आज 7 अगस्त बुधवार को जैन धर्म के 23वें तीर्थकर भगवान् श्री पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याण दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, इसलिए जैन धर्म में इस दिन को विशेष महत्व दिया जाता है। जैन धर्म के अनुयायी इस दिन को मोक्ष सप्तमी महोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। आज हम आपको मोक्ष सप्तमी के महत्व और इस दिन किये जाने वाले पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं आखिर कौन थे भगवान् पार्श्वनाथ और क्यों इस दिन को विशेष महत्व दिया जाता है।
मोक्ष सप्तमी का महत्व
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार सावन माह के शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन ही जैन धर्म के 23वें तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसलिए इस दिन को उनके मोक्ष कल्याण दिवस के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि इस दिन को जैन धर्म के दिगंबर और श्वेताम्बर दोनों अनुयायी जैन मंदिरों में जाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। इस दौरान ख़ास मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और भगवान् पार्श्वनाथ का अभिषेक कर सुख शांति की कामना की जाती है। इस दिन जैन धर्म को मानने वाले सभी लोग एक समूह में एकत्रित होकर विशेष पूजा करते हैं।
जैन धर्म में मोक्ष प्राप्त करने को ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जैन धर्म में विशेष रूप से मोक्ष प्राप्ति को ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि मोक्ष की प्रति होना जीवन का सार्थक होना माना जाता है। जैन धर्म के अनुसार जब तक मनुष्य इस संसार में जीवित रहता है तब तक उसे कोई ना कोई चिंता जरूर सताती है और ऐसे में मोक्ष का कोई अर्थ नहीं रह जाता। लेकिन जब किसी को पूर्णतया मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है तो उसके जीवन का अर्थ सार्थक हो जाता है। इस मान्यता के साथ जैन धर्म के अनुयायी इस दिन को मोक्ष सप्तमी के रूप में मनाते हैं।
विशेष पूजा अर्चना के साथ मनाया जाता है इस महोत्सव को
जैन धर्म में इस दिन विशेष रूप से भगवान् पार्श्वनाथ के समक्ष निर्वाण काण्ड के सामूहिक उच्चारण के बाद निर्वाण लाडू चढ़ाने की प्रथा है। इस दिन निर्वाण लाडू या लड्डू चढ़ाना इसलिए आवश्यक माना जाता है क्योंकि जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जिस तरह से लड्डू रस से भड़ा होता है उसी प्रकार से मनुष्य की आत्मा भी यदि पवित्र रसों से भर जाए तो उसे परमात्मा की प्राप्ति करने में देर नहीं लगती।
मोक्ष सप्तमी पूजा विधि
- इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होने के बाद व्रत का संकल्प लें। विशेष रूप से कुंवारी कन्याएं इस दिन निराधार उपवास रखती हैं।
- पूरे दिन स्वाध्याय और अंतः मनन के साथ एक समूह में आत्म चिंतन करते हुए शाम के समय भगवान् पार्श्वनाथ की पूजा की जाती है।
- चूँकि इस दिन को एक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है इसलिए शाम के वक़्त एक बग्गी तैयार कर उसपर भगवान पार्श्वनाथ के साथ व्रती कन्याओं को बिठाकर एक झांकी निकाली जाती है।
इस दिन विशेष रूप से “ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमो नम:” मंत्र का उच्चारण करना विशेष फलदायी माना जाता है।