अखंड ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कहा जाता है कि, जन्म कुंडली में शनि और चंद्र ग्रह की युति से विष योग बनता है और इस योग को ज्योतिष के अनुसार अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि, जिस भी जातक की कुंडली में यह योग होता है वह जातक जिंदगी-भर विष के समान तमाम कठिनाइयों कष्ट को भोगता है। बृहत् होरा शास्त्र ग्रन्थ के अनुसार कहा गया है कि, जन्म कुंडली में शनि और चंद्र ग्रह की युति से व्यक्ति न्यायप्रिय, मेहनती, ईमानदार व वैराग्य भाव का जन्म भी होता है। यदि आप अपनी कुंडली किसी विद्वान ज्योतिषी को दिखाना चाहते हैं और इस योग के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो अभी आचार्य डॉ सुनील बरमोला से कॉल पर बात करें
जन्म कुंडली में कैसे बनता है विष योग –
- जन्म कुंडली में चंद्र ग्रह और शनि ग्रह किसी भी भाव में साथ युति बना कर बैठे हो तो विष योग बनता है।
- कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चंद्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र में हो अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों तो तब भी विष योग बनता है।
- गोचर में जब शनि चंद्र के ऊपर से या जब चंद्र शनि के ऊपर से निकलता है तब विष योग बनता है।
- कुछ ज्योतिष विद्वान मानते हैं कि युति के अलावा शनि की चंद्र पर दृष्टि से भी विष योग बनता है।
- शनि की दशा और चंद्र का प्रत्यंतर हो अथवा चंद्र की दशा हो एवं शनि का प्रत्यंतर हो तो भी विष योग बनता है।
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द्वादश (12) भावों में विष योग का प्रभाव –
प्रथम भाव – जन्मकुंडली के अनुसार यदि जातक के लग्न, प्रथम भाव में शनि- चंद्र का विष योग बनता है तो व्यक्ति शारीरिक रूप से बेहद दुर्बल होता है। वह हमेशा रोग ग्रस्त रहता है और जातक के प्राण पर खतरा बना रहता है।
दूसरा भाव- दूसरे भाव में शनि-चंद्र की युति होने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती। उसे धन का नुकसान उठाना पड़ता है।
तीसरा भाव- कुंडली का तीसरा भाव साहस, मानसिक संतुलन और छोटे भाई-बहनों से संबंधित होता है, इसलिए अगर इस भाव में विष योग बनता है तो व्यक्ति भ्रम की स्थिति में रहता है जिसके कारण वह खुद को निर्णय लेने में अ-सक्षम महसूस करता है। उसे मानसिक तनाव झेलना पड़ता है और भाई-बहनों से भी कष्ट मिलता है।
चौथा भाव- चौथा भाव मातृ-सुख से संबंधित है इसलिए इस भाव में शनि-चंद्र की युति से जातक को माता का सुख प्राप्त नहीं होता है।
पंचम भाव- अगर पांचवें भाव में शनि-चंद्र की युति हो तो व्यक्ति को संतान सुख नहीं मिलता है। यह बुद्धि का भाव भी है इसलिए व्यक्ति की विवेकशीलता समाप्त हो जाती है।
छठा भाव- विष योग यदि छठे भाव में होता है तो जातक के अनेक शत्रु होते हैं। वह जिंदगी भर कर्ज में डूबा रहता है।
सप्तम भाव- कुंडली का सातवां भाव दांपत्य सुख से संबंधित है। अगर इस भाव में विष योग हो तो पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े होते हैं। कभी-कभी स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि तलाक तक की नौबत आ जाती है।
अष्टम भाव- अष्टम भाव में विष योग बनने से लम्बी यात्राओं से बच कर चलना होता है क्योंकि, इस दुर्घटना के अधिक योग बनते हैं परन्तु ऐसे जातक दानवीर और चीजों का दान करता है, इसलिए इस भाव में अगर ये योग बनें तो ये घातक नहीं माना जाता है।
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नवम भाव- इस भाव में यदि विष योग बने तो जातक भाग्यहीन होता है। उसे गुरुओं का साथ और पिता का सुख नहीं मिलता। ऐसा व्यक्ति नास्तिक होता है।
दसवें भाव- दसवें भाव में विष योग बनने पर जातक के पद-प्रतिष्ठा में कमी आती है। उसे मनचाही नौकरी नहीं मिलती।
ग्यारहवां भाव- ग्यारहवें भाव में बना विष योग जातक के साथ बार-बार एक्सीडेंट करवाता है। उसके आय के साधन सीमित होते हैं।
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बारहवां भाव- कुंडली का बारहवां भाव खर्चे और नुकसान का भाव है। अगर इस भाव में शुक्र-चंद्र की युति हो तो आय से अधिक खर्च होता है।
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उपाय
1- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें व माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
2- चंद्र ग्रह को शांत रखने से ये योग खत्म हो जाता है, इसलिए चंद्रमा की पूजा करें और सफेद रंग की चीजों का दान हर शुक्रवार के दिन करें।
3 – तिल के पानी से शिवलिंग का अभिषेक करें।
4 – हर शनिवार के दिन एक कटोरी में तेल डाल दें और इसमें अपनी छाया को देखें। उसके बाद ये तेल दान कर दें।
5 – रात में दूध न पिएं। शनिवार को कुएं में दूध अर्पित करें।
6 – .मांस और मदिरा से दूर रहकर माता की सेवा करें।
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