भारत में यूँ तो भगवान् शिव के विभिन्न अवतारों के बहुत से मंदिर हैं लेकिन उनमें से सबसे ज्यादा प्रमुख है तमिलनाडु, चिदंबरम में स्थित थिल्लई नटराज का मंदिर। बता दें कि आज जहाँ एक तरफ लोग पी.चिदंबरम की खबर में ज्यादा रुचि ले रहे हैं उसी बीच हम आपको भगवान् शिव के प्रसिद्ध चिदंबरम मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। इस मंदिर का इतिहास और महत्व जानकर आप बेशक हैरान रह जाएंगे। तो देर किस बात की आइये जान लेते हैं इस प्रसिद्ध मंदिर से जुड़े प्रमुख तथ्यों के बारे में।
अलौकिक सौंदर्य की प्रतीक है यहाँ स्थित नटराज की मूर्ति
आपको बता दें कि तमिलनाडु स्थित भगवान् नटराज के इस मंदिर को चिदंबरम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित इस मंदिर को भगवान् शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है। यहाँ शिव जी के नटराज रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर की खासियत है यहाँ स्थित भगवान नटराज की मूर्त्ति। यहाँ स्थित नटराज देव की मूर्ति का सौंदर्य देखते ही बनता है। एक बार जो इस इस मूर्ति को देखता है वो इसके आलौकिक सौंदर्य से मंत्रमुग्ध हो जाता है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहाँ नटराज के रूप में भगवान् शिव ने प्रचंड नृत्य किया था। चिदंबरम मंदिर में स्थापित भगवान् नटराज की मूर्ति सोने और चांदी के विभिन्न अभूषणों से लदा हुआ है जो इसे ख़ास बनता है। शिव जी के इस रूप की मूर्ति भारत में कम जगह ही देखने को मिलती है।
बेहद अनोखी है चिदंबरम मंदिर की बनावट
इस मंदिर की एक खासियत इसकी बनावट भी है। या यूँ कहें की ये मंदिर अपनी बनावट को लेकर भी प्रसिद्ध है तो गलत नहीं होगा। करीबन एक लाख छह हज़ार वर्ग मीटर में बने इस मंदिर के हर एक पत्थर और खंभे पर शिव जी का एक अलग रूप देखने को मिलता है। बता दें कि इस चिदंबरम मंदिर में कुल नौ गेट है और हर तरफ भरतनाट्यम की वभिन्न मुद्राओं को दीवारों पर उरेखा गया है। देश का ये एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव जी के साथ ही विष्णु जी की पूजा भी की जाती है। उन्हें यहाँ गोविंदराज और पंदरीगावाल्ली के नाम से जानते हैं। इस मंदिर में प्रतिदिन पूजा के लिए आने वाले भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ आपको शिव जी के नटराज रूप से जुड़े तथ्यों की जानकारी भी मिलती है।
चिदंबरम मंदिर से जुड़ा पौराणिक इतिहास
शिव जी के नटराज अवतार वाले इस शिव मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है की यहाँ पहले भगवान् गोविन्द राजास्वामी रहते थे। एक बार शिव जी उनके पास इस उद्देश्य के साथ आये की वो उनके और पार्वती माता के बीच नृत्य प्रतियोगिता का निर्णायक बने। गोविन्द राजास्वामी तैयार होगये और उन्होनें शिव जी को विजय करने के लिए उन्हें पैर उठाकर नृत्य मुद्रा करने का संकेत दिया। चूँकि ये नृत्य मुद्रा महिलाओं के लिए वर्जित माना जाता था इसलिए पार्वती माँ ने हार मान ली और तब से इस मंदिर में शिव जी के नटराज रूप की पूजा की जाने लगी।