआ था। अत्रि और अनसूया के इस शादी से तीन पुत्र हुए- दुर्वासा ऋषि, भगवान दत्तात्रेय और सोम यानी चंद्र। आगे चलकर चंद्रदेव का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था। जिनके नाम वैदिक शास्त्रों में 27 नक्षत्र बताए गए हैं। इस लिए ही माना जाता है कि चंद्र जब इन सभी 27 नक्षत्रों का चक्कर लगा लेता है, तब एक मास पूरा होता है।
सोमवार का भगवान शिव और चंद्र से संबंध
एक अन्य मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो उसे डिवॉन के देव महादेव ने सृष्टि के कल्याण के लिए अपने कंठ में ग्रहण कर लिया था। जिसके बाद गले में विष की जलन को शांत करने हेतु उन्होंने चंद्र की शीतलता को पाने के लिए चंद्र देव को ही अपने मस्तक पर धारण कर लिया। इसलिए सोमवार का दिन भगवान शिव और चंद्र देव को अर्पित होता है।
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आखिर क्यों घटता-बढ़ता रहता हैं चंद्र का आकार
अगर कभी आपने गौर किया हो तो चंद्रमा को हमेशा दिन-प्रतिदिन घटते-बढ़ते ही देखा होगा। इसके पीछे भगवान श्रीगणेश से जुड़ी एक कथा बेहद प्रचलित है। उसी कथा के अनुसार एक बार गणेशजी कही से लौट रह थे। तभी चंद्रदेव गणेशजी के हाथी मुख को देखकर उसका मज़ाक बनाकर हँसने लगे। जिसके बाद गणेशजी ने क्रोधित होते हुए चंद्र देव को ये शाप दे दिया था कि अब से कोई भी चंद्र की सुंदरता को देख नहीं सकेगा। भगवान गणेश के गुस्से को देखते ही चंद्र देव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने भगवान गणपति से क्षमा याचना की गुहार लगाई। जिसके बाद जाकर कही गणेशजी का क्रोध शांत हुआ। शांत होने के बाद गणेश जी ने चंद्र देव से कहा कि हे चंद्र मेरा शाप प्रभावहीन नहीं हो सकता है, लेकिन अब माह में सिर्फ एक दिन तुम्हें कोई देख नहीं सकेगा और उस एक दिन के अलावा हर दिन सभी लोग तुम्हें संपूर्ण कलाओं के साथ देखने में सक्षम होंगे, जिससे तुम दिन-प्रतिदिन घटते-बढ़ते रहोगे। माना जाता है कि तभी से चंद्र अमावस्या के दिन दिखाई नहीं देता और पूर्णिमा पर पूरी कलाओं के साथ उदय होकर अपने अलग-अलग रंगों में नज़र आता है।
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विज्ञान अनुसार चंद्र के बदलते आकार के पीछे की असल वजह
हालांकि विज्ञान की दृष्टि से इसके लिए कुछ और ही तथ्य दिए जाते हैं। साइंस के अनुसार चंद्र पृथ्वी का उपग्रह है। जिस कारण जब भी चंद्र पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, तब ये पूरी तरह चमकता हुआ दिखाई देता है। माना गया है कि पृथ्वी और चंद्र के बीच की दूरी लगभग 384,403 किलोमीटर है। बता दें कि पृथ्वी जिस प्रकार अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाती है, ठीक उसी तरह चंद्र भी अपने अक्ष पर घूमते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाता है। इसी कारण चंद्र पर भी गुरुत्वाकर्षण बताया गया है। जिस कारण इसे पृथ्वी की एक परिक्रमा को पूरा करने में लगभग 27.3 दिनों का समय लगता है।
वहीं ज्योतिष में चंद्र को देवता का स्वरूप माना गया है जिन्हे कर्क राशि का स्वामित्व प्राप्त होता है। चंद्र को माता का कारक बताया गया है जो व्यक्ति के मन को नियंत्रित करने में सक्षम होता है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र कमज़ोर हैं तो वो जातक चंद्र के मंत्र “ऊँ सों सोमाय नम:” का जाप कर न केवल उसे बली बना सकता है बल्कि उसके प्रभाव को भी शुभ कर सकता है।