Papmochani Ekadashi 2021: जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और रोचक कथा

हिन्दू धर्म में सभी तिथियों में एकादशी तिथि को सबसे शुभ तिथि का दर्जा प्राप्त है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एकादशी तिथि सृष्टि रचयिता भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। इसलिए एकादशी के दिन विष्णु जी की पूजा-अर्चना कर व्रत रखा जाता है। ऐसी मान्यता है, कि जो भी व्यक्ति एकादशी के दिन पूजा-पाठ कर व्रत रखता है। भगवान विष्णु की उस पर विशेष कृपा बनी रहती है।

हिन्दू पंचांग के मुताबिक हर महीने शुक्ल और कृष्ण पक्ष पर एकादशी तिथि पड़ती है। जिसके आधार पर साल के 12 महीने में 24 एकादशी तिथियां होती है। अगर अधिक मास की दो एकादशी तिथियों को भी जोड़ा जाए तो साल भर में 26 एकादशी तिथियां पड़ती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एकादशी तिथि को हरि का दिन और हरि वासर नाम से भी पुकारा जाता है।

साल 2021 में अप्रैल महीने की कृष्ण पक्ष के 7 तारीख को बुधवार के दिन पापमोचनी एकादशी तिथि है। ऐसी मान्यता है, कि पापमोचनी एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु की उपासना कर उपवास रखने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। और उसे जीवन में सुख-सुविधा प्राप्त होती है। आइए जानते है पापमोचनी एकादशी व्रत का महत्व कथा और पूजा का शुभ मुहूर्त।


पापमोचनी एकादशी शुभ पूजा मुहूर्त


पापमोचनी एकादशी- 7 अप्रैल, 2021, बुधवार
पारण मुहूर्त- 8 अप्रैल, 2021- 13:39:14 से 16:10:59 तक,
कुल अवधि- 2 घंटे 31 मिनट
एकादशी समाप्त – 8 अप्रैल, 2021, 08:42:30

पापमोचनी एकादशी का महत्व


एक साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती है। हिन्दू धर्म में वैसे तो सभी एकादशी तिथियों का अपना अलग-अलग महत्व बताया गया है, परंतु पापमोचनी एकादशी को हिन्दू धर्म में विशेष स्थान दिया जाता है। पापमोचनी में दो शब्द शामिल है, पाप का अर्थ है अपराध और मोचनी का अर्थ है निष्कासन अर्थात् पापमोचनी का अर्थ हुआ पाप का निष्कासन। इसलिए ऐसी मान्यता है, कि जो भी भक्त पापमोचनी एकादशी के दिन पूजापाठ कर व्रत करता है। उसको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। पापमोचनी एकादशी के दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, और खुशहाल जीवन की कामना करते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा और नियम के साथ यदि व्यक्ति पूजा-पाठ कर व्रत रखता है, तो उसे जीवन में अपार धन की प्राप्ति होती है।

पापमोचनी एकादशी पूजा विधि


सभी तरह के पापों का अंत करने वाली पापमोचनी एकादशी तिथि पर आइए जानते है, कैसे करें पूजा और क्या है व्रत की विधि।

प्रात: काल उठकर स्नान करें, साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।

स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।

भगवान विष्णु की पूजा करें, उन्हें धूप, दीप कर, चंदन का तिलक लगाएं, और फल अर्पित करें।
पापमोचनी एकादशी के दिन गरीब और जरूरतमंदों को दान करें, संंभव हो, तो ब्राह्मण को भोजन कराएं।

पापमोचनी एकादशी तिथि पर दिनभर फलहार करें, रात को रात्रि जागरण करें, और अगले दिन द्वादशी के दिन व्रत खोलें ।

पापमोचनी एकादशी व्रत रोचक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, मेधावी नाम के एक ऋषि जो भगवान शिव के परम भक्त थे। चित्ररथ वन में कड़ी साधना कर रहे थे। तभी उस वन में भगवान इंद्र अप्सराओं के साथ घूमने पहुंचे। वहां मेधावी ऋषि को तपस्या करते थे, इंद्र देव के मन में यह ख्याल आया, कि यदि मेधावी ऋषि की साधना ऐसे ही जारी रही, तो निश्चित ही उन्हें स्वर्ग लोक में कोई उच्च स्थान प्राप्त हो सकता है। इसलिए मेधावी ऋषि की साधना को भंग करना ही पड़ेगा। परंतु भगवान इंद्र अपने इस उद्देश्य में सफल नहीं हो पाएं
जिसके बाद मंजुघोषा नाम की एक अप्सरा ने मेधावी ऋषि की साधना भंग करने के लिए कड़ी मेहनत की, लेकिन उसके भी सभी प्रयास विफल रहे। लेकिन अप्सरा मंजुघोषा ने हार नहीं माना और मेधावी के आश्रम से थोड़ी दूर पर रहने लगी, वहां से वह मधुर स्वर में गाना गाती थी। उसकी मधुर वाणी से कामदेव बेहद प्रभावित हुए, और उन्होंने प्रेम के तीर का निशाना लगाकर मेधावी ऋषि का ध्यान मंजुघोषा की तरफ आकर्षित कर दिया। जिसके बाद मेधावी ऋषि अपनी साधना भंग कर अप्सरा मंजुघोषा के प्यार में पड़ गए। अप्सरा मंजुघोषा के प्यार में पड़ कर मेधावी पूरी तरह खुद को समर्पित कर बैठे, और अपनी आत्मा की पवित्रता भी खो बैठे।
लेकिन एक समय के बाद अप्सरा मंजुघोषा मेधावी ऋषि में रूचि खोने लगी, और उन्होंने ऋषि से खुद को मुक्त करने के लिए बोला, जब अप्सरा मंजुघोषा ने खुद को छोड़ने की अनुमति देने की बात बोली, तब मेधावी ऋषि को इस बात का एहसास हुआ की, उनको गुमराह किया गया है। जिसके परिणामस्वरूप वह अपनी कठिन साधना और तपस्या से विचलित हुए हैं। क्रोध में आकर मेधावी ने मंजुघोषा को अप्सरा से एक चुड़ैल के रूप में बदलने का श्राप दे दिया ।
जिसके बाद मेधावी अपने पिता ऋषि च्यवन के आश्रम पहुंचे और उन्हें पूरी व्यथा सुनाई। ऋषि च्यवन ने मेधावी को खुद के पापों को मिटाने के लिए पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। मेधावी के साथ-साथ मंजुघोषा ने भी खुद के द्वारा किए गए छल व धोखे का पछतावा कर पापमोचनी एकादशी का व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की। जिसके फलस्वरूप दोनों अपने-अपने पापों से मुक्त हो गए।