शिवलिंग की परिक्रमा का है यह विशेष नियम, जान कर इसके अनुसार ही करें फेरी

परिक्रमा या जिससे आम भाषा में फेरी लगाना भी कहते हैं उसका खास महत्व बताया गया है। जानकारी के लिए बता दें कि परिक्रमा हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, और जैन धर्म में खास महत्व रखती है। मंदिरों में पूजा के बाद लोग देवी-देवताओं की परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा कई बार नदियों और पहाड़ों की परिक्रमा भी की जाती है।

परिक्रमा के बारे में प्रचलित और सबसे अहम मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, जब भी कोई व्यक्ति किसी मंदिर की देवी देवता की परिक्रमा करता है तो उस व्यक्ति के कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और यही वजह है कि आमतौर पर आपने देखा होगा कि मंदिरों में लोग पूजा करने के बाद अंत में फेरी अवश्य लगाते हैं। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि शिवलिंग की परिक्रमा केवल आधी ही की जाती है? 

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शिवलिंग की इस आधी परिक्रमा को चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है और शिवलिंग की परिक्रमा से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण नियम क्या कुछ कहते हैं आइए जानते हैं।

दरअसल सभी देवी देवताओं की परिक्रमा के अलग नियम बताये गए हैं। ऐसे में भगवान शिव की परिक्रमा केवल आधी ही किए जाने का विधान बताया गया है। इस आधी परिक्रमा को चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है और इसे करना उचित माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि कभी भी शिवलिंग (जलधारी) को लांघना नहीं चाहिए।

क्या होता है जलधारी? शिवलिंग पर जल दूध आदि चढ़ाया जाता है। तो यह जिस जगह से निकलता है उसे जलाधारी कहते हैं और जलाधारी को कभी भी लांघना नहीं चाहिए। ऐसा क्यों है इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं भी बताई गई है। आइए जान लेते हैं क्या है वह मान्यताएं।

धार्मिक मान्यताओं की बात करें तो, शिवलिंग को शिव और शक्ति का प्रतीक माना गया है। ऐसे में हम जब भी उस शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं तो वह जल पवित्र हो जाता है। यही वजह है कि जब जल चढ़ाने के बाद कोई शिवलिंग को परिक्रमा करने की प्रक्रिया में जलधारी को लांघता है तो उसकी टांगों के बीच से शिवलिंग की यह ऊर्जा व्यक्ति के अंदर प्रवेश कर जाती है जिसके चलते एक व्यक्ति को वीर्य या रज से संबंधित शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है।

यही वजह है जिसके चलते भगवान शिव की अधूरी या आधी परिक्रमा का नियम बताया गया है।

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