जैन समुदाय के लोगों के बीच में रोहिणी व्रत (Rohini Vrat) का खास महत्व जाना माना गया है। रोहिणी व्रत प्रत्येक माह में मनाया जाने वाला एक बेहद ही पुण्यदायी व्रत होता है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि, जो कोई भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ इस व्रत को करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और साथ ही ऐसे व्यक्ति की मन और आत्मा की भी शुद्धि होती है।
रोहिणी व्रत रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाता है। रोहिणी नक्षत्र की वजह से ही इस व्रत का नाम रोहिणी पड़ा है। जैन धर्म के अनुयाई इस व्रत के बारे में ऐसा मानते हैं कि, यह व्रत आत्मा की शुद्धि के लिए बेहद उपयुक्त होता है। इस व्रत को नियमित तौर पर करने से व्यक्ति की आत्मा शुद्धि होती है और साथ ही ऐसे व्यक्ति नेक काम करने के लिए प्रेरित होते हैं।
रोहिणी व्रत महत्व
रोहिणी व्रत के दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा का विधान बताया गया है। आत्मा की शांति के साथ-साथ बहुत सी महिलाएं इस व्रत को अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए भी करती हैं। सिर्फ महिलाएं ही नहीं रोहिणी व्रत पुरुष भी कर सकते हैं। जहाँ महिलाएं अपने पति के लिए यह व्रत करती हैं वहीं पुरुष यह व्रत अपने पापों को दूर करने के लिए करते हैं।
इसके अलावा रोहिणी व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि, जो कोई भी इंसान इस व्रत को सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ रखता है माँ रोहिणी उस साधक के घर से कंगाली, गरीबी, और दुःख को दूर भगाकर उनके घर में सुख और समृद्धि की वर्षा करती हैं। रोहिणी व्रत का उद्यापन करने के लिए नियम अनुसार, व्यक्ति को तीन, पांच या सात साल बाद इसका उद्यापन करना चाहिए।
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रोहिणी व्रत पूजन विधि
- इस दिन व्रत या पूजन करने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लेना चाहिए। इसके बाद पूजा प्रारंभ करनी चाहिए।
- इस दिन भगवान वासुपूज्य और माता रोहिणी की पूजा की जाती है।
- ऐसे में स्नान आदि से निवृत होने के बाद पूजा वाली जगह पर भगवान वासुपूज्य की कोई प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद उन्हें वस्त्र, फूल, फल, नैवेद्य, भोग इत्यादि अर्पित करें।
- रोहिणी व्रत के दिन ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को दान देने का विशेष महत्व बताया गया है।
रोहिणी व्रत कथा (Rohini Vrat Katha)
प्राचीन समय में हस्तिनापुर नगर में एक राजा रहता था। राजा का नाम वस्तुपाल था। इसी नगर में राजा का एक मित्र भी रहता था जिसका नाम धनमित्र था। धनमित्र की एक बेटी थी लेकिन उसकी बेटी में से हमेशा एक अजीब प्रकार की दुर्गंध आती रहती थी। एक बार मुनिराज राज भ्रमण के लिए निकले तो इस दौरान वह धनमित्र के घर पहुंच गए। ऐसे में धनमित्र ने अपने पुत्री की दुर्गंध की बात मुनिराज से बताई और कहा कि, ‘मुझे अपनी बेटी को लेकर बहुत चिंता होती है।’
तब मुनिराज ने बेटी के अंदर से आने वाली दुर्गंध की वजह बताते हुए धनमित्र को बताया कि, “एक समय राजा भूपाल गिरनार पर्वत के निकट ही एक नगर में राज्य किया करते थे। उनकी एक रानी थी जिनका नाम था इंदुमती। एक दिन जब राजा रानी वन में भ्रमण कर रहे थे उनकी मुलाकात मुनिराज से हुई। ऐसे में राजा ने अपनी रानी से मुनिराज के भोजन की व्यवस्था करने को कहा।
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हालांकि रानी को राजा की आज्ञा बिल्कुल भी रास नहीं आई। ऐसे में उन्होंने क्रोध में आकर मुनिराज को कड़वी तुंबी का भोजन करा दिया। इसके प्रभाव से मुनिराज को काफी वेदना का सामना करना पड़ा जिसके बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। जब राजा को इस बारे में भनक लगी तो उन्होंने गुस्से में आकर अपनी रानी को नगर से निकाल दिया।
इस बात के चलते रानी के पूरे शरीर में कोढ़ हो गया। अपने पापों का फल भोगते हुए रानी को तमाम तरह के कष्ट और दुख झेलने पड़े और अंत में रानी की भी मृत्यु हो गई। इसके बाद रानी नरक में गई और वहां पर भी उन्हें पशु योनि में जन्म मिला और इसके बाद उसी रानी का पुनर्जन्म आपकी कन्या के रूप में हुआ है। जिसमें उसके पाप के चलते दुर्गंध आती है।
यह सारी बात सुनकर धनमित्र ने पूछा कि, “मैं अपनी बेटी को इस पाप से कैसे दूर करूँ? कृपया मुझे इसका कोई उपाय बताएं।” तब मुनिराज ने धनमित्र से कहा कि, ‘आप खुद और अपनी बेटी को रोहिणी व्रत करें और करने की सलाह दें। प्रत्येक माह में मनाई जाने वाली रोहिणी नक्षत्र में नियमित तौर पर इस व्रत और पूजन को सच्ची श्रद्धा से करें। इस दिन अन्न ना खाएं और पूजा में अपना समय व्यतीत करें। अपनी यथाशक्ति अनुसार लोगों को दान दें। ऐसा आपको कुल 5 वर्ष और 5 माह तक करना है।
मुनिराज के कहे अनुसार धन मित्र ने अपनी पुत्री के साथ मिलकर रोहिणी व्रत किया। जिससे उनकी पुत्री को अपने पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिली और मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग में देवी का रूप प्राप्त हुआ।
रोहिणी व्रत का उद्यापन कैसे करें?
रोहिणी व्रत एक निश्चित समय के लिए किया जाने वाला बेहद ही पुण्यदाई व्रत है। उद्यापन करने के लिए व्यक्ति को कुल तीन, पांच या फिर सात साल तक रोहिणी व्रत करने की सलाह दी जाती है। इस व्रत को पूरा करने के लिए सबसे श्रेष्ठ समय की बात करें तो उसे 5 वर्ष और 5 माह का बताया गया है। इसके बाद उद्यापन के लिए ग़रीबों को खाना खिलाएं और वासुपूज्य भगवान और रोहिणी देवी की पूजा करें और अनजाने में भी हुई अपनी किसी भी गलती की क्षमा माँगें।
2021 में कब-कब मनाया जायेगा रोहिणी व्रत?
रविवार 24 जनवरी रोहिणी व्रत
शनिवार 20 फरवरी रोहिणी व्रत
शनिवार 20 March रोहिणी व्रत
शुक्रवार 16 अप्रैल रोहिणी व्रत
गुरुवार 13 मई रोहिणी व्रत
गुरुवर 10 जून रोहिणी व्रत
बुधवार 07 जुलाई रोहिणी व्रत
मंगलवार 03 अगस्त रोहिणी व्रत
मंगलवार 31 अगस्त रोहिणी व्रत
सोमवार 27 सितंबर रोहिणी व्रत
रविवार 24 अक्टूबर रोहिणी व्रत
शनिवार 20 नवंबर रोहिणी व्रत
शनिवार 18 दिसंबर रोहिणी व्रत
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