भारत में इंसान को जीवन आरंभ से लेकर मृत्यु तक कई संस्कारों से होकर गुजरना पड़ता है। हर एक संस्कार का जीवन में अपना महत्व होता है। इन संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार होता है विद्यारंभ संस्कार। विद्या और ज्ञान को यूँ तो हर धर्म और संस्कृति में अहमियत मिली है लेकिन हिंदू धर्म में इसका स्थान सर्वोच्च है। यही वजह है कि जब बच्चा लगभग पांच वर्ष का हो जाता है तो पूरे विधि-विधान से उसका विद्यारंभ संस्कार करवाया जाता है।
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इस संस्कार के माध्यम से एक ओर जहाँ बच्चे की रुचियों को ज्ञान और विद्या की ओर अग्रसर किया जाता है वहीँ दूसरी ओर माता-पिता को भी इस संस्कार के जरिये अपने दायित्वों का पता चलता है। आज हम आपको विद्या आरंभ संस्कार के बारे में विस्तृत रूप से बताएंगे।
विद्यारंभ संस्कार की सही आयु
बच्चों का मन विद्या और ज्ञान की तरफ बढ़े इसके लिए हर माता-पिता को विद्यारंभ संस्कार करवाना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार इसके लिए पांच वर्ष की अवस्था उचित मानी गई है। हालांकि वर्तमान समय के प्रतिस्पर्धी दौर में लोग अपने बच्चों को पांच वर्ष से पहले ही शिक्षा देने लगे हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना ज्यादा उचित होगा कि आप बालक या बालिका को चाहे किसी भी अवस्था से विद्या ग्रहण करवाएं लेकिन इसकी शुरुआत विद्यारंभ संस्कार से ही करें। इससे आने वाले समय में बच्चा सही दिशा में अग्रसर होगा और अपने विवेक से सही विषयों का चुनाव कर पाएगा। हालांकि, 10वीं के छात्रों के लिए बनी कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट आज के दौर में विद्यार्थियों और अभिभावकों की कई समस्याएं दूर कर रही है इस रिपोर्ट की मदद से व्यक्तित्व के अनुसार विद्यार्थी विषयों का चयन करके अपने भविष्य को सुनहरा बना सकते हैं।
साल 2020 में विद्यारंभ मुहूर्त की महत्वपूर्ण तिथियां
विद्यारंभ मुहूर्त मार्च 2020 |
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13 मार्च | शुक्र | चैत्र कृ. चतुर्थी | स्वाति | 08:51-13:59 |
विद्यारंभ मुहूर्त अप्रैल 2020 |
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16 अप्रैल | गुरु | वैशाख कृ. नवमी | धनिष्ठा | 18:12-20:50 |
17 अप्रैल | शुक्र | वैशाख कृ. दशमी | उ.भाद्रपद | 05:54-07:05 |
19 अप्रैल | रवि | वैशाख कृ. द्वादशी | पूर्वाभाद्रपद | 05:52-19:34 |
26 अप्रैल | रवि | वैशाख शु. तृतीया | रोहिणी | 05:45-13:23 |
27 अप्रैल | सोम | वैशाख शु. चतुर्थी | मृगशिरा | 14:30-20:07 |
29 अप्रैल | बुध | वैशाख शु. षष्ठी | पुनर्वसु | 05:42-15:13 |
विद्यारंभ मुहूर्त मई 2020 |
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3 मई | रवि | वैशाख शु. दशमी | पूर्वाफाल्गुनी | 05:39-19:43 |
4 मई | सोम | वैशाख शु. एकादशी | उ.फाल्गुनी
हस्त |
06:13-19:19 |
11 मई | सोम | ज्येष्ठा कृ. चतुर्थी | पूर्वाषाढ़ा | 06:35-19:12 |
13 मई | बुध | ज्येष्ठा कृ. षष्ठी | श्रावण | 05:32-06:00 |
17 मई | रवि | ज्येष्ठा कृ. दशमी | उ.भाद्रपद | 12:43-21:07 |
18 मई | सोम | ज्येष्ठा कृ. एकादशी | उ.भाद्रपद
रेवती |
05:29-21:03 |
24 मई | रवि | ज्येष्ठ शु. द्वितीया | मृगशिरा | 05:26-20:39 |
25 मई | सोम | ज्येष्ठ शु, तृतीया | मृगशिरा | 05:26-20:35 |
27 मई | बुध | ज्येष्ठ शु, पंचमी | पुनर्वसु | 05:25-20:28 |
28 मई | गुरु | ज्येष्ठ शु, षष्ठी | पुष्य | 05:25-20:24 |
31 मई | रवि | ज्येष्ठ शु, नवमी | उत्तराफाल्गुनी | 17:37-20:12 |
विद्यारंभ मुहूर्त जून 2020 |
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1 जून | सोम | ज्येष्ठ शु, दशमी | हस्त | 05:24-13:16 |
3 जून | बुध | ज्येष्ठ शु, द्वादशी | स्वाति | 05:23-06:21 |
7 जून | रवि | आषाढ़ कृ. द्वितीया | मूल | 05:23-19:44 |
8 जून | सोम | आषाढ़ कृ. तृतीया | उत्तराषाढ़ा | 05:23-18:21 |
10 जून | बुध | आषाढ़ कृ. पचमी | श्रावण | 05:23-10:34 |
11 जून | गुरु | आषाढ़ कृ. षष्ठी | धनिष्ठा | 11:28-19:29 |
15 जून | सोम | आषाढ़ कृ. दशमी | रेवती | 05:23-16:31 |
17 जून | बुध | आषाढ़ कृ. एकादशी | अश्विनी | 05:23-06:04 |
भारतीय संस्कृति में विद्यारंभ संस्कार का महत्व
विद्या और ज्ञान का महत्व भारत में सदियों से रहा है। ज्ञान को लेकर भारतीय समाज कितना जागरूक था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालय यही थे, जिनमें दुनिया भर से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
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विद्या और ज्ञान के महत्व को देखते हुए ही भारतीय समाज ने, बचपन से ही विद्या और ज्ञान के प्रति बच्चों को जिज्ञासु बनाने की कोशिश की है। विद्यारंभ संस्कार द्वारा बालक/बालिकाओं में ज्ञान के प्रति जिज्ञासा डालने का प्रयास तो किया ही जाता है साथ ही उनमें सामाजिक और नैतिक गुण आएं इसके लिए भी प्रार्थना की जाती है।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में विद्यारंभ संस्कार की आवश्यकता
विद्या और ज्ञान का इंसान के जीवन में क्या महत्व है इसको हर कोई भली-भांति जानता है। हर इंसान का शिक्षित होना समाज को भी सुधारता है। जिस समाज में शिक्षित लोगों की संख्या जितनी ज्यादा होती है वहां उपद्रव उतने ही कम होते हैं। हालांकि सिर्फ किताबों से ली गई जानकारी को ज्ञान नहीं कहा जा सकता असली ज्ञान या विद्या वो है जो इंसान में विवेक बुद्धि का विकास कर सके। जब इंसान में विवेक का उदय हो जाता है तो वो अच्छे-बुरे में सही तरीके से फर्क कर पाता है और समाज में सही मूल्यों का सूत्रपात होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए विद्यारंभ संस्कार का सामजिक परिप्रेक्ष्य में ये महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है ताकि आने वाले समय में बच्चा अपनी विद्या और अपने ज्ञान को विवेक के साथ इस्तेमाल कर सके। यदि आप बच्चे का विद्यारंभ संस्कार नहीं कराते तो वह उच्च कक्षाओं में उलझनों का सामना कर सकते हैं। जैसे 12 वीं के बाद विषय चुनने में उसे दिक्कतें आ सकती हैं। हालांकि इस समस्या को दूर करने के लिए 12वीं के छात्रों के लिए बनी कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं कॉग्निएस्ट्रो करियर रिपोर्ट नौकरी और व्यवसाय में आ रही परेशानियों को भी दूर कर सकती है।
विद्यारंभ संस्कार के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
- विद्या, ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक माँ सरस्वती और भगवान गणेश को माना जाता है इसलिए विद्यारंभ के दौरान पूजा स्थल पर इन दोनों की प्रतिमाएं या चित्र होने चाहिए।
- पूजन स्थल में पट्टी, दवात, लेखनी, स्लेट और खड़िया भी रखी जानी चाहिए।
- गुरु पूजन के लिए यदि बच्चे के गुरु उपस्थित हों तो उनकी पूजा की जानी चाहिए नहीं तो प्रतीक रूप में नारियल की पूजा की जानी चाहिए।
उपर्युक्त तैयारियाँ करने के बाद भगवान गणेश और माँ सरस्वती का श्रद्धापूर्वक पूजन किया जाता है। इसमें सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है उसके बाद माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
गणेश पूजन | सरस्वती पूजन | |
क्रिया | बच्चे के हाथ में फूल, अक्षत, रोली देकर मंत्र जाप के साथ-साथ भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने अर्पित करें। | बच्चे के हाथ में फूल, अक्षत, रोली देकर मंत्र जाप के साथ-साथ माँ सरस्वती की मूर्ति या चित्र के सामने अर्पित करें। |
भावना | पूजन के दौरान अपने मन में प्रार्थना करें कि विवेक के अधिष्ठाता गणपति बालक पर अपनी कृपा रखें और उनके आशीर्वाद से बालक के विवेक में निरंतर वृद्धि हो। साथ ही बालक/बालिका की बुद्धि भी प्रखर हो। | पूजा के दौरान मन में प्रार्थना करें कि बालक/बालिका को ज्ञान, कला और संवेदना की देवी माँ सरस्वती का आशीर्वाद मिले और, माँ सरस्वती के आशीर्वाद से ज्ञान और कला के प्रति बालक/बालिका का रुझान हमेशा बना रहे। |
मंत्र | “गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्||” “ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि||” …. -२३.१९ |
“ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिवार्जिनीवती। यज्ञं वष्टुधियावसुः।”
“ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।” …. -२०.८४ |
भगवान गणेश और माँ सरस्वती के पूजन के बाद शिक्षा ग्रहण करने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरणों (दवात, कलम और पट्टी) का पूजन करें।
विद्या प्राप्ति में इन उपकरणों के महत्व को देखते हुए इन्हें विद्यारंभ संस्कार के दौरान वेदमंत्रों से अभिमंत्रित किया जाता है ताकि इनका शुरूआती प्रभाव मंगलकारी हो सके।
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अधिष्ठात्री देवी पूजन
- उपासना विज्ञान की मान्यताओं के अनुसार कलम की अधिष्ठात्री देवी ‘धृति’ हैं, पट्टी या स्लेट की अधिष्ठात्री देवी ‘तुष्टि’ हैं और दवात की अधिष्ठात्री देवी पुष्टि हैं।
- षोडश मातृकाओं में तीनों देवियां धृति, पुष्टि और तुष्टि उन तीन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं जो ज्ञान और विद्या हासिल करने के लिए बहुत जरुरी और आधारभूत हैं।
- अतः विद्यारंभ संस्कार के दौरान कलम, दवात और पट्टी का पूजन करते समय इनसे संबंधित अधिष्ठात्री देवियों का पूजन किया जाता है।
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लेखनी पूजन
विद्यारंभ संस्कार के दौरान बालक/बालिका के हाथ में कलम दी जाती है। चूकि कलम की देवी धृति को माना जाता है जिनका भाव ‘अभिरुचि’ है। विद्या प्राप्त करने वाले के मन में यदि विद्या पाने की अभिरुचि होगी तो जीवन में वो हमेशा आगे बढ़ता जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता तो जीवन के कई क्षेत्रों में इंसान पीछे रह जाता है। अतः कलम पूजन के दौरान धृति देवी से प्रार्थना करनी चाहिए कि शिक्षार्थी की अभिरुचि निरंतर अध्ययन में बढ़ती ही जाए और वो शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे परिणाम हासिल करे।
क्रिया- कलम पूजन के लिए बालक/बालिका के हाथ में पुष्प, अक्षत और रोली देकर पूजा स्थल पर स्थापित कलम पर मंत्र को उच्चारित करते हुए चढ़ाएं।
मंत्र- “ॐ पुरुदस्मो विषुरूपऽ इन्दुः अन्तमर्हिमानमानंजधीरः।
एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीम्, अष्टापदीं भुवनानु प्रथन्ता स्वाहा।” ….-८.३०
भावना- पूजन के दौरान अभिभावकों को यह भावना रखनी चाहिए कि धृति शक्ति भविष्य में शिक्षार्थी की रूचि ज्ञान और विद्या में लगाए रखेगी।
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दवात पूजन
कलम का इस्तेमाल बिना दवात के नहीं किया जाता। कलम स्याही या खड़िया के सहारे ही लिख पाने में समर्थ होती है। इसी वजह से कलम के बाद दवात पूजन किया जाता है। दवात की अधिष्ठात्री देवी ‘पुष्टि’ को माना गया है। पुष्टि का भाव एकाग्रता होता है, इंसान के अंदर यदि एकाग्रता है तो वो कठिन से कठिन विषय को भी वे आसानी से समझ सकता है। इसलिए पुष्टि देवी की आराधना करना अति आवश्यक है। इसके लिए पूजा स्थल में राखी दवात के कंठ पर कलावा बांधा जाता है और रोल, धूप, अक्षत और पुष्प से दवात का पूजन किया जाता है।
क्रिया- पूजा स्थल पर रखी दवात पर मंत्र का जाप करते हुए बालक/बालिका के हाथों से पूजन सामग्री चढ़ाएं।
मंत्र- “ॐ देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीवर्योधसं, पतिमिन्द्रमवद्धर्यन्।
जगत्या छन्दसेन्दि्रय शूषमिन्द्रे, वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥” …. -२८.४१
भावना- माता-पिता को मन में यह भावना रखनी चाहिए कि पुष्टि शक्ति के सान्निध्य से बालक/बालिका में तीव्र बुद्धि का विकास हो और उनके अंदर एकाग्रता का गुण आए।
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पट्टी पूजन
कलम और दवात के बाद पट्टी का पूजन किया जाता है। कलम और दवात का उपयोग तभी हो पाता है जब पट्टी या कागज़ उपलब्ध हों, इनकी अधिष्ठात्री देवी ‘तुष्टि’ हैं। तुष्टि का भाव है मेहनत और श्रमशीलता। अच्छा ज्ञान प्राप्त करने के लिए श्रम की भी आवश्यकता होती है। कई लोग ऐसे होते हैं जिनमें पढ़ने के प्रति रूचि भी होती है और मन एकाग्र भी हो जाता है लेकिन उनके अंदर सुस्ती होने के कारण वो जीवन में कुछ नहीं कर पाते इसलिए तुष्टि देवी से कामना की जाती है कि वो शिक्षार्थी को श्रमशील बनाएं।
क्रिया- पट्टी पूजन के दौरान मंत्रोच्चारण के साथ बालक/बालिका के हाथों से पूजा-स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजन सामग्री अर्पित कराए।
मंत्र- ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पतनी सुकृतं बिभर्ति।
अपारसेन वरुणो न साम्नेन्द्र, श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥” …. – १९.९४
भावना- अभिभावक मन में यह भावना रखें कि तुष्टि शक्ति शिक्षार्थी को श्रमशील बनाए और वह जीवन के हर मोड़ पर मेहनत कर सके।
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गुरु पूजन
शिक्षा प्राप्त करने के लिए अध्यापक का होना अनिवार्य है। जैसे अंधकार में एक दिया उजाला कर देता है उसी प्रकार गुरु भी शिष्य में छिपे अँधेरे को ज्ञान रुपी दिए से दूर कर देता है। विद्यारंभ संस्कार के दौरान बालक/बालिका द्वारा गुरु की भी पूजा की जाती है। इससे शिक्षार्थी के मन में अपने गुरु के प्रति सम्मान में वृद्धि होती है और शिक्षक भी शिक्षार्थी को उचित ज्ञान देने के लिए प्रतिबद्ध होता है। हमारे शास्त्रों में गुरु को ब्रह्मा से भी ऊपर माना गया है क्योंकि गुरु के द्वारा ही हमें संसार का ज्ञान होता है।
क्रिया- पूजन प्रक्रिया के दौरान अगर बालक/बालिका के गुरु समक्ष न हों तो गुरु के प्रतीक स्वरूप नारियल का मंत्रोच्चारण के द्वारा पूजन करें।
मंत्र- “ॐ बृहस्पते अति यदयोर्ऽ, अहार्द्द्युमद्विभाति क्रतुमज्ज्जनेषु,
यद्दीदयच्छवसऽ ऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिबृर्हस्पतये त्वा॥
ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।” …..-२६.३, तैत्ति०सं० १.८.२२.१२।
भावना- बालक में शिष्योचित गुण विकसित हों और वो अपने शिक्षक की बातों को भली भाँती समझ पाए यह भावना मन में होनी चाहिए। इसके साथ ही यह भावना भी मन में बनी रहनी चाहिए कि शिक्षार्थी गुरु का कृपा पात्र बना रहे।
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अक्षर लेखन और पूजन
पट्टी या कागज़ पर बालक/बालिका द्वारा ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ लिखा जाए। ऐसा भी किया जा सकता है कि खड़िया के द्वारा शिक्षक स्लेट पर ये शब्द लिख दे और उसके बाद माता पिता के हाथों की सहायता से बालक उन शब्दों के ऊपर लिखे। या शिक्षार्थी का हाथ पकड़कर गुरु स्लेट या कागज पर ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ लिखवाए। ॐ भूर्भुवः स्वः में ॐ परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ नाम है, भू: का अर्थ है श्रम, भुवः का अर्थ है संयम और स्वः का अर्थ है विवेक। ये सारे गुण शिक्षा प्राप्ति के लिए बहुत जरुरी हैं इसलिए विद्याआरंभ संस्कार के दौरान शिक्षार्थी द्वारा यह शब्द लिखवाए जाते हैं। यह काम अगर गुरु द्वारा करवाया जाए तो बहुत शुभ होता है।
क्रिया- अभिभावक अक्षर लेखन करवाने के बाद बालक के हाथों से मंत्र का जाप करते हुए उनपर फूल, अक्षत चढ़वाएं।
मंत्र- “ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च,
नमः शंकराय च मयस्कराय च, नमः शिवाय च शिवतराय च।” ….- १६.४१
भावना- ज्योतिषियों अनुसार अगर ज्ञान को अभिव्यक्त न किया जा सके तो उस ज्ञान का कोई महत्व नहीं रह जाता इसलिए अक्षर पूजन के द्वारा बालक/बालिका में अभिव्यक्ति के गुण डालने की कोशिश की जाती है। ज्ञान के प्रथम चरण में अभिभावकों को अक्षर पूजन कर बालक/बालिका के अंदर खुद को अभियक्त करने की जिज्ञासा डालने का प्रयास किया जाता है।
विशेष आहुति
विद्यारंभ संस्कार के अंतिम चरण में हवन सामग्री में कुछ मिष्ठान मिलाकर पांच बार निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ पांच आहुतियां बालक/बालिका से डलवाएं। मन में भावना करें कि यज्ञ से आयी ऊर्जा से बालक/बालिका में अच्छे संस्कार आए और मानसिक रूप से शिक्षार्थी बलिष्ठ हो।
मंत्र- “ॐ सरस्वती मनसा पेशलं, वसु नासत्याभ्यां वयति दशर्तं वपुः।
रसं परिस्रुता न रोहितं, नग्नहुधीर्रस्तसरं न वेम स्वाहा। इदं सरस्वत्यै इदं न मम।” …..-१९.८३
विशेष आहुति होने के बाद यज्ञ के बाकी कर्म पूरे कर लेने चाहिए और उसके बाद आशीर्वचन, विसर्जन और जयघोष किया जाना चाहिए। अंत में प्रसाद वितरण करने के बाद विद्यारंभ संस्कार का समापन किया जाना चाहिए।
हम आशा करते हैं कि हिन्दू धर्म में वर्णित सभी संस्कारों में से एक विद्यारंभ संस्कार पर आधारित हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा।
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इसी तरह, 10 वीं कक्षा के छात्रों के लिए कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट उच्च अध्ययन के लिए अधिक उपयुक्त स्ट्रीम के बारे में एक त्वरित जानकारी देती है।
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