रामायण काल के वो 12 पात्र जो महाभारत काल में भी थे मौजूद

भगवान राम त्रेता युग में थे और भगवान कृष्ण द्वापर युग में। हालांकि दोनों ही देवता भगवान विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं लेकिन दोनों का जन्म अलग अलग युगों में हुआ और इन दोनों के जीवन के विभिन्न घटनाओं से प्रेरित दो बेहद ही महत्वपूर्ण और पवित्र ग्रंथ हमारे धर्म में मौजूद है; रामायण और महाभारत।

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यकीनन दोनों ही इष्टों का जन्म अलग-अलग युगों में हुआ ऐसे में यह बात असंभव प्रतीत होती है कि कोई भी एक इंसान इन दोनों ही इष्टों के दर्शन कर पाया हो या फिर यूं कहें कि इन दोनों के अस्तित्व में होने का साक्षी रहा हो लेकिन आज हम आपको इस लेख में ऐसे बारह महापुरुषों के बारे में बताएँगे जो रामायण काल के भी साक्षी रहे और महाभारत काल को भी उन्होंने देखा था।

जामवंत

जामवंत रामायण के एक बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार थे और भगवान श्री राम के वानर सेना के सदस्य भी थे। ये जामवंत ही थे जिन्होंने समुद्र लांघते वक़्त भगवान हनुमान को उनकी शक्तियां याद दिलाई थी जिसकी वजह से हनुमान जी माता सीता से लंका जाकर मिल पाये। 

लेकिन जामवंत का महाभारत के समय में भी होने के साक्ष्य मिलते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्यमंतक मणि को हासिल करने के लिए जामवंत ने भगवान कृष्ण से नंदिवर्धन पर्वत पर 27 दिनों तक युद्ध किया था। बाद में जब उन्हें भगवान कृष्ण के विष्णु अवतार होने की बात पता चली तो उन्होंने युद्ध बंद कर दिया और अपनी पुत्री जामवंती से श्री कृष्ण का विवाह करवाया।

दुर्वासा ऋषि

मान्यता है कि दुर्वासा ऋषि सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों ही युगों में मौजूद थे। दुर्वासा ऋषि को उनके अत्यंत क्रोधी स्वभाव की वजह से जाना जाता है। मान्यता है कि उन्होंने ही शकुंतला को श्राप दिया था कि उनका प्रेमी उन्हें भूल जाये। 

खैर, रामायण के वक़्त भी ऋषि दुर्वासा का जिक्र मिलता है जब भगवान राम और यमराज किसी विषय पर चिंतन कर रहे होते हैं और यमराज भगवान राम के सामने यह शर्त रखते हैं कि जो भी इस चिंतन में व्यवधान डालेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस वजह से भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण को द्वार की रक्षा करने को भेजते हैं ताकि कोई भी अंदर न आ सके। लेकिन इस चिंतन व विमर्श के बीच दखल तब पड़ जाता है जब लक्ष्मण को ऋषि दुर्वासा क्रोधित होकर यह कह बैठते हैं कि अगर अभी इसी वक़्त भगवान राम ऋषि दुर्वासा से नहीं मिले तो वे समस्त अयोध्या नगरी को श्राप दे देंगे। बाद में ऋषि दुर्वासा के श्राप के भय से लक्ष्मण को उस चिंतन और विमर्श के बीच दखल डालना पड़ा था।

ऋषि दुर्वासा का जिक्र महाभारत में भी मिलता है। राजा कुंतिभोज ने कुंती नामक एक कन्या को गोद लिया था। एक बार ऋषि दुर्वासा राजा कुंतिभोज के यहां पधारते हैं। कुंती को ऋषि दुर्वासा के शीघ्र क्रोधित होने के स्वभाव का भान था इसलिए उन्होंने ऋषि दुर्वासा के आवभगत में कोई कमी नहीं रखी। इस आवभगत से ऋषि दुर्वासा कुंती पर बेहद प्रसन्न होते हैं और जाते जाते कुंती को अथर्ववेद का वो मंत्र बताते हैं जिससे कोई भी स्त्री अपने इष्ट का ध्यान कर संतान प्राप्त कर सकती है। कुंती ने ऋषि दुर्वासा के बताए मंत्र की शक्ति को देखने के लिए विवाह से पूर्व ही भगवान सूर्य का ध्यान किया था जिस वजह से कर्ण का जन्म हुआ था।

नारद मुनि

नारद मुनि का भी महाभारत और रामायण, दोनों ही ग्रन्थों में अलग-अलग जगहों पर जिक्र मिलता है। रामायण काल में ये नारद मुनि ही थे जिन्होंने ऋषि वाल्मीकि को रामायण लिखने का सुझाव दिया था।

महाभारत काल में नारद मुनि का जिक्र उस समय आता है जब भगवान कृष्ण कौरवों के पास पांडवों का शांति समझौता लेकर गए थे जिसमें पांडवों ने कौरवों से बस पांच गांव मांगे थे। 

भगवान परशुराम

भगवान परशुराम का भी जिक्र दोनों ही काल में मिलता है। रामायण में भगवान परशुराम भगवान राम पर तब क्रोधित हो जाते हैं जब माता सीता के स्वयंवर के दौरान प्रभु श्री राम भगवान शंकर का धनुष उठा कर तोड़ देते हैं। आपको बता दें कि भगवान शंकर परशुराम के गुरु थे।

महाभारत में भी भगवान परशुराम का जिक्र कई जगहों पर आता है लेकिन सबसे चर्चित वाकया उनका कर्ण के साथ है क्योंकि कर्ण के गुरु परशुराम ही थे। चूंकि परशुराम सिर्फ ब्राह्मणों को ही शिक्षा देते थे ऐसे में छल कर भगवान परशुराम से विद्या प्राप्त करने की वजह से कर्ण को भगवान परशुराम का क्रोध भी झेलना पड़ा था।

भगवान हनुमान

भगवान हनुमान तो रामायण के महत्वपूर्ण किरदारों में से एक थे। श्री राम के परम भक्त के तौर पर वे पूरे जीवन भगवान राम की सेवा करते रहे।

वहीं महाभारत में भी भगवान हनुमान का कई जगहों पर जिक्र मिलता है। खास कर के एक किस्सा तो बहुत ही चर्चित है जब भीम और अर्जुन को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था, तब हनुमान जी ने ही उन दोनों का घमंड दूर किया था। भगवान कृष्ण के आदेश पर वे महाभारत युद्ध के दौरान सूक्ष्म रूप से अर्जुन के रथ पर भी विराजमान रहे थे। 

विभीषण

रामायण काल में विभीषण का जिक्र तो मिलता ही मिलता है। विभीषण भले ही दानव कुल में पैदा हुए और भगवान राम के शत्रु रावण के भाई थे लेकिन चरित्र और मन से वे पवित्रात्मा थे। उन्होंने ही भगवान राम को रावण की मृत्यु का भेद बताया था।

विभीषण का जिक्र महाभारत काल में तब मिलता है जब पांडव राजसूय यज्ञ कर रहे होते हैं। इस राजसूय यज्ञ में पांडव विभीषण को भी आमंत्रित करते हैं और विभीषण इस यज्ञ का हिस्सा भी बनते हैं जिसमें वे पांडवों को काफी धन और हीरे-जवाहरात दान में देते हैं।

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मायासुर

मायासुर के बारे में शायद आप में से ज़्यादातर लोगों को जानकारी न हो। ऐसे में आपको बता दें कि मायासुर रावण के ससुर थे और मंदोदरी के पिता थे। 

वहीं महाभारत काल में मायासुर का जिक्र तब मिलता है जब पांडव दंडकारण्य के जंगल में आग लगा देते हैं। इस दौरान अर्जुन मायासुर के प्राणों की रक्षा करते हैं जिसके फलस्वरूप मायासुर पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ में एक मायावी महल का निर्माण करते हैं।

वायु देवता

रामायण काल में माता अंजनी ने पवन देव के पुत्र हनुमान को जन्म दिया था। वहीं महाभारत काल में पवन देव का तब जिक्र आता है जब कुंती राजा पांडु के अनुरोध पर महर्षि दुर्वासा के बताए मंत्र से पवन देवता का आवाहन करती हैं और फिर भीम का जन्म होता है। कहा जाता है कि भीम और हनुमान जी आपस में भाई ही थे।

ऋषि शक्ति

रामायण काल में प्रभु राम और लक्ष्मण जी के गुरु के रूप में हमें ऋषि वशिष्ठ का जिक्र मिलता है। ऋषि वशिष्ठ और उनकी पत्नी अरुंधती का एक पुत्र भी था जिसका नाम शक्ति था। शक्ति भी आगे चल कर एक ऋषि बनते हैं। बाद में महाभारत काल में भी शक्ति ऋषि का जिक्र मिलता है। महाभारत में ऋषि शक्ति को पराशर मुनि का पिता बताया गया है। पराशर मुनि ही विष्णु पुराण के रचयिता हैं।

महर्षि भारद्वाज

महर्षि भारद्वाज का जिक्र रामायण में तब आता है जब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए निकलते हैं। तब उनकी सबसे पहले मुलाक़ात महर्षि भारद्वाज से ही होती है। महर्षि भारद्वाज वनवास काल के दौरान भगवान राम से उनकी कुटिया में ही रुक जाने का आग्रह करते हैं लेकिन भगवान राम बड़ी ही शालीनता से उनका अनुनय निवेदन ठुकरा देते हैं। वहीं महाभारत में महर्षि भारद्वाज को द्रोणाचार्य का पिता बताया गया है। द्रोणाचार्य पांडवों और कौरवों के गुरु थे। 

कुबेर

रामायण काल में कुबेर का जिक्र रावण के भाई के रूप में होता है। कुबेर के बेटे नलकुबेर के ही श्राप की वजह से रावण सीता माता को न अपने महल में रख पाया और न ही उनका कभी स्पर्श कर पाया।

महाभारत में कुबेर का वर्णन पुलस्त्य ऋषि के पुत्र के रूप में मिलता है। कहा जाता है कि कुबेर का जन्म एक गाय के गर्भ से हुआ था।

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अगस्त्य मुनि

अगस्त्य मुनि ने ही अगस्त्य संहिता की रचना की थी। अगस्त्य मुनि को वशिष्ठ मुनि का बड़ा भाई बताया जाता है। वशिष्ठ मुनि ही श्री राम और लक्ष्मण के गुरु थे। बाद में जब भगवान राम माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाने लंका जा रहे थे तब वशिष्ठ मुनि उनसे मिलने आते हैं और उन्हें दिव्य तीर और धनुष सौंपते हैं। वहीं महाभारत में उनका जिक्र तब आता है जब उन्होंने विंध्य पर्वत को सूर्य देवता के आग्रह पर झुका दिया था।

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