उत्तर भारत में छठ पूजा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। दिवाली के बाद लोग छठ पूजा की तैयारियों में जुट जाते हैं। वैसे तो यह पर्व देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में इसकी रौनक देखने लायक होती है। छठ पूजा सूर्य देव की उपासना का पर्व माना जाता है। भारत में वैदिक काल से ही सूर्य पूजा की परंपरा चली आ रही है। छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला एक महापर्व है।
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नहाय खाय के दिन से लेकर सुबह उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। वैसे तो यह त्यौहार पूरे नॉर्थ इंडिया में मनाते हैं, लेकिन रांची में इसका अपना एक अलग महत्व है। छठ पर्व की शुरुआत किसने की, इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन कहा जाता है कि राँची में एक गांव है, जहाँ द्रौपदी ने छठ पूजा कि थी। तो चलिए इस लेख में आपको आज बताते हैं उस गाँव और द्रौपदी से जुड़ी उस कथा के बारे में
नगड़ी गांव में किया था द्रौपदी ने छठ
जिस गाँव की हम बात कर रहे वो है रांची का “नगड़ी गांव”। यही पर द्रौपदी ने छठ पूजा की थी। इस गाँव में छठव्रती ना तो नदी में अर्घ्य देती हैं, और ना ही तालाब में। नगड़ी में एक सोते के पास छठ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इसी सोते के पास द्रौपदी भी सूर्योपासना किया करती थी और सूर्य को अर्घ्य देती थी। कहा जाता है कि वनवास के समय झारखंड के इस इलाके में पांडव बहुत ही वक्त तक ठहरे थे।
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यह कहानी है प्रचलित
ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब पांडव वनवास के समय जंगलों में भटक रहे थे, तो अचानक उन्हें प्यास लगी, लेकिन दूर-दूर तक उन्हें पानी नहीं मिला। तब द्रौपदी ने अर्जुन को ज़मीन में तीर मारकर पानी निकालने को कहा। अर्जुन ने द्रौपदी के कहे अनुसार ज़मीन में तीर मार कर वहां पानी निकाला। मान्यता यह भी है कि इसी जल के सोते के पास द्रोपदी सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी उपासना करती थी। सूर्य देव की आराधना कि वजह से ही पांडवों पर हमेशा उनका आशीर्वाद बना रहा। इसी मान्यता कि वजह से आज भी लोग इस जगह पर छठ धूमधाम से मनाते हैं। नगड़ी से थोड़ी ही दूरी पर हरही गांव भी है, जिसे भीम के ससुराल के रूप में जाना जाता है। एक दूसरी मान्यता के अनुसार महाभारत में जिस एकचक्रा नगरी की बात कही गई है, वो यही नगरी थी।
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क्यों कहते है इसे छठ पूजा
जो भी व्यक्ति छठ पूजा के व्रत को रखता है, वह इन दिनों में जल भी नहीं ग्रहण करता। इस व्रत को करने से इंसान को सुख-समृद्धि मिलती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत में वैसे तो मुख्य रूप से सू्र्य देव की पूजा करते हैं, लेकिन साथ ही छठ देवी जो कि सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं, उनकी भी पूजा करते हैं। जिस कारण इस पूजा का नाम “छठ पूजा” पड़ा। छठ पूजा में नदी के तट पर पहुंच कर पुरुष और महिलाएं पूजा-पाठ करते हैं और उपवास रखते हैं। साथ ही छठ माता की पूजा करना संतान के लिए भी कल्याणकारी होता है।
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