भगवान शिव को त्रिदेवों में संहारक का दर्जा प्राप्त है। संहारक यानी कि संहार करने वाले देवता। लेकिन भगवान शिव न सिर्फ संहार करते हैं बल्कि रक्षा भी करते हैं। भगवान शिव को ही समर्पित एक मंत्र है जिसे महामृत्युंजय मंत्र भी कहते हैं। भगवान शिव के इस मंत्र के बारे में मान्यता है कि यदि इसका जाप कोई ऐसा व्यक्ति भी करे जो किसी गंभीर या असाध्य रोग से पीड़ित है तो उसे भी अपने कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इस मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु तक का खतरा टल जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस दिव्य मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई?
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अगर नहीं पता है तो आज आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। आज हम आपको इस लेख में एक कथा बताने वाले हैं जिसके जरिये आपको पता चलेगा कि महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई।
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की कथा
कहते हैं कि बहुत पहले मृकंड नामक एक महान ऋषि हुआ करते थे। मृकंड ऋषि भगवान शिव के बड़े भक्त थे। लेकिन उनके जीवन में एक ही दुख था और वो दुख था निसंतान होने का। मृकंड ऋषि और उनकी पत्नी स्वयं के निसंतान होने की वजह से बड़े चिंतित रहते थे। ऐसे में मृकंड ऋषि ने यह फैसला लिया कि वे अपने आराध्य भगवान शिव की तपस्या करेंगे और उन्हें प्रसन्न कर वरदान के रूप में पुत्ररत्न मांग लेंगे।
योजनानुसार मृकंड ऋषि भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गए। अपनी कठोर तपस्या से उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न किया और भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया। तब मृकंड ऋषि ने भगवान शिव से आशीर्वाद के रूप में एक पुत्र मांगा। भगवान शिव ने मृकंड ऋषि की बात सुनी तो उन्होंने उनसे कहा कि मृकंड ऋषि को पुत्र तो जरूर होगा लेकिन उसके जन्म के साथ ही उन्हें खुशी के साथ-साथ शोक भी होगा। इतना कह भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।
समय बीता और भगवान शिव के आशीर्वाद से मृकंड ऋषि की पत्नी गर्भ से हुईं। उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गया। ज्योतिषियों ने जब उसकी कुंडली देखी तो उन्होंने मृकंड ऋषि को बताया कि उनका पुत्र मेधावी और विलक्षण प्रतिभाओं का धनी है और विरले ही ऐसे बालक जन्म लेते हैं लेकिन इस बालक के साथ एक समस्या है और वो ये कि इसकी उम्र महज 12 साल है। मृकंड ऋषि को अपने पुत्र के अल्पायु होने की बात जानकर बड़ा दुख हुआ लेकिन उन्होंने इसे अपनी नियति माना और पुत्र का पालन-पोषण करने लगे।
मृकंड ऋषि की पत्नी अपने पुत्र को बड़ा होते देख चिंतित रहने लगीं। एक दिन उन्होंने अपने पुत्र को उसके अल्पायु होने की बात बता दी। यह सुनकर मार्कण्डेय विचलित नहीं हुए और उन्होंने मन ही मन अपने माता-पिता की खुशी के लिए यह तय किया कि यदि भगवान शिव ने उन्हें अल्पायु रखा है तो अब भगवान शिव ही उन्हें दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी देंगे। ऐसे में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मार्कण्डेय ने अपने पिता से शिव मंत्र की दीक्षा ली, सप्तर्षियों से ज्ञान हासिल किया और इन सब की मदद से उस बालक मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की जिसे हम और आप आज भी पढ़ते या सुनते हैं।
मार्कण्डेय का क्या हुआ?
जब मार्कण्डेय 12 साल के होने वाले थे तब उन्होंने एक शिव मंदिर में शिवलिंग के सामने बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का अखंड पाठ शुरू कर दिया। उनकी मृत्यु का समय आने पर यमराज के यमदूत उन्हें यमलोक ले जाने के लिए आए लेकिन मार्कण्डेय को भगवान शिव की स्तुति करते देख वे उनकी आराधना के खत्म होने का इंतज़ार करने लगे। मगर मार्कण्डेय भला कहाँ रुकने वाले थे। अंत में यमदूतों को वापस जाना पड़ा। यमराज ने जब यमदूतों से खाली हाथ लौटने की वजह पूछी तो उन्होंने विस्तार में उन्हें सारी बात बताई। ऐसे में यमराज ने फैसला किया कि वे खुद मार्कण्डेय को लेने धरती लोक पर जाएंगे।
बालक मार्कण्डेय ने जब यमराज को सामने देखा तो वे शिवलिंग से लिपट गए और महामृत्युंजय मंत्र का ज़ोर-ज़ोर से पाठ करने लगे। ऐसे में यमराज ने मार्कण्डेय को शिवलिंग से हटाने के लिए उसका हाथ खींचना शुरू कर दिया। यमराज के ऐसा करते ही मंदिर में कंपन शुरू हो गयी और एक तेज रोशनी के साथ भगवान शिव रूद्र अवतार के साथ वहां प्रकट हुए और यमराज को चेतावनी दी कि वे उनके भक्त को छोड़ दें।
यमराज भगवान शिव के इस रूप को देख कर कांपने लगे और उन्होंने भगवान शिव के सामने हाथ जोड़ कर माफी मांगी तथा उन्हें याद दिलाया कि यमराज को ये कार्य उन्होंने ही सौंपा है। यह सुनकर भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने यमराज को बताया कि वे मार्कण्डेय की भक्ति से बहुत ही प्रसन्न हुए हैं और उन्हें दीर्घायु होने का वरदान दे चुके हैं। भगवान शिव की ये बात सुनकर यमराज वापस लौट गए।
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