…और इस तरह श्री कृष्ण की द्वारका नगरी पानी के भीतर समा गई !

आपने अक्सर लोगों के मुँह से या किताबों में सुना या पढ़ा होगा कि महाभारत काल की श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी बेहद सुंदर थी जो समय के साथ पानी में समा गई। ऐसे में ये सुनते ही हमारे दिमाग में एक सवाल आकर खड़ा हो जाता है कि एक द्वारिका नगरी तो अभी वर्तमान में भी मौजूद हैं तो फिर उसके विलय होने के पीछे क्या तथ्य है। क्या जो पानी में समा गई वो कोई और द्वारिका नगरी थी? तो आज हम आपको आपके सभी सवालों के जवाब देते हुए इतिहास के सबसे बड़े रहस्य से पर्दा उठने जा रहे हैं। 

 गुजरात स्थित द्वारिका को प्रमुख चार धामों में से एक ख़ास धाम माना जाता है। इसके साथ ही प्रमुख सात पुरी में से एक पुरी द्वारिका भी है। तो चलिए आइये जानते हैं द्वारिका नगरी से जुड़े प्रमुख तथ्यों और रहस्यों के बारे में। 

महाभारत काल से जुड़े हैं द्वारिका नगरी के रहस्य 

माना जाता है कि महाभारत काल में ही भगवान् श्री कृष्ण ने द्वारिका नगरी को बसाया था जहाँ वो अपनी पत्नी रुक्मणि के साथ रहते थे। इसलिए श्री कृष्ण को द्वारकाधीश के नाम से भी जाना जाता है। आज वर्तमान समय में द्वारिका को एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है। पौराणिक कथाओं और साक्ष्यों के अनुसार द्वारिका का प्राचीन नाम कुशस्थली था जिसे वहां के महाराज रैवतक ने बसाया था। माना जाता है कि मयासुर नाम के एक राक्षस ने कुशस्थली को उजाड़ दिया था, जिसके बाद श्री कृष्ण के आदेश पर फिर उस उस जगह को बसाया गया और उसे द्वारिका नाम दिया गया। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मणि और अन्य साथियों के साथ द्वारिका में आकर बसे थे और उन्होनें करीबन 36 सालों तक यहाँ राज किया था। 

छह बार पानी में डूब चुका है द्वारिका 

बता दें कि गुजरात के समुद्र तट से सटा द्वारिका नगरी असल में एक दो बार नहीं बल्कि पूर्व में छह बार पानी में डूब चुका है। वर्तमान द्वारिका शहर सातवीं बार बसाया गया है जिसे आज की तारीख़ में प्रमुख हिन्दू धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद भी द्वारिका नगरी पूरी तरह से पानी में डूब गया था जिसे बाद में फिर से बसाया गया था। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में कृष्ण जी का पांडवों का साथ देना धृतराष्ट्र और उनकी पत्नी गांधारी को बर्दाश्त नहीं हुआ था। उन्होनें ऋषि दुर्वाशा के साथ मिल कर यदुवंश का नाश होने का श्राप दिया था, इस वजह से भी एक बार द्वारिका नगरी का खात्मा हुआ था। 

सूत्रों के अनुसार जारी एक रिपोर्ट में इस बात का प्रमाण मिला है कि साल 1963 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की अंडर वाटर आर्कियोलॉजी विंग को समंदर में कुछ पौराणिक बर्तन और डूबा हुआ पूरा का पूरा द्वारिका शहर मिला था।