तो इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफ़े को पार्टी नहीं कर रही मंजूर

हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस पार्टी को मिली करारी हार के बाद से ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की हार का जिम्मा अपने ऊपर लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन पार्टी द्वारा उनके इस्तीफे को अब तक स्वीकार नहीं किया गया है, जिसके चलते आए दिन ये मुद्दा सुर्ख़ियों में रहता है।

कांग्रेस राहुल को मनाने में है व्यस्त 

ऐसे में अब विरोधी भी ये सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर जब खुद राहुल गाँधी पार्टी अध्यक्ष के पद पर नहीं बने रहना चाहते हैं तो राहुल गांधी के बार-बार मना करने के बाद भी पार्टी उनका इस्तीफ़ा क्यों नहीं स्वीकार करती दिखाई दे रही है। बल्कि पार्टी आए दिन उनको मनाने की हर संभव नाटकीय कोशिश करती दिखाई दे रही है।

नए अध्यक्ष की तलाश तक नहीं स्वीकार होगा राहुल का इस्तीफा 

ऐसे में अब कांग्रेस के सूत्रों की माने तो इससे खुद पार्टी को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। चूँकि अगले 6 महीनों में राजधानी दिल्ली समेत हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसी में पार्टी तैयारी करने की बजाय राहुल को मनाने की हर कवायत करने में व्यस्त है। इसी बात को समझते हुए खुद पार्टी अपने नए अध्यक्ष की तलाश होने तक के लिए राहुल गाँधी का इस्तीफा स्वीकार नहीं करना चाहती है।

बता दें कि जब से राहुल गांधी ने अपना इस्तीफा पार्टी को सौपा है तब से ही पार्टी में नए अध्यक्ष की तलाश को लेकर भाग-दौड़ी तेज हो गई है। माना जा रहा है कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी के अन्य आलाकमान नेताओं के साथ खुद नए अध्यक्ष की तलाश में लगी हुई हैं। लेकिन इस मामले में अब तक किसी भी नाम पर एकमत फैसला नहीं आया है। ऐसे में कई नाम मीडिया में भी सामने आ रहे हैं जो इस रेस में सबसे आगे माने जा रहे हैं। इसमें सबसे पहला नाम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अब पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का भी बताया जा रहा है।

कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि पार्टी जल्द ही अपने नए अध्यक्ष पर फैसला सुना सकती है। फिलहाल सुशील कुमार शिंदे के नाम पर पार्टी के नेताओं के बीच सहमति बनती दिख रही है।

इस कारण शिंदे है गांधी परिवार की पहली पसंद

जैसा सब जानते हैं कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के पद के लिए जो सबसे पहला नाम मीडिया में छाया रहा वो था राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का। लेकिन बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी ने उनके नाम पर अपनी सहमती नहीं दी है। कांग्रेस सूत्रों की माने तो प्रदेश के विधानसभा चुनावों के बाद से ही जिस तरह अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों से आमने-सामने आकर पार्टी की छवि खराब की उससे सोनिया गांधी अशोक गहलोत से खुश नहीं थीं। ऐसे में वो कांग्रेस का नेतृत्व किसी ऐसे नेता को देकर उसे पार्टी का अध्यक्ष नहीं बनाना चाहती हैं जो भविष्य में किसी भी तरह से गांधी परिवार के आड़े न आ आए।

सीताराम केसरी मामले जैसे हालातों को पार्टी नहीं चाहती दोहराना 

ऐसे में एक बार फिर सोनिया गाँधी सीताराम केसरी के मामले से सीख लेते हुए पार्टी नेता चुनने में इस बार बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। याद हो तो सोनिया गाँधी का ये स्वभाव उस समय भी देखने को मिला जब 2004 में लोकसभा में कांग्रेस को मिली जीत के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को उदास करते हुए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुन लिया था।

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