साल 2021 का पहला चन्द्र ग्रहण पिछले महीने यानी कि मई में लग चुका है। अब जून में साल का पहला सूर्य ग्रहण लगने वाला है। सनातन धर्म में सूर्य और चन्द्र ग्रहण को अशुभ घटना माना जाता है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में साल के पहले सूर्य ग्रहण से जुड़ी कुछ जरूरी बातें बताने वाले हैं।
1 – वैदिक ज्योतिष में भगवान सूर्य
वैदिक ज्योतिष में सूर्य एक विशेष ग्रह माना गया है। यद्यपि खगोलीय दृष्टि से यह एक तारा है लेकिन वैदिक ज्योतिष का सूर्य को लेकर नजरिया कुछ और है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक जातक की कुंडली में सूर्य पिता का कारक होता है। वहीं किसी महिला की कुंडली में यह पति का कारक ग्रह माना गया है। सभी बारह राशियों में सूर्य सिंह राशि का स्वामी माना गया है। मेष राशि में सूर्य उच्च का माना जाता है और तुला राशि में यह नीच हो जाता है।
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सूर्य यदि किसी जातक की कुंडली में शुभ फल देने की स्थिति में हो तो ऐसा जातक समाज में काफी नाम अर्जित करता है। साथ ही कार्यक्षेत्र में उच्च पद पर आसीत होता है। सूर्य यदि कमजोर हो तो अत्याधिक मेहनत के बावजूद भी निम्न फल हासिल होते हैं। आँख संबंधी समस्या परेशान करती है। रक्तचाप संबंधी समस्या भी तकलीफ देती है।
2 – साल 2021 में कब लगा रहा है पहला सूर्य ग्रहण?
साल 2021 में कुल दो सूर्य ग्रहण लगने वाले हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार साल का पहला सूर्य ग्रहण विक्रम संवत 2078 के वैशाख महीने की अमावस्या तिथि को पड़ने वाला है। इस अनुसार साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण इसी महीने यानी कि 10 जून को लगने वाला है। यह सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार दोपहर के 01 बजकर 42 मिनट से शाम के 06 बजकर 41 मिनट तक रहने वाला है। साल का पहला सूर्य ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा।
ऐसे में आपके मन में यह जानने की इच्छा होगी कि ये वलयाकार सूर्य ग्रहण क्या होता है। ये भी हम आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले ये जान लेते हैं कि सूर्य ग्रहण लगता कैसे है।
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3 – सूर्य ग्रहण लगने की वैज्ञानिक वजह
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो सूर्य हमारे सौरमंडल के केंद्र में स्थित है और सभी ग्रह इसका चक्कर काटते है। सूर्य का चक्कर काटने वाले ग्रहों के उपग्रह होते हैं। जैसे पृथ्वी का उपग्रह चंद्रमा है। ये उपग्रह अपने ग्रह का चक्कर काटते हैं। ऐसे में सौरमंडल में एक खास स्थिति बनती है जब चंद्रमा पृथ्वी का परिक्रमा करते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है और सूर्य की रौशनी को पृथ्वी तक पहुँचने में अवरोध पैदा करता है। इस स्थिति को ही सूर्य ग्रहण कहते हैं है।
4 – सूर्य ग्रहण लगने की धार्मिक वजह
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। जिसके अनुसार सूर्य और चंद्रमा ने भगवान विष्णु को इस बात की जानकारी दे दी थी कि देवताओं के बीच में एक असुर स्वर्भानु ने भी वेश बदल कर अमृत पान कर लिया है। जिससे रुष्ट होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का धड़ उसके सिर से अलग कर दिया था।
चूंकि तब तक स्वर्भानु ने अमृत पान कर लिया था इसलिए उनकी मृत्यु नहीं हुई और उसका सिर वाला हिस्सा राहु बना और धड़ वाला हिस्सा केतु बना। मान्यता है कि इस दिन के बाद से ही प्रत्येक साल राहु और केतु नामक ये दो उपछाया ग्रह, सूर्य पर हमला करने की कोशिश करते हैं जिसकी वजह से सूर्य ग्रहण लगता है।
आइये अब आपको बता देते हैं कि वलयाकार सूर्य ग्रहण क्या होता है।
5 – क्या होता है वलयाकार सूर्य ग्रहण?
चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता रहता है और पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। ऐसे में चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाते हुए पृथ्वी से सामान्य दूरी से थोड़ा ज्यादा दूर हो जाता है और इसका आकार देखने में भी छोटा हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में जब सूर्य ग्रहण लगता है तब चंद्रमा अपने छोटे आकार की वजह से सूर्य को पूरी तरह से ढकने में असफल रहता है। नतीजा ये होता है कि चंद्रमा के बीच में रहने की वजह से सूर्य एक अंगूठी यानी कि वलय की तरह नजर आता है। इसी वजह से इस सूर्यग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
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आइये अब जान लेते हैं कि साल का पहला सूर्य ग्रहण दुनिया के किन हिस्सों में दिखाई देने वाला है।
6 – कहाँ-कहाँ दिखेगा साल का पहला सूर्य ग्रहण?
साल का पहला सूर्य ग्रहण अमेरिका के उत्तरी भाग, उत्तरी कनाडा, यूरोप, ग्रीन लैंड, एशिया में आंशिक और पूरे रूस में नजर आने वाला है। वहीं भारत इस सूर्य ग्रहण के दृश्य क्षेत्र से बाहर रहने वाला है। ऐसे में भारत में इस सूर्य ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा।
आइये अब आपको सूतक काल की जानकारी दे देते हैं।
7 – क्या होता है सूतक काल?
सनातन धर्म के अनुसार सूर्य ग्रहण एक अशुभ घटना है। ऐसे में सूर्य ग्रहण के पूर्व एक निश्चित समय के लिए कई कार्यों को करना निषेध माना गया है। मान्यता है कि इस अवधि में सूर्य ग्रहण का दूषित प्रभाव सबसे ज्यादा रहता है। इस अवधि को ही सूतक काल कहा गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य ग्रहण से चार पहर पूर्व सूतक काल शुरू हो जाता है। चूंकि एक दिन में आठ पहर होते हैं, ऐसे में सूतक काल की अवधि 12 घंटे की होती है।
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आइये अब आपको बता देते हैं कि सूर्य ग्रहण के सूतक काल के दौरान किन कार्यों को करना निषेध माना गया है।
8 – सूतक काल के दौरान निषेध कार्य
सूतक काल के दौरान कुछ कार्य सनातन धर्म में पूरी तरह से निषेध माने गए हैं। इस दौरान जातकों को किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य या फिर किसी कार्य का शुभारंभ नहीं करने चाहिए। इस अवधि में जातकों को भोजन खाने या फिर भोजन पकाने से बचना चाहिए। घर से बाहर निकलने पर भी इस दौरान मनाही रहती है। सूतक काल के दौरान जातकों को सोना भी नहीं चाहिए। साथ ही इस दौरान भगवान की प्रतिमा या फिर तुलसी पत्र का स्पर्श करने से बचना चाहिए। शौच आदि कार्य भी इस अवधि के दौरान वर्जित माने गए हैं।
ऐसे में आपके लिए यह भी जानना जरूरी हो गया है कि सूतक काल के दौरान वे कौन से कार्य हैं जिन्हें आप कर सकते हैं। आइये अब आपको उन कार्यों की जानकारी दे देते हैं जो सूतक काल के दौरान वर्जित नहीं माने गए हैं
9 – सूतक काल के दौरान क्या करें?
ऐसा नहीं है कि सूतक काल के दौरान हर तरह के कार्य वर्जित होते हैं बल्कि कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिन्हें सूतक काल के दौरान किया जाना चाहिए। सूतक काल के दौरान जातकों को भगवान का ध्यान, भजन व योग करने की छूट होती है। सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें। घर में यदि सूतक काल से पहले कुछ भोजन बना कर रखा हुआ हो तो उसमें तुलसी के पत्ते डाल कर उसे ढक दें।
खास कर के गर्भवती महिलाओं को सूतक काल के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है। इस अवधि में गर्भवती महिलाएं किसी भी प्रकार के नुकीली चीज का इस्तेमाल न करें वरना उनके शिशु के अंगों को नुकसान पहुँच सकता है। ग्रहण न ही देखें और न ही घर से बाहर निकलें। घर के खिड़की दरवाजों को अच्छी तरह से बंद रखें और सूर्य ग्रहण की रौशनी से खुद को बचाएं।
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आइये अब जान लेते हैं कि सूर्य ग्रहण के बाद हमें क्या उपाय करने चाहिए।
10 – सूर्य ग्रहण के बाद क्या करें?
सूर्य ग्रहण के समाप्त होने के बाद पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें। भगवान की प्रतिमा और तुलसी के पौधे पर भी गंगाजल का छिड़काव करें। सूर्य ग्रहण की समाप्ति के बाद स्नान जरूर करें। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें। इस दौरान पहने हुए कपड़ों को या तो दान में दे दें या फिर उन पर गंगाजल छींट कर उन्हें शुद्ध कर लें। सूर्य ग्रहण के बाद दान-दक्षिणा का भी विशेष महत्व है। ऐसे में जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं व उन्हें दान दें। सूर्य ग्रहण के समाप्त होने के बाद ताजा भोजन बनाएं।
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