यहां मिले हैं शिव जी के अंगूठे के निशान, शिवलिंग नहीं बल्कि उनके अंगूठे की होती है पूजा !

देश भर में यूँ तो शिव जी के अनेकों मंदिर होंगें जहाँ आमतौर पर शिवलिंग की पूजा की जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी की राजस्थान के माउंटआबू में एक ऐसा भी शिव मंदिर है जहाँ शिव जी के शिवलिंग की नहीं बल्कि उनके अंगूठे की पूजा की जाती है। माना जाता है कि यहाँ शिव जी के अंगूठे के निशान भी मिले हैं। आज हम आपको इस रहस्यमयी शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ शिवलिंग नहीं बल्कि शिव जी के अंगूठे की लोग पूजा करते हैं। आइये विस्तार से जानते हैं इस प्रसिद्ध शिव मंदिर के बारे में। 

यहाँ मिले हैं शिव जी के अंगूठे के निशान 

आपको जानकर हैरानी होगी की राजस्थान के माउंटआबू में एक ऐसा शिव मंदिर है जहाँ विशेष रूप से भगवान् शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। जहां देश के अन्य शिव मंदिरों में शिवलिंग की पूजा की जाती है वहीं माऊंटआबू के अचलगढ़ में स्थित शिव मंदिर में शिव जी के अंगूठे की पूजा होती है। ये भारत का एक ऐसा मंदिर है जहाँ शिव जी के अंगूठे के निशान मिले हैं इसलिए इस मंदिर में उनके अंगूठे की ही पूजा लोग करते हैं। माउंटआबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है और यहाँ शिव जी के कम से कम 108 से भी अधिक मंदिर हैं। 

सावन माह में इस मंदिर में होता है भक्तों का जमावड़ा 

आपको बता दें कि इस मंदिर में विशेष रूप से सावन के इस महीने में भक्तों का जमावड़ा लगता है। ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में यहाँ आकर शिव जी के अंगूठे की पूजा अर्चना करने से भक्तों के सभी दुःख दर्द दूर हो जाते हैं। माऊंटआबू के अचलगढ़ स्थित इस प्राचीन मंदिर की काफी मान्यता है। शिव भक्त यहाँ खासतौर से सावन के प्रत्येक सोमवार और महाशिवरात्रि के दिन पूजा अर्चना के लिए जरूर आते हैं। यहाँ दूर दराज से शिव भक्त अपने मन की मुराद लिए शिव जी के दर्शन के लिए आते हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि यहाँ आने वाला भक्त कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है। 

इसलिए बने हैं यहाँ शिव के अंगूठे के निशान 

इस मंदिर से जुड़े एक पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार जब शिव जी तपस्या में लीन थे तो अबुर्द पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन अचानक हिलने लगा। चूँकि इसी पर्वत पर शिव जी की गाय कामधेनु और नंदी बैल भी मौजूद थे इसलिए ये जानकर उनकी तपस्या भंग हो गयी। शिव जी के लिए उन दोनों के साथ ही साथ पर्वत को बचाना भी काफी आवश्यक था। ऐसा माना जाता है कि शिव जी ने हिमालय से ही अपना अंगूठा बढ़ाकर अबुर्द पर्वत को बिल्कुल स्थिर कर दिया और उन दोनों की जान बचा ली। इसलिए यहाँ के शिव मंदिर में विशेष रूप से शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। पौराणिक प्रमाणों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि आज भी शिव जी माऊंटआबू के पहाड़ों में विचरण करते हैं। हज़ारों साधू और शिव भक्त माउंट आबू के गुफाओं में शिव जी की तपस्या में लीन आज भी देखें जा सकते हैं।