ग्रह दशा बिगड़ने से भी हो सकते हैं आप टी.बी रोग के शिकार, जानें इसका ज्योतिषीय कारण और उपाय।

ट्यूबरक्लोसिस यानि टी.बी, इस रोग को हिंदी में तपेदिक या क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है। सबसे पहले बात करें इस रोग के होने के वैज्ञानिक कारणों की तो यह एक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रोबैक्टीरियम नाम के बैक्टीरिया से फैलती है। फेफड़ों में होने वाला ये रोग कई बार शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है जैसे की त्वचा, हड्डियां और आंत आदि। टी.बी रोग के यह बैक्टीरिया हवा के द्वारा फेफड़ों में प्रवेश करता है और खून के प्रवाह के द्वारा शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है। हालाँकि कभी कभार ये बीमारी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह दशाओं के बिगड़ने से भी हो सकती है। आज इस लेख के जरिये हम आपको टी.बी या तपेदिक होने के ज्योतिषीय कारण और उसके उपायों के बारे में बताने जा रहें हैं। आईये जानते हैं इस रोग के होने के विभिन्न ज्योतिषीय कारणों और उसके उपायों के बारे में।

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टी.बी होने के ज्योतिषीय कारण

  • बुध का कर्क राशि में पाप ग्रहों से युक्त होना : यानि की यदि कुंडली में बुध ग्रह कर्क राशि में स्थित हो और उसपर किसी भी पाप ग्रह यानि कि राहु, केतु, शानि या मंगल की दृष्टि हो तो ऐसे में व्यक्ति तपेदिक या टी.बी रोग से ग्रसित हो सकता है। इसके अलावा यदि कुंडली में बुध ग्रह कर्क राशि में होते हुए इन पाप ग्रहों से युति बनाए तो ऐसे में भी जातक टी.बी की समस्या से ग्रसित हो सकता है।
  • लग्न भाव के स्वामी और शुक्र का एक साथ या अलग-अलग त्रिक भाव में होना : यदि व्यक्ति की कुंडली में लग्न भाव यानि कि प्रथम भाव का स्वामी और शुक्र ग्रह एक साथ या अलग-अलग त्रिक भाव यानि की छठे, आठवें और बारहवें भाव में स्थापित हो तो ये टी.बी की बीमारी का कारण बन सकता है। कुंडली में ग्रहों की ऐसी स्थिति बनने पर व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं।
  • दशम भाव में मंगल और शनि की स्थिति और लग्न, चतुर्थ और अष्ठम भाव में सूर्य की स्थिति : यदि व्यक्ति की कुंडली के दसवें भाव में पाप ग्रह मंगल और शनि उपस्थित हों और सूर्य प्रथम, चतुर्थ या आठवें भाव में हो तो, व्यक्ति टी.बी की बीमारी से पीड़ित हो सकता है। जातक की कुंडली का प्रथम, चतुर्थ और आठवां भाव क्रमशः आत्मविश्वास, छाती के रोग और आयु का कारक माना जाता है।
  • चन्द्रमा और मंगल का छठे और आठवें भाव में स्थित होने के साथ उसपर लग्नेश की दृष्टि होना : यदि किसी की कुंडली में चन्द्रमा और मंगल की स्थिति छठे और आठवें भाव में हो और उसपर लग्न भाव के स्वामी की दृष्टि हो तो ऐसे में व्यक्ति को तपेदिक या टी.बी रोग की समस्या हो सकती है। कुंडली का छठा और आठवां भाव विशेष रूप से रोग, भय और आयु का कारक माना जाता है।
  • लग्न भाव पर शनि और मंगल ग्रह की दृष्टि होने पर : यदि किसी की कुंडली के लग्न या प्रथम भाव पर पाप ग्रह शनि और मंगल की बुरी दृष्टि हो तो, ऐसी स्थिति में व्यक्ति क्षय रोग या टी.बी रोग के शिकार हो सकता है। लग्न भाव या प्रथम भाव व्यक्ति के स्व का कारक माना जाता है और उसपर इन पाप ग्रहों की दृष्टि होने से जातक इस रोग से पीड़ित हो सकता है।
  • कारकांश लग्न से चतुर्थ भाव में मंगल और बारहवें भाव में राहु होने पर : व्यक्ति की कुंडली में यदि कारकांश लग्न से चौथे भाव में मंगल और बारहवें भाव में राहु मौजूद हो तो व्यक्ति व्यक्ति टी.बी या तपेदिक की बीमारी से ग्रसित हो सकता है।
  • केंद्र भाव में शनि, छठे भाव में राहु और सातवें भाव में लग्न स्वामी की कमजोर अवस्था होने पर : व्यक्ति टी.बी जैसी बीमारी से तब भी ग्रसित हो सकता है, यदि कुंडली के केंद्र भाव में शानि, छठे भाव में राहु और सातवें भाव में लग्न स्वामी कमजोर अवस्था में मौजूद हो। कुंडली में ऐसी ग्रह दशा बनना तपेदिक की बीमारी का बरबस ही कारण बन जाता है।
  • किसी भी भाव में चन्द्रमा कर मांदी की युति, छठे भाव में राहु और आठवें भाव में लग्न होने पर : व्यक्ति की कुंडली के किसी भी भाव में यदि चन्द्रमा और मांदी की युति हो और राहु की स्थिति छठे भाव में बन रही हो एवं लग्न भाव का स्वामी आठवें भाव में स्थित हो तो, ऐसे में व्यक्ति टी.बी जैसे रोग से ग्रसित हो सकता है।

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टी.बी रोग के ज्योतिषीय उपचार

  • यदि व्यक्ति नियमित रूप से ध्यान और मेडिटेशन करे तो इस रोग से शुरूआती अवस्था में निजात पायी जा सकती है।
  • क्षय रोग के उपचार के लिए चांदी का आधा चन्द्रमा बनवा कर गले में धारण करें।
  • कुंडली में मौजूद लग्न भाव के स्वामी की स्थिति को जानकार उसे मजबूत करने का प्रयास करें। लग्न स्वामी से संबंधित रत्न धारण करना भी लाभदायक साबित हो सकता है।
  • अपने चारों तरफ विशेष रूप से साफ़ सफाई का ख़ास ख्याल रखें।

इसके अलावा वैज्ञानिक आधारों पर देखें तो टी.बी रोग से मुक्ति पाने के लिए बच्चे के जन्म के एक महीने के बाद ही उसे टी.बी का टीका लगवाया जाना चाहिए। इसके अलावा इस रोग से ग्रसित होने पर शराब और सिगरेट की आदत से खुद को दूर रखें। खांसते या छींकते वक़्त मुँह पर विशेष रूप से रूमाल जरूर रखें। इसके साथ ही संतुलित आहार के साथ प्रोटीन युक्त भोजन ज्यादा मात्रा में ग्रहण करें। यदि हम विज्ञान के साथ ज्योतिष का भी सहारा इस रोग से मुक्ति के लिए लें तो यक़ीनन इससे निजात पाना काफी आसान हो जाएगा।

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हम आशा करते हैं कि टी.बी/तपेदिक/क्षय रोग पर आधारित हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। हम आपके स्वस्थ्य जीवन की कामना करते हैं !

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