वैदिक ज्योतिष के अनुसार शादी से पहले वर और वधु की कुंडली मिलान बहुत आवश्यक है। विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार होता है। ऐसा कहा जाता है कि शादी का पवित्र बंधन व्यक्ति के जन्म से पूर्व स्वर्ग में ही तय हो जाता है और कुंडली मिलान इस जोड़ी को धरती पर पुनः मिलाने का ज़रिया बनता है। शादी की चाह रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए एक अच्छा जीवनसाथी चाहता है। परंतु कई बार ऐसा देखने में आता है कि शादी के बाद पति-पत्नी के बीच रिश्ते बिगड़ जाते हैं। दोनों के विचार अलग होने के कारण मतभेद होने लगते हैं और बाद में ये सब कारण उनके बिछड़ने का कारण बन जाते हैं। शादी के बाद वर-वधु का जीवन सुखी रहे इसलिए कुंडली मिलान के माध्यम से दोनों के गुण मिलाए जाते हैं।
कुण्डली मिलान के द्वारा चुनें बेहतर जीवनसाथी
हिन्दू ज्योतिष के अनुसार विवाह को सफल बनाने के लिए कुंडली मिलान प्रक्रिया बहुत ही है। शादी दो आत्माओं के मिलन का पवित्र बंधन है। यह वर और वधु के बीच सात जन्मों का रिश्ता होता है। कुंडली मिलान को गुण मिलान, लग्न मेल, मेलापक आदि नाम से भी जाना जाता है। विवाह से पूर्व कुण्डली मिलान में गुण मिलान और मांगलिक दोष पर विचार किया जाता है।
गुण मिलान
कुंडली मिलान वर और वधु की जन्म कुंडली (जन्मपत्री) को आधार मानकर किया जाता है। इसमें चंद्र ग्रह की स्थिति को ध्यान में रखकर दोनों के गुण मिलाए जाते हैं। उत्तर भारत में गुण मिलान प्रक्रिया को “अष्टमूलक मिलान” कहा जाता है। यहाँ अष्ट का अर्थ आठ होता है जबकि कूट का मतलब पक्ष होता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि गुण मिलान में आठ पक्षों पर विचार किया जाता है जो निम्न प्रकार के हैं:
- वर्ण : वर्ण को चार भागों बांटा जाता है। जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होते हैं। वर्ण में वर-वधु के अहंकार का मिलान किया जाता है।
- वश्य : वश्य के आधार पर वर वधु कुंडली में यह देखा जाता है कि शादी बाद कौन किस पर हावी रहेगा। इसे पाँच प्रकार से देखा जाता है- मानव, वंचर, चतुष्पद (चार पैरों से चलने वाला), जलचर, कीट (कीड़ा)।
- नक्षत्र : इसमें वर और वधु के नक्षत्र मिलाए जाते हैं। इसमें दोनों का स्वास्थ्य जीवन देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में 27 प्रकार के नक्षत्र होते हैं।
- योनि : इसमें लड़के और लड़की के बीच निकटता, शारीरिक संबंधों में अनुकूलता आदि के बारे में देखा जाता है। योनि कूट को 14 जानवरों में विभाजित किया गया है जो मानव के व्यक्तित्व के लक्षण को दर्शाते हैं। इनके नाम हैं- घोड़ा, हाथी, भेड़, साँप, कुत्ता, बिल्ली, चूहा, गाय, भैंस, चीता, हिरन, बंदर, शेर, नेवला।
- गृह मैत्री : इसमें वर-वधु के मानसिक गुण, आपसी स्नेह, मित्रता आदि को मिलाया जाता है। यह दोनों के बीच चंद्र राशि मिलान को भी दर्शाता है। यह सात ग्रहों को देखकर मिलाया जाता है। सात ग्रह- सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि।
- गण : इसमें वर और वधु के स्वभाव और व्यवहार को मिलाया जाता है। इसको तीन तरह से मिलाया जाता है- देव (व्यक्ति के अंदर सात्विक गुण होते हैं), मानव (इस श्रेणी में व्यक्ति के अंदर रजो गुण होते हैं), राक्षस (इस श्रेणी के व्यक्ति के अंदर तमो गुण होते हैं)।
- भटकूट : इसमें वर-वधु की भावनाओं का मेल देखा जाता है। यह परिवार, आर्थिक समृद्धि और दम्पत्ति के बीच की ख़ुशी को निर्धारित करता है। इसमें वर की कुंडली में स्थित ग्रहों को कन्या की कुंडली के ग्रहों को मिलाया जाता है।
- नाड़ी : इसमें वर-वधु के स्वास्थ्य जीवन को देखा जाता है। इसके साथ ही दोनों की आनुवांशिक अनुकूलता को देखा जाता है। तीन प्रकार की नाड़ी होती हैं – आदि, मध्य और अंत।
कूट |
मिलान के लिए संख्या |
वर्ण |
1 |
वश्य |
2 |
नक्षत्र |
3 |
योनि |
4 |
गृह मैत्री |
5 |
गण |
6 |
भकूट |
7 |
नाड़ी |
8 |
योग |
36 |
गुण मिलान का महत्व
अष्टकूट में कुल 36 गुण होते हैं। यहाँ पर वर और वधु के जितने अधिक गुण मिलेंगे, उनकी शादी उतनी सफल मानी जाएगी।
गुण संख्या |
परिणाम |
18 से कम |
शादी योग्य नहीं माना जाएगा |
18 से 24 तक |
सामान्य |
24 से 32 तक |
उत्तम |
32 से 36 तक |
अति उत्तम |
मांगलिक दोष
विवाह हेतु कुंडली में मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाता है। क्योंकि मंगल दोष व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में क्लेश पैदा करता है। इस दोष के कारण कुटुंब में अनहोनी और रिश्तों में बिखराव पैदा होते हैं। यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष हो तो उसे मंगल दोष को दूर करने के उपाय करने चाहिए।