जिउतिया व्रत 2019: संतान की लंबी उम्र के लिए माँ रखती हैं ये कठोर व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व

हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार विशेष रूप से व्रतों और वारों को विशेष महत्व दिया जाता है। वैसे तो हिन्दू धर्म में खासतौर से हर व्रत और त्यौहार को ख़ास माना जाता है लेकिन जिउतिया एक ऐसा पर्व है,जिस दिन रखें जाने वाले व्रत को ख़ासा कठोर माना जाता है। इस दिन माँ अपने बेटों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। शास्त्रों में इस दिन रखें जाने वाले व्रत को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम आपको विशेष रूप से जिउतिया व्रत के महत्व और इस दिन रखें जाने वाले व्रत की संपूर्ण विधि के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।

 इस साल कब रखा जाएगा जिउतिया व्रत 

आपको बता दें कि, इस साल 22 सितंबर रविवार के दिन में 2 बजकर 10 मिनट से जिउतिया व्रत का आरंभ होगा। इस व्रत का पारण अगले दिन नवमी तिथि में किया जाएगा। इस व्रत को बेहद कठिन माना जाता है। करीबन 24 घंटे के इस व्रत में व्रती माताओं को अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं करना होता है। हिन्दू धर्म में आने वाले सभी व्रतों में से इस व्रत को बेहद ख़ास और कठिन माना जाता है। चूँकि ये व्रत माताएं विशेष रूप से अपने बेटों के लिए रखती हैं इसलिए अपने संतान की मोह में प्रभावपूर्ण ढंग से वो इस व्रत को पूरा करती हैं। 

जिउतिया व्रत का महत्व

सबसे पहले आपको बता दें कि जिउतिया व्रत मुख्य रूप से आश्विन माह की सप्तमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक रखा जाता है। कई जगहों पर इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। इस दिन विशेष रूप से माताएं अपने संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार इस व्रत को संतानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार में माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। इस व्रत के पहले दिन नहाय खाय होता है, दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन पूजा अर्चना के बाद पारण किया जाता है। इस दिन महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।

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जिउतिया व्रत पूजा विधि 

  • इस दिन महिलाएं सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद नए वस्त्र धारण करती हैं। 
  • इसके बाद विधि पूर्वक जीमूतवाहन की पूजा अर्चना की जाती है। 
  • जीमूतवाहन की पूजा के लिए सबसे पहले कुश के प्रयोग से उनकी मूर्ति बना लें। 
  • इसके बाद धूप, दीप और अगरबत्ती दिखाएं, फिर उन्हें अक्षत और फूल अर्पित करें। 
  • इसके बाद गोबर से चील और सियारिन की प्रतिमा बनाएं। 
  • इसके बाद सिंदूर से उन्हें तिलक करें। 
  • पूजा विधि समाप्त होने के बाद जिउतिया व्रत की कथा सुनें। 
  • अगले 24 घंटे पारण तिथि तक श्रद्धापूर्वक व्रत रखें और पारण के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा दें। 

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गौरतलब है कि, जिउतिया व्रत विशेष रूप से सभी संतान प्राप्त महिलाओं के लिए किया जाना आवश्यक माना जाता है।