सनातन धर्म को बहुत ही उदार धर्म माना जाता है। यही वजह है कि हम सृष्टि की लगभग हर चीज को सम्मान देते हैं और पूजते हैं, चाहे वो अग्नि हो, जल, हो, पेड़, पौधे, देवता हों या फिर कोई पशु। शर्त बस यह होती है कि पूजे जाने वाले जीव की मंशा शुद्ध और सात्विक हो और उसके कर्मों से मनुष्य जाति का भला हो रहा हो। लेकिन सनातन ने उनको भी सम्मान दिया है या फिर पूजा की है जिन्होंने जीवन भर भले ही पाप कर्म किए हों लेकिन बेहद अल्प समय के लिए कोई बढ़िया काम किया हो। इस बात का प्रमाण है केरल में मौजूद एक मंदिर जहां दुर्योधन की पूजा की जाती है। आज इस लेख में हम आपको उसी मंदिर के स्थापना की मार्मिक कथा बताने वाले हैं।
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केरल में स्थित दुर्योधन का मंदिर
कहते हैं कि जब पांडव अज्ञातवास में थे तब दुर्योधन ने उन्हें ढूँढने की हर संभव कोशिश की। इसी क्रम में एक दिन दुर्योधन केरल पहुंचा। भूख और प्यास से बेहाल दुर्योधन बड़ा ही विचलित हो रहा था। उसकी यह स्थिति देख कर काडुथासेरी समुदाय के एक बुजुर्ग को दया आ गयी। उस बुजुर्ग ने दुर्योधन की सहायता करते हुए उसके लिए भोजन और पानी का प्रबंध करवाया।
बुजुर्ग की सेवाभाव और सहायता से दुर्योधन भाव-विभोर हो उठा। उसने आगे बढ़ कर उस बुजुर्ग को गले लगाने की कोशिश की तो वह बुजुर्ग पीछे हट गए। दुर्योधन ने बुजुर्ग से इस बाबत जब सवाल किया तो उन्होंने बताया कि वे निचली जाति से वास्ता रखते हैं और ऐसे में उनका किसी क्षत्रिय को गले लगाना सही नहीं है। दुर्योधन ने जब यह सुना तो उसे अपने मित्र कर्ण की याद आ गयी जिसे कभी सूत पुत्र कह कर अपमानित किया गया था।
दुर्योधन ने उस बुजुर्ग को कहा कि जो व्यक्ति किसी भूखे व प्यासे व्यक्ति को भोजन और पानी दे उससे श्रेष्ठ व्यक्ति कोई नहीं। इतना कह कर दुर्योधन ने उसे गले लगा लिया और जाते हुए उनसे वादा किया कि वो वापस उनसे मिलने एक दिन जरूर आएगा। लेकिन दुर्योधन महाभारत के युद्ध में मारा गया। जिसकी वजह से उसका बुजुर्ग को किया गया वादा अधूरा ही रह गया। इस वजह से दुर्योधन की आत्मा ने उस बुजुर्ग को सपने में दर्शन दिये।
अगले दिन जब वो बुजुर्ग सुबह उठे तो उन्हें अपने घर के आँगन में बरगद का एक पौधा मिला। बुजुर्ग ने उस बरगद के पौधे को एक स्थान पर लगाकर उसके पास पूजा की वेदी बनाई। तब से ही लेकर आज तक दुर्योधन की वहाँ पूजा होती है। अब उस छोटी से वेदी की जगह एक बहुत बड़े मंदिर का निर्माण हो चुका है। मंदिर का नाम है “पोरुवाजी पेरुविरुती मालानाडा”।
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यह मंदिर आज भी केरल के कोल्लम जिले में मौजूद है। इस मंदिर में दुर्योधन के द्वारा तोड़ी गयी जाति परंपरा का मान रखते हुए हर धर्म और हरेक जाति के लोगों को आने की अनुमति है। यहाँ तक कि मंदिर के मुख्य पुजारी भी ब्राह्मण नहीं होते बल्कि आजतक उस मंदिर के पुजारी उसी बुजुर्ग के परिवार वाले बनते हैं जिन्होंने दुर्योधन को भोजन कराया था। अब चूंकि मंदिर दुर्योधन का है तो सोचिए कि उन्हें किस चीज का भोग लगाया जाता होगा? नहीं सोच पाए तो कोई बात नहीं, हम बता देते हैं। इस मंदिर में दुर्योधन को मांस, शराब और रेशम के कपड़े चढ़ाये जाते हैं।
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