तुलसीदास जयंती आज, जानिए उनसे जुड़ी ये कुछ दिलचस्प बातें

आज यानी 07 अगस्त को हिंदी साहित्य के महान कवि और रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास जी की जयंती है। सावन शुक्ल पक्ष की सप्तमी को जन्में गोस्वामी तुलसीदास को उनकी रामचरितमानस की रचना के लिए जाना जाता है, जिनकी चौपाईयां आज भी जीवंत हैं। उनके द्वारा लिखी रामचरित मानस में उन्होंने व्यावहारिक जीवन में उन्नति के लिए कई विशेष चौपाईयां लिखी हैं। इसके अलावा उन्होंने भगवान शिव जी की स्तुति के लिए भी कई सुंदर-सुंदर चौपाइयों का वर्णन किया है। ऐसे में सावन में उनकी जयंती के अवसर पर आप भी तुलसीदास जी की उन चौपाईयों के द्वारा न केवल भगवान शिव को स्मरण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं बल्कि आज तुलसीदास जी से जुड़े कुछ विशेष तथ्यों को भी जान सकते हैं। 

रामचरितमानस के लिए आज भी किया जाता है तुलसीदास जी को याद

जानकारी के लिए बता दें कि तुलसीदास जी ने एक हिंदू संत और कवि के रूप में अपनी एक अलग ही पहचान कायम की, जिनमें भगवान राम के प्रति बहुत श्रद्धा थी। उनके द्वारा की गई सभी रचनाओं में से तुलसीदास को महर्षि वाल्मिकी द्वारा संस्कृत में लिखी मूल रामायण को अवधी भाषा में लिखने का श्रेय मिलता है, जिसे हम ‘रामचरितमानस’ के रूप में पढ़ते हैं। तो चलिए आज हम आपको उन्ही ‘रामचरितमानस’ के रचयिता तुलसीदास जी के जीवन और उनसे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण और दिलचस्प तथ्यों के बारे में विस्तार से बताते हैं:-

  • शायद ही कोई जनता होगा कि तुलसीदास ने अपने जीवन का ज्यादातर समय गंगा किनारे बसे यूपी के वाराणसी में बिताया। इसीलिए आज वाराणसी के गंगा नदी पर बने प्रसिद्ध ‘तुलसी घाट’ को उन्हीं के नाम पर रखा गया है। बताया जाता है कि ये वही जगह है जहां तुलसीदास जी ने अपने जीवन का ज्यादातर समय निवास किया था। 
  • कहा जाता है कि तिलसीदास जी को गंगा और वाराणसी से इतना प्रेम और लगाव था कि उन्होंने अपनी आखिरी सांस भी वाराणसी के ही अस्सी घाट पर ली थी। 
  • हालांकि तुलसीदास के जन्म और मृत्यु दोनों ही बातों को लेकर अलग-अलग बातें प्रचलित है,  जिसमें जहाँ कुछ जगहों पर उनके जीवन काल को साल 1497 से 1623 ईं. के बीच का बताया जाता है, तो वहीं कई जगहों पर इसे 1543 से 1623 के मध्यम बताया गया है। ऐसे ही कोई ठोस जानकारी उनके माता-पिता को लेकर भी नहीं मिलती है।
  • मान्यताओं अनुसार वाराणसी के प्रसिद्ध भगवान हनुमान के संकटमोचन मंदिर का भी तुलसीदास द्वारा ही निर्माण किया गया था। माना तो ये भी जाता है कि इस मंदिर की स्थापना से पहले इसी जगह पर तुलसीदास जी को भगवान हनुमान ने पहली बार दर्शन दिए थे, जिसके बाद उन्होंने संकटमोचन मंदिर की स्थापना की। 
  • तुलसीदास को भगवान हनुमान के बाद भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त कहा जाता है। इसलिए भी ऐसी मान्यता है कि उनकी इसी भक्ति के चलते वो कलयुग के अकेले ऐसे मनुष्य थे जिन्हे हनुमान सहित भगवान राम और लक्ष्मण जी ने दर्शन दिए थे।
  • पूरी दुनिया में लोकप्रिय ‘हनुमान चालिसा’ भी तुलसीदास जी की ही प्रसिद्ध रचना है। जिसे उन्होंने अवधी भाषा में लिखा और आज भगवान हनुमान की पूजा में इसका ही विशेष तौर पर प्रयोग किया जाता है। 
  • तुलसीदास जी ने महाकवि वाल्मिकी की रचना रामायण को अवधि भाषा में ‘रामचरितमानस’ का रूप दिया, जिस कारण उन्हें ही कुछ लोग पूर्वजन्म के वाल्मिकी का अवतार मानते थे।
  • मान्यताओं अनुसार तुलसीदास जी को रामचरितमानस की संपूर्ण रचना करने में लगभग 2 साल 7 महीने और 26 दिन का समय लगा था। 
  • रामचरितमानस के अलावा उन्हें सतसई, बैरव रामायण, पार्वती मंगल, गीतावली, विनय पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, कृष्ण गीतावली आदि ग्रंथों की रचना के लिए भी जाना जाता है। 
  • ‘हनुमानाष्टक’ की भी रचना तुलसीदास जी द्वारा ही की गई है। जिसका पाठ हनुमान जयंती पर करने से माना गया है कि व्यक्ति को अपनी हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है और इससे संकटमोचन उसके सभी संकट भी दूर कर देते हैं।
  • वाराणसी के विख्यात मानस मंदिर में उनका हस्तलिखित ‘रामचरितमानस का अयोध्या कांड’ अभी भी वहीं रखा हुआ है, जिसकी देख-रेख का ज़िम्मा तुलसीदास के प्रथम शिष्य राजापुर निवासी गनपतराम के वंशजों द्वारा सालों से किया जा रहा है।