सनातन धर्म बेहद अद्भुत और उदार धर्म है। इस धर्म ने किसी की बुराइयों से ज्यादा उसकी अच्छाइयों को देखने की सीख दुनिया को दी है। यही वजह है कि इस धर्म ने देवताओं को भी पूजा, भूतों को भी पूजा, पशुओं को भी पूजा और पेड़ों को भी पूजा। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि हमारे देश में आज भी एक ऐसी जगह है जहां महाभारत के सबसे बड़े खलनायक की पूजा होती है तो क्या आप हम पर विश्वास करेंगे। बिलकुल! करना ही पड़ेगा। क्योंकि ये कोई बनी बनाई बात नहीं है बल्कि सच है और आज इस लेख में हम आपको उसी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां महाभारत के सबसे बड़े खलनायकों में से एक शकुनि की आज भी पूजा की जाती है।
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हम सबको महाभारत की कहानी पूरी न सही लेकिन मोटे तौर पर तो पता ही है। महाभारत की कहानी में अगर आप से कोई सीधे-सीधे यह पूछे कि आप महाभारत के किन किरदारों को खलनायक के रूप में देखते हैं तो यकीनन आपके सारे जवाबों के बीच एक नाम शकुनि का भी होगा।
शकुनि कौरवों के मामा थे और ये शकुनि ही थे जिन्होंने हर पल कौरवों के मन में लालच और उस लालच को पूरा करने के लिए छल का रास्ता अपनाने का सुझाव दिया। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि शकुनि ने जो रास्ते अपने भांजों को सुझाया था वह गलत था और इस वजह से ही शकुनि महाभारत के सबसे बड़े खलनायकों में से गिने जाते हैं।
लेकिन आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि’ केरल के कोल्लम जिले में महाभारत के इसी शकुनि की आज भी पूजा की जाती है। केरल में स्थित इस मंदिर का नाम है ‘मायम्कोट्टू मलंचारुवु मलनाड’। लेकिन ऐसा क्या है जिसकी वजह से शकुनि की पूजा की जाने लगी। आइये जानते हैं।
क्यों की जाती है इस जगह शकुनि की पूजा?
दरअसल मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के खत्म होने के बाद शकुनि ने जब चारों ओर बिखरी लाशें देखी तो वह पश्चाताप से भर गया। उसे लगा कि शायद वह यह सब रोक सकता था। इसी ग्लानि और पश्चाताप में शकुनि ने गृहस्थ जीवन का त्याग कर सन्यास ले लिया और वह घर से निकल गए।
कहते हैं कि शकुनि चलते-चलते केरल के एक इलाके में पहुंचे और वहाँ उन्होंने एक शिला को भगवान शिव का प्रतीक मानकर उनकी पूजा व कठिन तप किया। भगवान शिव शकुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्होंने उसे मोक्ष का आशीर्वाद दिया।
मान्यता है कि जहाँ शकुनि ने तप किया था उसी स्थान पर आज ‘मायम्कोट्टू मलंचारुवु मलनाड’ मंदिर खड़ा है। आज भी इस मंदिर के अंदर वह शिला मौजूद है जिसकी पूजा शकुनि ने की थी।
सबसे अजीब बात है कि इस मंदिर में शकुनि की कोई भी प्रतिमा नहीं है लेकिन इसके अलावा यहाँ माता भुवनेश्वरी, नागराज और भगवान किरातमूर्ति की प्रतिमा मौजूद है। हर साल यहां मलक्कुडा नामक सालाना उत्सव भी आयोजित होता है। इस दौरान यहां लोगों की भारी भीड़ उमरती है और पूरे धूम-धाम से सभी सुबल पुत्र शकुनि की आराधना करते हैं। आप जानते हैं यहाँ लोग प्रसाद के तौर पर शकुनि को क्या चढ़ाया करते हैं? नारियल, रेशम का कपड़ा और ताड़ी।
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आपको बताते चलें कि इस मंदिर को आज के दौर में लोग पवित्रेश्वरम के नाम से जानते हैं। तो अगली बार आप केरल के कोल्लम जिले की तरफ रुख करें या फिर हाल-फ़िलाहल में आप वहीं कहीं मौजूद हैं तो इस मंदिर के दर्शन करना मत भूलिएगा। एक बात का ध्यान रहे कि आप जब भी दर्शन करें तो कोरोना के सारे नियमों और मानकों का पालन जरूर करें।
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