मकर संक्रांति: हजारों साल बाद बना संयोग, जरूर करें गंगा स्नान

नववर्ष की शुरुआत के साथ ही मकर संक्रांति का त्यौहार अच्छे दिनों को साथ लेकर आता है। इस दिन से शुभ कामों की शुरुआत हो जाती, एक महीने तक चलने वाले खरमास के बाद मकर संक्रांति के दिन से विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे शुभ कामों की शुरुआत होती है। हर साल मकर संक्रांति का त्यौहार 14 जनवरी के दिन मनाया जाता है।   

भारत के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति का त्यौहार स्थानीय रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।  वैदिक ज्योतिष में इस दिन सूर्य का उत्तरायण होता है, और उत्तरी गोलार्ध सूर्य की तरफ झुक जाता है। और इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के पर्व पर गंगा स्नान का एक विशेष महत्व है। तो आइए नीचे दिए गए लेख में बताते हैं मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का क्या महत्व है , और मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कहानी ।   

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मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का महत्व

मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा जी में डुबकी लगाते हैं, ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन यदि गंगा स्नान करते हैं तो मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती हैइस साल मकर संक्रांति पर एक महत्वपूर्ण संयोग बन रहा है, इस साल सूर्य देव 14 जनवरी के दिन सुबह 8:04 मिनट पर अपनी पुत्र राशि मकर में प्रवेश कर रहे हैं और उनके साथ ही इस दिन चार ग्रह और युक्त हो रहे हैं, शनि, बृहस्पति, बुध और चंद्रमा, इस योग से मकर संक्रांति के दिन पंचग्रही योग भी बन रहा है, पांचग्रहों के योग होने से इस दिन गंगा स्नान का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है, यदि आप इस दिन गंगा स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य देंगे, तो आपको मनोवांछित फल प्राप्त होंगे, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यदि ऐसे संयोग पर मनुष्य गंगा स्नान करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, और अक्षय पुष्प का फल मिलता हैऐसी भी मान्यता है, की मकर संक्रांति के दिन  गंगा स्नान करने से मनुष्य का हर पाप धुल जाता है और देवी-देवतों की भी उस पर विशेष कृपा रहती है । 

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मकर संक्रांति पर गंगा स्नान की कहानी  

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में सूर्यवंशी चक्रवर्ती सम्राट नाम के एक राजा की दो पत्नियां थी। जिनमें से उन्हें पहली पत्नी से एक पुत्र और अपनी दूसरी पत्नी से 60 हजार पुत्र प्राप्त थे।  एक बार राजा ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और अपने घोड़ों को छोड़ दिया। जिसको राजा इंद्र ने चुराकर पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में बांधा, जिसके बाद राजा ने अपनी दूसरी पत्नी के सभी 60 हजार पुत्रों को घोड़ों को वापस लाने का आदेश दिया।  जब राजा के पुत्रों ने कपिल मुनि के आश्रम में अपने घोड़ों को देखा तो उन्होंने क्रोधित होकर आश्रम पर हमला कर दिया।  जिसके बाद कपिल मुनि ने अपनी आंख की ज्वाला से राजा के सभी 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। इस बात की जानकारी राजा को लगी तो उन्होंने कपिल मुनि से अपने बेटों की वापसी की प्रार्थना की, तो कपिल मुनि ने रास्ता सुझाते हुए कहा, कि तुम्हारे पुत्रों को गंगा जल से ही मुक्ति मिलेगी। 

ऐसा सुनते ही राजा ने अपना राज-पाठ अपनी पहली पत्नी के पुत्र अंशुमन को सौंपा और मां गंगा की तपस्या के लिए निकल गएइसके बाद अंशुमन के पुत्र राजा भागीरथ ने अपने सभी पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कठोर तपस्या की और तब जाकर मां गंगा ने उनकी तपस्या को स्वीकार किया परंतु मां गंगा के धरती पर आने से तो प्रलय आ जाता इसलिए  राजा भागीरथ ने फिर शिव जी की तपस्या की भगवान शिव राजा भागीरथ की कठिन तपस्या से प्रसन्न हुएजिसके बाद उन्होंने अपनी जटाओं में गंगा जी को धारण कर लिया और उन्हें धरती पर जाने का आदेश दिया कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही शिवजी की जटा से निकली मां गंगा धरती पर उतरी थी गंगा जी धरती पर गंगोत्री के रास्ते से होते हुए कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंची, और फिर राजा चक्रवर्ती सम्राट के 60 हजार पुत्रों को मुक्ति मिलीइसी दिन से मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है । 

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