प्रभु श्रीराम के अलावा इन 4 योद्धाओं ने भी अहंकारी रावण को किया था पराजित

रावण को बेहद ही शक्तिशाली और बुद्धिमान माना जाता है। लंका पति रावण के बारे में ये भी कहा जाता है कि त्रेता युग के सबसे हीन प्राणी होने के साथ-साथ  वो एक ब्रह्मज्ञानी, कुशल राजनीतिज्ञ और बहुत सी विद्याओं का जानकार भी था लेकिन अपने अहंकार की वजह से उसने अपने सारे अच्छे कर्मों पर कुछ यूँ पानी डाला कि आज रावण सिर्फ एक राक्षस के रूप में जाना जाने लगा है। इस बात से तो सभी लोग अवगत हैं कि अपने अहंकार और बल के घमंड में रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था जिसके बाद भगवान राम ने उसका वध कर दिया था लेकिन यहाँ जो बात बहुत से लोग नहीं जानते हैं वो यह है कि रावण सिर्फ भगवान राम से ही नहीं बल्कि 4 और योद्धाओं से समय-समय पर हार चुका है। 

आज हम आपको बताने जा कि कौन हैं वो 4 योद्धा जिन्होंने समय-समय पर रावण को पराजित किया था। भगवान श्रीराम से पहले रावण भगवान शिव, राजा बाली, बलि, और सहस्त्रबाहु से भी हार चुका था।  हालाँकि रावण को मोक्ष की प्राप्ति तब ही हुई जब वो भगवान राम से हारा। बताया जाता है कि इन चार योद्धाओं में से एक योद्धा ने तो रावण को सिर्फ अपनी बाजू में दबाकर चार समुद्रों की परिक्रमा भी करवा दी थी। आइए जानते हैं कि प्रभु राम के अलावा और किन लोगों से रावण हार चुका था। 

भगवान शिव से रावण की हार:

रावण ज्ञानी होने के साथ-साथ अपने बल पर बहुत अहंकार करने वाला भी बन चुका था। बताया जाता है कि अपने इसी बल के घमंड में एक बार रावण भगवान शिव को ललकारने कैलाश पर्वत पर पहुँच गया। उस वक़्त भगवान शिव अपने ध्यान में लीन थे।  ऐसे में रावण ने पहले तो उन्हें बहुत ललकारा लेकिन जब उसे भगवान से कोई उत्तर नहीं मिला तब वो कैलाश पर्वत को ही उठाने लग गया। तब भगवान शिव को भी गुस्सा आ गया और इसी गुस्से में उन्होंने अपने पैर के अँगूठे से पर्वत को दबा दिया। 

अब रावण भी इसी पर्वत के नीचे दब गया। जब रावण की जान पर बन आयी तब उसने भगवान शिव से अपनी जान की भीख मांगनी शुरू कर दी। बताया जाता है कि इसी दौरान उसने भगवान को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्रोत की रचना कर डाली थी।  तब अंत में रावण की दयनीय हालत देखकर और स्रोत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे मुक्त कर दिया। बताया जाता है कि इस वाकये के बाद ही उसने भगवान शिव को अपना गुरु मान लिया था।  

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सहस्त्रबाहु से रावण की हार : 

सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपने गुरु दत्तात्रेय को प्रसन्न करके सहस्त्र भुजाओं का वरदान प्राप्त किया था। यानी की उनकी हज़ार भुजाएं थीं जिसकी वजह से उसका नाम सहस्त्रबाहु पड़ा था। एक बार रावण अपनी विशाल सेना के साथ सहस्त्रबाहु से युद्ध करने के लिए आ पहुंचा।  तब सहस्त्रबाहु ने अपने हज़ारों हाथों से नर्मदा नदी का पानी रोक लिया और उसे इकट्ठा कर लिया और फिर उसे एक ही झटके में छोड़ दिया। इतने वेग से छोड़े गए पानी का असर ये हुआ कि इससे रावण और उसकी पूरी सेना पानी के प्रवाह में तिनके की तरह बह गयी। इस कारण रावण को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा।  

लेकिन अहंकारी रावण यहीं नहीं रुका। वो एक बार फिर सहस्त्रबाहु के साथ युद्ध करने पहुंचा। तब सहस्त्रबाहु ने रावण को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था। 

राजा बलि से रावण की हार : 

दैत्यराज बलि पाताल लोक का राजा था। एक बार अपने बल के अभिमान में रावण राजा बलि से युद्ध करने के लिए उनके महल में जा पहुंचा। बताया जाता है कि उस वक़्त राजा  के महल में छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे थे। ऐसे में जब उन्होंने रावण को वहां देखा तो उसे पकड़ कर घोड़ों के साथ अस्तबल में बाँध दिया ऐसी स्थिति में फिर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया।  और इस तरह से राजा बलि के महल में रावण की हार हुई। 

बाली से रावण की हार :

रावण की सबसे पहली हार हुई थी बाली के हाथों। बताया जाता है कि राजा बाली को ये विशेष वरदान मिला था कि जो कोई भी उनसे युद्ध करेगा उसकी शक्तियां आधी हो जाएँगी।  एक बार महा-पराक्रमी बाली अपनी विशेष पूजा कर रहे थे कि तभी अहंकारी रावण वहां आ पहुंचा और उसने बाली को युद्ध के लिए ललकारना शुरू कर दिया। उस वक़्त बाली अपनी पूजा में लीन थे ऐसे में रावण के बार-बार ललकारने से उनकी पूजा में विघ्न उत्पन्न हो रहा था। 

इसे परेशान होकर बाली को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने रावण को अपनी बाजू में दबा लिया।  रावण, बाली की बाजू में दबा हुआ था और इसी मुद्रा में उन्होंने चारों समुद्र की परिक्रमा करवा दी। तब रावण ने बाली की बाजू से खुद को छुड़ाने का काफी प्रयास किया लेकिन वो सफल नहीं हो पाया। अपनी पूजा ख़त्म होने तक बाली ने रावण को अपनी बाजू में ही दबाकर रखा ताकि वो आगे उनकी  पूजा में किसी तरह की बाधा उत्पन्न ना कर सके। काफी समय बीत जाने के बाद रावण ने बाली से क्षमा मांगी जिसके बाद ही बाली ने उसे छोड़ा।  

इन चार महा-पराक्रमी योद्धाओं से हारने के बाद भी रावण का अहंकार कम नहीं हुआ और इसी बल के अहंकार में उसने माता सीता का हरण कर लिया।  तब भगवान राम ने अपनी पत्नी को दुष्ट रावण से बचाते हुए उसे मौत के घाट उतार दिया, जिसके बाद रावण को मोक्ष की प्राप्ति हुई।