वैदिक ज्योतिष में नवग्रह मंत्र के समान नवग्रह यंत्र का प्रयोग कुंडली में स्थित दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही यंत्रों का प्रयोग किसी देवी, देवता से शुभ फल की प्राप्ति के लिए करते हैं। इन्हें संबंधित ग्रहों के शुभ मुहूर्त में भोजपत्र, कागज अथवा किसी सतह पर एक सममितीय ढांचे के द्वारा दर्शाया जाता है। इन यंत्रों में अपार शक्तियाँ समाहित होती हैं कुछ यंत्र रेखा प्रधान होते हैं, कुछ आकृति प्रधान और कुछ संख्या प्रधान होते है। कुछ यंत्रों में बीजाक्षरों का प्रयोग होता है और बीजाक्षर एक संपूर्ण यंत्र होता है।
यदि आप ग्रहों के यंत्रों को अपने हाथों से बनाना चाहते हैं तो आपको निम्न वस्तुओं की आवश्यकता होगी:
- अनार के वृक्ष की टहनी; जो एक छोर से पेन की तरह से कलम की गई हो।
- अष्टगंध; यह आठ प्रकार की वस्तुओं को मिश्रण है।
- भोज पत्र के छोटे-छोटे टुकड़े।
- गंगा जल।
- तांबे से बनी ताबीज।
यंत्र बनाने की विधि- एक चुटकी अष्टगंध लें इसमें गंगा जल की कुछ बूँदे डालकर इसकी स्याही बनाए। अब अनार की शाखा से निर्मित कलम से भोज पत्र के टुकड़ों पर ग्रहों से संबंधित यंत्र का चित्र बनाएँ और इसे सूखने दें। अब सूखे हुए यंत्र को अच्छी तरह से मोड़कर अपनी ताबीज में डालें। आप इस ताबीज को पीले अथवा लाल धागे में डालकर अपने गले अथवा दाहिनी भुजा में पहन सकते हैं। इस यंत्र को बनाते एवं धारण करते समय संबंधित ग्रह का मंत्र अवश्य उच्चारण करें।
नवग्रह यंत्र
यंत्र स्थापित करने की विधि– नवग्रह यंत्र के माध्यम से नवग्रह पूजा संपन्न होती है। इस यंत्र की स्थापना श्रेष्ठ मुहूर्त देखकर की जा सकती है लेकिन अगर इसकी स्थापना नवरात्र के समय की जाए तो यह अत्यंत प्रभावशाली होता है। स्नान आदि से निवृत्त होकर एक आसन बनाकर उस पर नवग्रह यंत्र को रखें। यंत्र पर पंचामृत छिड़कें और फूल चढ़ाएं। पूजन के बाद सभी नव ग्रह के मंत्रों का जाप करें। अब यंत्र को पूजन कक्ष में रख दें और नित्य इसकी पूजा करें।
सूर्य यंत्र
सूर्य यंत्र का महत्व एवं लाभ- वैदिक ज्योतिष में सूर्य का बड़ा महत्व है। यदि सूर्य यंत्र को पूर्ण विधि विधान के साथ स्थापित किया जाए तो जातक की कुंडली से सूर्य दोष समाप्त हो जाते हैं। सूर्य यंत्र जातक को न केवल सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि यह उनके जीवन में धैर्य, आध्यात्मिक शक्ति और नेतृत्व क्षमता को बढ़ता है। यह रोग-दोष एवं मानसिक तनाव को दूर करने में भी सहायक सिद्ध होता है। इसके अलावा यदि जातक को सरकारी नौकरी पाने की अभिलाषा है तो वह सूर्य यंत्र को स्थापित कर सकता है।
सूर्य यंत्र को स्थापित करने की विधि- सूर्य यंत्र का लाभ प्राप्त करने के लिए इसे पूर्ण विधि-विधान के साथ करना चाहिए। इस यंत्र को रविवार के दिन रविवार होरा या सूर्य नक्षत्र में स्थापित करें। वहीं जिस व्यक्ति को यह यंत्र स्थापित करना है, उसे सूर्योदय से पहले स्नान-ध्यान कर यंत्र को गंगाजल और गाय के दूध से पवित्र करना चाहिए। तत्पश्चात पीला वस्त्र पूर्व दिशा की ओर मुख कर बिछाएँ और फिर उस पर यंत्र को स्थापित करें। अब चारो कोनों और सूर्य के केन्द्र पर चंदन का लेप लगाएँ। साथ में केसरिया एवं लाल रंग के पुष्प रखें और यंत्र की पूजा करते समय “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः” का जाप करें।
चंद्र यंत्र
चंद्र यंत्र का महत्व एवं लाभ- यह यंत्र चंद्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए होता है। चंद्र यंत्र की उपासना करने से भगवान शिव की अनुकंपा प्राप्त होती है। इस यंत्र को सामने रखकर पूजा करने से सभी प्रकार के भय नष्ट हो जाते हैं और शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इसके अलावा व्यापार और नौकरी आदि में सफलता मिलती है। जिसके ऊपर यंत्र की कृपा हो जाए वह व्यक्ति समाज में प्रसिद्धि पाता है तथा उसके कार्यों किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है व मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं।
चंद्र यंत्र को स्थापित करने की विधि – चंद्र ग्रह से शुभ परिणाम पाने के लिए चंद यंत्र को शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों के समय स्थापित करें। इस दौरान पंचोपचार पूजन करें और खीर अथवा किसी सफेद मिठाई का भोग लगाएं और सफेद फूल चढ़ाएँ। उसके बाद स्फटिक की माला से इस मंत्र का जप करें – “ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः”
मंगल यंत्र
मंगल यंत्र का महत्व एवं लाभ- यदि आप अपने कार्य में सफल होना चाहते हैं तो मंगल यंत्र आपके लिए बहुत उपयोगी है। इस यंत्र की उपासना करने से कुंडली में मंगल ग्रह से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं और जातकों की मंगल कामनाएँ पूर्ण होती हैं। यदि राजनीति, गृहस्थ जीवन, नौकरी पेशा आदि क्षेत्रों में कोई समस्या है तो आपको मंगल यंत्र की आराधना अवश्य करनी चाहिए। इससे आपके सभी प्रकार के कष्ट दूर होंगे। मंगल यंत्र के शुभ प्रभाव से जातक के शरीर में बल तथा पराक्रम की वृद्धि होती है।
मंगल यंत्र को स्थापित करने की विधि- मंगल यंत्र को मंगलवार के दिन मंगल की होरा एवं मंगल के नक्षत्र के समय स्थापित करना करना चाहिए। इस दिन स्नान के बाद जातक को यंत्र को सामने रखकर 21 बार मंगल के बीच मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः“ का जाप करना चाहिए। इसके बाद यंत्र पर गंगाजल अथवा कच्चा दूध छिड़कें और फिर यंत्र से मंगल कामना करें। उसके बाद इस यंत्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
बुध यंत्र
बुध यंत्र का महत्व एवं लाभ- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध यंत्र की पूजा करने से जातकों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। जैसे यह यंत्र हमारी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाने में सहायक है। यह हमारी संवाद शक्ति को प्रभावी बनाने में मदद करता है। यदि कोई बुध यंत्र की आराधना करता है तो गणित विषय और कम्प्यूटर आदि के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। इसके अलावा इस यंत्र की कृपा से जातकों को त्वचा संबंधी विकार नहीं होते हैं। कहा जाता है कि बुध ग्रह सीधे व्यापार क्षेत्र को प्रभावित करता है। अतः बुध यंत्र उद्यमियों और सभी व्यापारियों को बड़ा लाभकारी होता है।
बुध यंत्र को स्थापित करने की विधि- बुध यंत्र को बुध की होरा और बुध के नक्षत्र के समय धारण करना चाहिए। इसे पूजा के स्थान में स्थापित करना चाहिए। बुध यंत्र की स्थापना के दिन नहाने के पश्चात अपने यंत्र को सामने रखकर 11 अथवा 21 बार बुध के बीज मंत्र ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः का जाप करना चाहिए। अब बुध यंत्र पर गंगाजल अथवा कच्चा दूध छिड़कें और यंत्र से शुभ फल प्रदान करने की प्रार्थना करें। इस यंत्र की नियमित रूप से पूजा करनी चाहिए।
बृहस्पति यंत्र
बृहस्पति यंत्र का महत्व एवं लाभ- बृहस्पति यंत्र को गुरु यंत्र के नाम से भी जाना जाता है। गुरु यंत्र की कृपा जिस जातक के ऊपर हो जाए तो उस जातक का कल्याण निश्चित होता है। बृहस्पति यंत्र उच्च शिक्षा से संबंधित सभी बाधाओं को दूर करता है। यह यंत्र जातक को धन संपन्नता तथा आध्यातमिक उन्नति के क्षेत्रों में भी बहुत अच्छे फल प्रदान कर सकता है। यदि किसी जातक के वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की समस्या आ रही है तो यह यंत्र उस समस्या को दूर करने में सहायक होता है।
बृहस्पति यंत्र को स्थापित करने की विधि- गुरु यंत्र को गुरुवार के दिन बृहस्पति की होरा एवं इसके नक्षत्र के समय स्थापित करना चाहिए। सर्वप्रथम स्नान के बाद यंत्र को गौमूत्र, गंगा जल व गाय के दूध से स्नान कराएँ। अब यंत्र को पूजा स्थल पर रखें और इसके सामने दीया जलाएँ और पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद पीले फूल, पीले फल व पीली मिठाई चढ़ाएँँ। इसके बाद गुरु के बीज मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः” का जप करें। जप करने के लिए पीले चंदन की माला का उपयोग करें। इस प्रकार प्रतिदिन गुरु यंत्र का पूजन करें व मंत्र जप करें।
शुक्र यंत्र
शुक्र यंत्र का महत्व एवं लाभ- वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र भौतिक सुख, प्रेम, विवाह, वासना एवं कला आदि का कारक है। यदि किसी जातक के जीवन में प्रेम और विवाह का पक्ष कमज़ोर है या सांसारिक सुखों का अभाव है अथवा कला क्षेत्र में उसे परेशानी हो रही है तो उस जातक को अवश्य ही शुक्र यंत्र की पूजा करनी चाहिए। शुक्र यंत्र भौतिक सुख-समृद्धि जैसे अवसरों को अपने साथ लेकर आता है और जातक को इसके बहुत ही अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
शुक्र यंत्र को स्थापित करने की विधि – शुक्र यंत्र को शुक्रवार को शुक्र की होरा एवं शुक्र के नक्षत्र पर स्थापना करना चाहिए। स्थापना से पूर्व स्नान करें और यंत्र को सामने रखकर “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः” मंत्र का 21 बार जाप करें। शुक्र यंत्र पर थोड़े से गंगाजल अथवा कच्चे दूध के छींटे दें और मन में यंत्र से शुभ फल प्रदान करने की प्रार्थना करें। अब इस यंत्र को निश्चित किये गये स्थान पर स्थापित कर दें।
शनि यंत्र
शनि यंत्र का महत्व एवं लाभ- यदि आप चाहते हैं कि शनि की कृपा आपके ऊपर बरसे तो आपको शनि यंत्र की पूजा करनी चाहिए। इसके प्रभाव से जातक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है। शनि यंत्र जातक की संकल्प शक्ति को भी बढ़ाता है। सामान्य रूप से शनि ग्रह की हलचल को शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए शनि ग्रह को शांत रखने के लिए शनि यंत्र की आराधना आवश्यक है। शनि की चाल बेहद धीमी है इसलिए इसके परिणाम भी ठोस एवं स्थिर होते हैं।
शनि यंत्र को स्थापित करने की विधि- शनि यंत्र को शनिवार के दिन शनि की होरा एवं शनि के नक्षत्र में स्थापित करना चाहिए। शनि यंत्र की स्थापना के दिन नहाने के बाद यंत्र को सामने रखकर 21 बार शनि के बीज मंत्र “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” का जाप करें। शनि यंत्र पर थोड़े से गंगाजल अथवा कच्चे दूध के छिड़कें, अब इस यंत्र के माध्यम से शनि महाराज से शुभ फल प्रदान करने की प्रार्थना करें और यंत्र को शुभ स्थान पर स्थापित करें।
राहु यंत्र
अन्य ग्रहों के यंत्रों की तुलना में राहु यंत्र का प्रयोग अधिक होता है। इसका एक कारण यह है कि राहु अधिकतर कुंडलियों में अशुभ या फिर मिश्रित रूप से कार्य करता है। इन दोनों ही स्थितियों में राहु से लाभ प्राप्त करने के लिए इनके रत्न गोमेद का प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि रत्नों का प्रयोग केवल उन्हीं ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए किया जाना चाहिए। राहु यंत्र जातकों को शिक्षा, व्यवसाय, कैरियर में बार बार आ रही परेशानियों, छिपे हुए शत्रुओं, गुप्त रूप से आ रही बाधाओं, छल- कपट, गुप्त रोगों, सामाजिक असम्मान और भेदभाव से बचाता है।
राहु यंत्र को स्थापित करने की विधि- राहु यंत्र को बुधवार के दिन राहु के नक्षत्र में स्थापित करें। यंत्र की स्थापना के दिन स्नान के पश्चात यंत्र को सामने रखकर 21 बार राहु के बीज मंत्र “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः” का जाप करें। अब राहु यंत्र पर थोड़ा गंगाजल अथवा कच्चे दूध छिड़कें। अब यंत्र से अच्छे फल पाने की कामना कर इसके किसी शुभ स्थान पर स्थापित कर दें।
केतु यंत्र
केतु यंत्र को स्थापित करने की विधि- केतु यंत्र को बुधवार के दिन केतु के नक्षत्र में स्थापित करना चाहिए। स्थापित करने से पूर्व स्नान करें और यंत्र को सामने रखकर 21 बार केतु के बीज मंत्र “ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः” का जाप करें। अब यंत्र पर गंगाजल अथवा गाय के कच्चे दूध का छिड़काव करें। इसके बाद यंत्र से शुभ फल प्रदान करने की कामना करें और फिर यंत्र को शुभ स्थान पर स्थापित करें।
वैदिक ज्योतिष में नवग्रह यंत्र और नौ ग्रहों के यंत्रों का कितना बड़ा महत्व है आप यह समझ ही गए होंगे। ज्योतिष में ग्रह शांति के लिए यंत्र पूजा को बहुत कारगर उपाय माना जाता है। यदि आप नवग्रह यंत्र का लाभ पाना चाहते हैं तो आप उपरोक्त विधि के अनुसार यंत्र को प्रतिष्ठित कर उनकी नित्य आराधना करें। निश्चित ही आपको यंत्रों के चमत्कारिक लाभ प्राप्त होंगे।