सनातन धर्म में पितृ पक्ष की अवधि का विशेष महत्व माना गया है। कहा जाता है यह एक ऐसा समय होता है जब हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप से पृथ्वी पर आते हैं और अपने जीवित परिजनों के हाथों से अपना तर्पण स्वीकार करते हैं। ऐसे में इस दौरान पितरों की शांति के लिए पिंडदान का विधान बताया गया है। इस दौरान यदि सच्ची श्रद्धा और प्रेम के साथ पितरों का श्राद्ध और पिंडदान किया जाए तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और साथ ही व्यक्ति के जीवन से पितृदोष का साया दूर होता है।
जानकारी के लिए बता दें 2021 पर पितृ पक्ष 20 सितंबर सोमवार को प्रारंभ होगा और 6 अक्टूबर बुधवार के दिन इसका समापन होगा। ऐसे में इस दौरान आप अपने पितरों की शांति के लिए पिंडदान आदि कर सकते हैं।
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पितृ पक्ष की इस समय अवधि के दौरान पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है इस दौरान हम जो भी करते हैं उसका फल हमारे पितरों को प्राप्त होता है जिससे वह प्रसन्न होते हैं और हमारे जीवन में सुख समृद्धि का आशीर्वाद बनाए रखते हैं। श्रद्धा भक्ति से किया जाने वाला कर्म काण्ड श्राद्ध कहलाता है। ऐसे में भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक यानी कि 16 दिनों तक पितृ पक्ष या पितरों का श्राद्ध आदि किया जाता है। कहते हैं इस दौरान हमारे पितृ लोग सूक्ष्म रूप से धरती पर आते हैं। तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या कहती है और कैसे आप अपने पितरों का आशीर्वाद अपने जीवन में प्राप्त कर सकते हैं।
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पितृ पक्ष से संबंधित पौराणिक कथा
महाभारत के युद्ध में जब कर्ण की मृत्यु हुई तो इसके बाद उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई। लेकिन यहां पर कर्ण को यह देखकर अचरज हुआ कि उन्हें भोजन की जगह सोने और गहने खाने को दिए जा रहे हैं। इस बात से कर्ण को बेहद ही निराशा हुई और तब उन्होंने इंद्र देवता से इसकी वजह जाननी चाही। कर्ण की दुविधा को देखकर इंद्र देवता ने उन्हें बताया कि क्योंकि आपने अपने जीवन काल में केवल लोगों को सोने के आभूषण दिए हैं और पितरों के लिए कुछ नहीं किया इसी वजह से आपके साथ यह हो रहा है।
इंद्रदेव को तब कर्ण ने बताया कि उन्हें पूर्वजों के बारे में कुछ जानकारी ही नहीं है। कर्ण की इस दुविधा को ध्यान में रखते हुए इंद्र देवता ने उन्हें वापस से 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर जाने की अनुमति दी। इंद्र देवता ने उन्हें कहा कि, इन 15 दिनों में आप अपने पूर्वजों को भोजन का दान आदि करें। कहा जाता है तब से ही यह 15 दिन पितृ पक्ष के रूप में जाने जाते हैं।
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अधिक जानकारी
- कौन होते हैं पितर?
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, जब कोई भी व्यक्ति फिर वह चाहे विवाहित हो या अविवाहित हो, कोई बच्चा हो या कोई बुजुर्गो हो, कोई स्त्री हो या पुरुष हो, यदि उनकी मृत्यु हो गई है या उन्होंने अपना देह त्याग दिया है तो उन्हें पितर कहा जाता है। पितृपक्ष की यह समय अवधि अपने पितरों की आत्मा की शांति और तर्पण के लिए निर्धारित की गई है। इस दौरान हम जो भी काम करते हैं उससे हमारे पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है और हमारे पितृ हमारे जीवन में सुख समृद्धि का आशीर्वाद बनाए रखते हैं।
- जब याद ना हो श्राद्ध की तिथि तो क्या करें?
कई बार हमें इस बात की जानकारी नहीं होती है कि हमारे पितरों ने अपना देह त्याग कब किया था? यानी उनकी मृत्यु कब हुई थी? ऐसे में शास्त्रों के अनुसार आश्विन अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण किया जा सकता है। यही वजह है कि, यह अमावस्या सर्वपितृ अमावस्या कही जाती है।
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