वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) प्राचीन भारतीय विद्वानों द्वारा परिष्कृत किया गया वह विज्ञान है जिसकी मदद से जीवन की नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है। आज के दौर में भी लोग इस विज्ञान को भवन आदि के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। आज अपने इस लेख में हम वास्तु शास्त्र से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां आपके साथ साझा करेंगे। आइए सबसे पहले वास्तु शास्त्र के इतिहास पर नजर डालते हैं।
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वास्तु शास्त्र का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि वास्तु विद्या प्राचीन समय से ही भारत में थी। हालांकि इसको परिष्कृत करने में आर्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस विद्या के जरिये लोग अपने आसपास के माहौल या घर में आमूलचूल परिवर्तन करके सकारात्मकता लाते थे। भारत के प्राचीन ग्रंथों में वास्तु विद्या के बारे में जिक्र मिलता है। वास्तु को ज्योतिष विद्या का ही एक अंग माना जाता है। ज्योतिषविद् कुंडली के आधार पर भी घर के वास्तु को सुधारने की सलाह पुरातन काल में दिया करते थे और यह चलन आज भी जारी है।
वास्तु शब्द वस्तु से संबंधित माना जाता है। भारत के प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में वास्तु को मकान निर्माण से संबंधित माना जाता है। भारत के प्राचीन नगरों हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के अवशेषों से भी यह पता चलता है कि लोग तब भी वास्तु शास्त्र के अनुसार ही भवनों का निर्माण करते थे। महाभारत काल के शिल्पकार विश्वकर्मा भी भवन और राजमहलों के निर्माण में वास्तु शास्त्र का प्रयोग करते थे, इसके साक्ष्य भी हमारे प्रचीन ग्रंथों में मिल जाते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो वास्तु शास्त्र भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों से विद्यमान है और आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।
वास्तु शास्त्र और पश्चिमी सभ्यता
भारत के अलावा पश्चिमी देश भी अब वास्तु शास्त्र का इस्तेमाल करने लगे हैं। यह भारतीयों के लिए गौरव की बात है कि हमारे मनीषियों ने जिस विज्ञान की सदियों पहले खोज की उसके बारे में जानकर पूरा विश्व चकित है। वास्तु शास्त्र की परिकल्पना तो लंबे समय से थी लेकिन जब पश्चिमी देशों ने भारतीय प्राचीन ग्रंथों में वास्तु शास्त्र के बारे में पढ़ा तो वह आश्चर्यचकित हुए। भारत के मनीषियों ने सदियों पहले जो गूढ़ बातें इस विषय में लिखीं थीं वह पूर्ण तरह सत्य थीं।
वास्तु शास्त्र में दिशाओं का महत्व
आम लोग मूलत: चार दिशाओं के बारे में जानते हैं। हालांकि वास्तु शास्त्र में दस दिशाओं का जिक्र किया जाता है। इसमें पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण के अलावा आकाश, पाताल और चार विदिशाएं भी होती हैं। विदिशा उन दिशाओं को पुकारा जाता है जो चार मुख्य दिशाओं के बीच में होती हैं। इनका नाम ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य है। इन दिशाओं के ज्ञान और अहमियत को देखकर ही वास्तु अनुसार भवन आदि का निर्माण किया जाता है।
पूर्व दिशा
इस दिशा से ही सृष्टि के पालनहार सूर्य देव का उदय होता है इसलिए वास्तु में इस दिशा को महत्वपूर्ण माना जाता है। इंद्र को इस दिशा का स्वामी माना गया है। वास्तुशास्त्र की मानें तो जब भी भवन या दफ्तर का निर्माण करें तो इस दिशा को सबसे खुला रखना चाहिए। यदि इस दिशा में वास्तु ठीक नहीं है तो घर में लोग बीमार पड़ते हैं। इसके साथ ही ऐसे घर में लोगों को जीवन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस दिशा का वास्तु शुभ हो तो घर में शांति और सुख बना रहता है।
पश्चिम दिशा
वरुण और शनि देव को इस दिशा का अधिपति माना जाता है। इस दिशा की शुभता घर के लोगों का भाग्योदय करती है औऱ जीवन में सफलता दिलाती है।
उत्तर दिशा
इस दिशा के स्वामी बुध हैं। इस दिशा को माता का स्थान भी कहा जाता है। इस दिशा की शुभता परिवार में संतुलन लेकर आती है।
दक्षिण दिशा
इस दिशा का अधिपति यमराज को माना जाता है। इस दिशा के शुभता घर में समृद्धि कारक होती है।
आग्नेय दिशा
यह दिशा दक्षिण-पूर्व दिशा के बीच होती है। जैसा कि नाम से ही जाहिर है इस दिशा के स्वामी अग्निदेव हैं। इस दिशा का वास्तु ठीक न हो तो घर में लड़ाई-झगड़े होने की संभावना होती है। वहीं शुभ होने पर यह घर के लोगों को ऊर्जा को बढ़ाती है।
नैऋत्य दिशा
यह दिशा दक्षिण-पश्चिम के मध्य मानी जाती है। इस दिशा का शुभ होना अति आवश्यक माना जाता है क्योंकि इसके अशुभ होने से व्यक्ति को अपमान का सामना करना पड़ता है।
ईशान दिशा
इस दिशा के स्वामी देवों के देव महादेव हैं इसलिए इसकी शुभता अति आवश्यक होती है। इस दिशा में पूजा घर बनाने से जीवन में समृद्धि आती है। शोचालय आदि इस दिशा में नहीं बनाना चाहिए।
वायव्य दिशा
यह दिशा उत्तर-पश्चिम दिशा के मध्य होती है। इस दिशा की शुभता कुंटुंब और सामाजिक संबंधों में आपको सफलता दिलाती है।
ऊर्ध्व दिशा
ब्रह्मा जी को इस दिशा का स्वामी माना जाता है। पूरा आकाश इस दिशा को दर्शाता है। इस दिशा की ओर मुख करके ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अधो दिशा
इस दिशा के स्वामी शेषनाग माने जाते हैं। यह दिशा धरती के नीचे का प्रतिनिधित्व करती है। भवन निर्माण के दौरान भूमि की पूजा का चयन सही तरीके से करने से जीवन में शांति बनी रहती है।
वास्तु के कुछ अचूक उपाय
- यदि आपके घर के मध्य में भारी चीजें रखी हुई हैं तो जीवन में परेशानियां आ सकती है। इसलिए मध्य स्थान को हमेशा खाली रखें क्योंकि इसे ब्रह्मा स्थान माना जाता है।
- घर में मंदिर का निर्माण ईशान दिशा में करने से शुभ फल मिलते हैं।
- घर के शयन कक्ष में कभी भी आइना न रखें इससे वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती हैं।
- धन संचित करने के लिए और आय में वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में धन रखें।
- आग्नेय दिशा में प्रतिदिन कपूर जलाने से धन की वृद्धि होने लगती है।
- सांय काल में मुख्य द्वार के दहीने ओर दीया जलाने से लक्षमी माता खुश होती हैं और इससे घर में धन की प्रचुरता रहती है।
- घर में सुख शांति के लिए साल में दो बार हवन, यज्ञ आदि करवाना शुभ होता है।
निष्कर्ष
वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आप भी अपने भवन या दफ्तर में कुछ परिवर्तन करते हैं तो जीवन की नकारात्मकता दूर हो जाती है। भवन के निर्माण के समय ही यदि आप वास्तु सुधार लें तो इससे आपका जीवन हमेशा के लिए सुखद हो सकता है। इसलिए भारत के इस प्राचीन विज्ञान को अपने जीवन में हम सभी को उतारना चाहिए।
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