जन्म कुंडली में अष्टम भाव जातकों का आयु भाव कहलाता है। यह भाव जातकों की दीर्घायु अथवा जीवन की अवधि को बताता है। ज्योतिष में इसे मृत्यु का भाव भी कहा जाता है। जहाँ प्रथम भाव व्यक्ति के देह धारण को दर्शाता है। वहीं अष्टम भाव व्यक्ति के देह त्यागने का बोध कराता है। सनातन परंपरा के अनुसार, कुंडली में अष्टम भाव से जीवन के अंत को दर्शाया जाता है। इसलिए इस भाव को अशुभ भाव भी कहा जाता है।
अष्टम भाव के कारकत्व
कुंडली में अष्टम भाव आयु, गुप्तांग, मृत्यु, उपहार, बिना कमाये प्राप्त होने वाली संपत्ति, मृत्यु का कारण, चाह, अपमान, पतन, शमशान घाट, पराजय, दुख, आरोप, नौकर एवं बाधाओं को दर्शाता है।
ज्योतिष में अष्टम भाव का महत्व
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में आठवां भाव विरासत को दर्शाता है। घर के मुखिया की अचानक मृत्यु के बाद मिलने वाली संपत्ति आठवें भाव से देखी जाती है। शोध, गूढ़ विज्ञान, छुपा हुआ खजाना, खदान, कोयला, अनिरंतरता, विनाश, रिस्क, सट्टा व्यापार, लॉटरी, रहस्य, मंत्र, तंत्र, एवं आध्यात्मिक वस्तुओं को अष्टम भाव दर्शाता है।
“संकेतनिधि”के लेखक राम दयालु के अनुसार, अष्टम भाव कष्टों और रहस्य का भाव है। यह व्यक्ति के दुर्भाग्य, मानसिक कष्ट, दुख, लड़ाई-झगड़े, चिंता एवं कठिनाई, कार्य में देरी, उदासी, आरोप, दुर्घटना, शत्रुओं से भय, किसी रोग का ख़तरा, रुकावटें, जेल, ग़लत कार्य आदि को दर्शाता है।
आठवां भाव उस व्यक्ति को भी दर्शाता है जिसके साथ आप व्यापारिक लेनदेन करते हैं। कुंडली में दूसरा भाव धन और व्यक्ति के पारिवारिक जीवन के बारे में बताता है। वहीं आठवां भाव ससुराल पक्ष की संपत्ति अथवा घर से मिलने वाली पैतृक संपत्ति को भी दर्शाने का कार्य करता है। सामान्य भाषा में कहें तो यह व्यक्ति के लिए अनार्जित धन होता है।
“जातक तत्व” में महादेव ने कहा है कि कुण्डली में अष्टम भाव सर्जन्स, मेडिकल ऑफिसर, बूचड़ खाना आदि कार्यक्षेत्र के बारे में बताता है। यदि जातक उपरोक्त क्षेत्र में किसी के साथ मिलकर कार्य करे तो वह उसमें लाभ कमा सकता है। आर. लक्ष्मण के अनुसार, यदि आठवें भाव का स्वामी प्रथमेश और दशमेश से मजबूत अवस्था में हो तो जातक को समाज में अपमानित या आलोचना का पात्र बनना पड़ता है। वहीं सत्याचार्य के अनुसार अष्टम भाव जातक के शत्रुओं के विषय में भी बताता है।
वहीं प्रश्न कुंडली के अनुसार, कुंडली में अष्टम भाव यात्रा में होने वाली कठिनाई, शत्रुओं से मिलने वाला कष्ट, मृत्यु, भष्ट्राचार, लड़ाई-झगड़ा, रोग तथा कमज़ोर पक्ष को दर्शाता है। वहीं मेदिनी ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में आठवें भाव से जनता के विश्वास पर शासन, लाल-फीताशाही, कार्य तथा क्रियान्वयन में तेज़ी, देरी एवं बाधाएँ, दुर्घटना, सोना, क़ीमती रत्न, विरासत मिलने वाली संपत्ति, प्राकृतिक आपदा, भूकंप, समुद्री तूफान, आग, तूफान आदि का विचार किया जाता है
कुंडली में यह भाव विदेशी विनिमय, स्टॉक मार्केट, अनुबंध, कर, राष्ट्रीय ऋण, करों से प्राप्त होने वाला धन, बीमा कंपनियाँ, बीमा के तहत मिलने वाला मुआवजा, जनता की आय, अवरुद्ध परिसंपत्ति, छुपी हुई चीज़ें एवं खोज आदि को बताता है। आठवाँ दूसरे देशों से होने वाली आर्थिक संधि को भी दर्शाता है।
आठवां भाव राष्ट्र के शासक (राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री/चांसलर/राजा/तानाशाह) की मृत्यु के बारे में बताता है। कुंडली में इस भाव से सरकार के कार्यकाल का समापन पर भी विचार किया जाता है। इस भाव का संबंध स्वास्थ्य मंत्रालय, मृत्यु दर, आत्महत्या आदि से भी है।
कुंडली से अष्टम भाव से क्या देखा जाता है?
मृत्यु का स्वरूप – कुंडली में स्थित अष्टम भाव मृत्यु के स्वरूप का भी बोध करता है। इस भाव से जातक की मृत्यु कारण, मृत्यु का स्थान एवं मृत्यु के समय की जानकारी मिलती है। यदि लग्नेश, तृतीयेश, एकादशेश एवं सूर्य आदि का प्रभाव अष्टम भाव तथा अष्टमेष पर पड़ता है तो जातक आत्म हत्या कर लेता है। ऐसे ही आकस्मिक दुर्घटना का पता अष्टम भाव से चलता है। यदि इस भाव में शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो जातक शांतिपूर्ण शांति पूर्ण मृत्यु शैय्या को प्राप्त करता है।
विदेश यात्रा – वैदिक ज्योतिष के अनुसार, अष्टम स्थान को समुद्र का स्थान माना गया है। इसलिए अष्टम भाव पर जब पापी अथवा क्रूर ग्रह का बुरा प्रभाव पड़ता है तो जातक के समुद्र पार विदेश यात्रा पर जाने के योग बनते हैं।
रहस्य की खोज – ज्योतिष में अष्टम भाव का संबंध शोध, गूढ़ विज्ञान में रुचि आदि को दर्शाता है। अष्टम भाव से तृतीय भाव का क्रम अष्टम है। अतः यह भाव भी रहस्मयी खोज से संबंधित है। उधर, पंचम भाव का संबंध जातकों की बुद्धि से होता है। इसलिए तृतीयेश तथा अष्टमेश का पंचम भाव अथवा पंचमेश से संबंध बनता है तो यह स्थिति जातक को महान खोजकर्ता बनाती है। ऐसे जातक शोध के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करते हैं।
दुर्घटना – अष्टम भाव का संबंध दुर्घटना से होता है। व्यक्ति के जीवन में होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाएँ अथवा अचानक लगने वाली चोट आदि को अष्टम भाव से ही देखा जाता है।
आकस्मिक/गुप्त धन – अष्टम भाव से पैतृक संपत्ति, छुपा हुआ धन या संपत्ति को भी देखा जाता है। यदि किसी जातक को पैतृक संपत्ति मिलती है तो उसका संबंध अष्टम भाव से होता है।
आठवें भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध
मृत्यु भाव होने के कारण अष्टम भाव जातक की मृत्यु एवं उसके पुनर्जन्म को भी दर्शाता है। यह पूर्ण बदलाव, दूसरों का धन, एवं घर में किसी की मृत्यु होने के पश्चात प्राप्त होने वाले धन का भी बोध कराता है। यदि किसी जातक का आठवाँ भाव मजबूत नहीं होता है तो जातक को मृत्यु का आभास हो सकता है। यह जीवन में आकस्मिक घटना, उधार, विवाद, रहस्यवाद, गूढ़ विज्ञान, तंत्र-मंत्र, आत्म ज्ञान, षड्यंत्र, छुपी हुई चीज़ों से भी अनुभव कराता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में अष्टम भाव रीढ़ की हड्डी के आधार भाग को दर्शाता है। यह संसार के स्याह पक्ष को भी दिखाता है। अष्टम भाव से आपके उन रहस्यों पर भी विचार किया जाता है जिन्हें आप अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं। किसी जातक की कुंडली में यह भाव मनोचिकित्सक, ज्योतिष, मनोरोग आदि को बताता है।
कुंडली में अष्टम भाव बड़े भाई-बहनों के मार्ग में आने वाली बाधाएँ, दादी माँ के धार्मिक दृष्टिकोण, मोक्ष, वंशावली, देह त्याग, दुर्घटना के कारण होने वाली मृत्यु, भूत-प्रेत, आशाएँ, बॉस की कामनाएँ, समाज में आपके बड़े भाई-बहनों की स्थिति, करियर में लाभ, सहकर्मी, ससुराल पक्ष एवं उनका धन, आपके भाई जीवनसाथी की आय और संपत्ती, पिता के चरण, शत्रुओं के प्रयास आदि को दर्शाता है।
ज्योतिष में अष्टम भाव संतान की खु़ुशियों का बोध कराता है। आपकी संतान किस प्रकार की ख़ुशियों को प्राप्त करेगी। यह विचार आठवें भाव से किया जाता है। इसके अलावा यह भाव शत्रुओं की मृत्यु, शत्रुओं द्वारा रचा जाने वाला षड्यंत्र, उधारी तथा बीते जन्म के विषय में भी बताता है।
ज्योतिष में सातवें भाव को अष्टम भाव की अपेक्षा अधिक ख़तरनाक माना गया है। आठवां भाव सातवें भाव से लाभ को दर्शाता है। इसलिए यदि व्यक्ति का सप्तम भाव मजबूत नहीं होता है तो इसका बुरा प्रभाव आठवें भाव में भी देखने को मिलता है।
लाल किताब के अनुसार अष्टम भाव
लाल किताब के अनुसार, जातक की कुंडली में आठवां भाव मृत्यु, बीमारी, शत्रु, नाले का पानी, कब्रिस्तान, बूचड़खाना आदि को दर्शाता है। यदि कुंडली के दूसरे भाव में कोई भी ग्रह उपस्थित नहीं है तो अष्टम भाव में स्थित ग्रहों का प्रभाव भी शून्य रहेगा। यदि अष्टम भाव और प्रथम भाव में स्थित ग्रह एक-दूसरे के मित्र होते हैं तो जातक दूर की सोचता है और यदि शत्रु हुए तो जातक जीवनभर बिना लक्ष्य के भटकता रहता है।
इस प्रकार आप देख सकते हैं कि अष्टम भाव व्यक्ति को जीवन में यकायक होने वाली चीज़ों का अनुभव कराता है जिसके लिए वह मानसिक रूप से तैयार नहीं रहता है।