वैदिक ज्योतिष में ग्रह युद्ध एक ऐसी स्थिति है जिसका प्रभाव जातक के जीवन पर विशेष रूप से प्रभावी होता है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार के बदलाव आ जाते हैं। ग्रहों की विभिन्न अवस्थाएं होती हैं, जिनमें ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह को “खल” कहा जाता है।
ग्रह युद्ध कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होता है जिसे समझने के लिए हम इस लेख को आगे बढ़ा रहे हैं। खल इस लेख को पढ़कर आपको ज्योतिष में ग्रह युद्ध के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होगी और हम आशा करते हैं कि आप ग्रह युद्ध के बारे में अच्छे से समझ पाएंगे।
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ज्योतिष में ग्रह युद्ध का नाम सुनकर ही किसी को भी डर लग सकता है क्योंकि यह एक ऐसा शब्द है जो अपने आप में ही भयंकर प्रतीत होता है। जिस प्रकार से दो देश, दो राजा या दो लोग आपस में लड़ते हैं, उसी प्रकार ग्रह भी किसी विशेष परिस्थिति में होने पर ग्रह युद्ध में शामिल माने जाते हैं और यही वजह है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में ग्रह युद्ध मौजूद होता है तो वहां पर फलकथन करने में कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकि उनके बिना पूर्ण रूप से फल कथन सत्य नहीं हो सकता है और उसमें चूक होने की संभावना हो बढ़ जाती है। विशेष रूप से प्रश्न ज्योतिष ग्रह युद्ध का महत्वपूर्ण स्थान है।
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वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत नवग्रह की अवधारणा को मान्यता दी गई है। इनमें सूर्य देव ग्रहों के राजा होते हैं और सिंह राशि का प्रतिनिधित्व करते हैं। चंद्रमा को रानी का रूप माना जाता है और ये कर्क राशि के स्वामी होते हैं। मंगल देव ग्रहों के सेनापति माने गए हैं और मेष तथा वृश्चिक राशि के स्वामी होते हैं। बुध ग्रह को राजकुमार की संज्ञा दी गई है और यह मिथुन तथा कन्या राशि के स्वामी होते हैं। शुक्र ग्रह को मंत्री माना जाता है और यह वृषभ और तुला राशि के स्वामी होते हैं तो देव गुरु बृहस्पति को भी मंत्री अथवा सलाहकार माना जाता है और यह धनु और मीन राशि का स्वामित्व अपने पास रखते हैं।
शनिदेव को सेवक की संज्ञा दी गई है और यह मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। राहु और केतु को सेना माना जाता है लेकिन इनकी अपनी कोई राशि नहीं होती है। किसी भी व्यक्ति पर इन ग्रहों का विशेष प्रभाव पड़ता है और जातक की कुंडली में ग्रहों की विशेष परिस्थिति में विभिन्न प्रकार के सुयोग और दुर्योग का निर्माण करती है। जब कुंडली में उपरोक्त ग्रहों की दशा आती है तो वह अपनी स्थिति और नैसर्गिक स्वभाव के कारण जातक के जीवन को सकारात्मक अथवा नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
ज्योतिष में ग्रह युद्ध (Jyotish mein Grah Yuddha )
ज्योतिष में ग्रह युद्ध एक विशेष स्थिति है, जिसमें जब किसी एक भाव में दो या दो से अधिक ग्रह विराजमान होते हैं और एक दूसरे से न्यूनतम अंशात्मक दूरी पर स्थित होते हैं तो उनके बीच ग्रह युद्ध की स्थिति मानी जाती है। जब कुंडली के किसी एक भाव में दो ग्रह या दो से अधिक ग्रह विराजमान होते हैं और उनमें से दो ग्रह या अधिक ग्रह एक दूसरे से 1 अंश के अंतराल पर स्थित होते हैं तो वह ग्रह ग्रह युद्ध का निर्माण करते हुए माने जाते हैं।
ज्योतिष के एक अमूल्य धन अर्थात आचार्य वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता में भी ग्रह युद्ध को समझाया गया है जिसके अनुसार सूर्य और चंद्रमा के अतिरिक्त अन्य पांच ग्रहों के परस्पर अंशों में निकटता होने पर उन्हें ग्रह युद्ध में शामिल माना जाता है। इन ग्रहों की निकटतम दूरी के कारण यह आकाश में एक दूसरे में समाहित होते हुए प्रतीत होते हैं लेकिन ऐसा केवल प्रतीत होता है, वास्तव में ऐसा नहीं होता है। कुंडली के अध्ययन के समय ऐसे ग्रहों को ग्रह युद्ध में शामिल माना जाता है।
ग्रह युद्ध में शामिल ग्रह
ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार सूर्य और चंद्रमा ग्रह युद्ध में शामिल नहीं माने जाते हैं अर्थात ना तो यह ग्रह युद्ध में जीत सकते हैं और ना ही यह ग्रह युद्ध में हारते हैं अर्थात जब भी ग्रह युद्ध के बारे में विचार किया जाता है तो सूर्य और चंद्रमा को शामिल नहीं किया जाता है। वैसे भी जब भी कोई ग्रह सूर्य के समक्ष आता है तो वह अस्त हो जाता है। राहु और केतु छाया ग्रह होते हैं जिस कारण इन दोनों को भी ग्रह युद्ध में शामिल नहीं किया जाता है। यदि ये किसी अन्य ग्रह से न्यूनतम अंशात्मक दूरी पर हों तो ग्रहण लगा सकते हैं लेकिन यह ग्रह युद्ध में शामिल नहीं होते। इनके अतिरिक्त अन्य पांच ग्रह जैसे कि मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि अर्थात ये पांच ग्रह ग्रह युद्ध में शामिल होते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो सौर मंडल में सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर अंडाकार पथ में भ्रमण करते हैं। जब पृथ्वी के सापेक्ष उनको देखा जाता है तो अपने परिक्रमा पथ पर गति करते हुए जब ये ग्रह एक दूसरे के ऊपर आ जाते हैं तो ऐसा लगता है कि यह एक साथ हैं। भले ही वे अपनी कक्षा में अलग-अलग स्थितियों में हों और पृथ्वी से उनकी दूरी अलग अलग हो लेकिन एक समय ऐसा आता है, जब वे एक दूसरे के ऊपर दिखाई देते हैं अर्थात एक दूसरे में समाहित होते हुए दिखाई देते हैं। इसी स्थिति को ग्रह युद्ध कहा जाता है।
ग्रह युद्ध का आंकलन कैसे करें
जब वैदिक ज्योतिष में ग्रह युद्ध की बात की जाती है तो सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि कितने ग्रह एक दूसरे से एक अंश से कम की दूरी पर स्थित हैं। यदि कोई दो ग्रह ही ऐसी स्थिति में हैं तो उनके बीच में ग्रह युद्ध की स्थिति देखी जाती है लेकिन यदि दो से ज्यादा ग्रह एक दूसरे से न्यूनतम अंशात्मक दूरी पर स्थित हों तो उनमें से प्रत्येक को अलग-अलग देखा जाता है और तब प्रत्येक के लिए ग्रह युद्ध का आकलन किया जाता है।
ग्रह युद्ध में जिस ग्रह का भोगांश कम होता है, वह विजयी होता है और जिस ग्रह का भोगांश अधिक होता है, वह पराजित माना जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी कुंडली में बुध और शुक्र ग्रह कुंडली के चौथे भाव में मकर राशि में स्थित हैं और बुध का भोगांश 17 अंश 15 कला है और शुक्र का भोगांश 17 अंश 17 कला है तो यहां बुध और शुक्र एक दूसरे से ग्रह युद्ध की स्थिति में होंगे और चूंकि बुध का भोगांश शुक्र के भोगांश से कम है इसलिए इस ग्रह युद्ध में बुध विजयी होगा और शुक्र ग्रह पराजित होगा।
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ग्रह युद्ध में विजयी और पराजित ग्रह
ग्रह युद्ध को इस तरीके से भी समझा जा सकता है कि जब दो राजा आपस में युद्ध करते हैं तो उनमें एक विजयी होता है और एक पराजित, तो जो ग्रह विजयी होता है, वह अधिक बलवान माना जाता है और वह पराजित ग्रह को अपने अनुसार संचालित करने की शक्ति रखता है जबकि ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह एक हारे हुए राजा की भांति होता है, जिसे वैदिक ज्योतिष में “खल” ग्रह की संज्ञा दी जाती है। जब कुंडली में कोई ग्रह युद्ध में पराजित होता है। जब किसी जातक को कुंडली के अनुसार खल ग्रह की दशा या अंतर्दशा प्राप्त होती है तो जातक को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शारीरिक अथवा मानसिक समस्याएं जातक को पीड़ित करती ही हैं। उसके कार्यों में विलंब होता है और जीवन में संघर्ष बढ़ जाता है।
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ग्रह युद्ध का फल एवं प्रभाव
ग्रह युद्ध में किसी भी ग्रह की स्थिति का आकलन करते समय उस ग्रह के युद्ध बल की गणना की जाती है। जो ग्रह युद्ध में शामिल हैं, उन ग्रहों का स्थान बल क्या है, उनका दिगबल कितना है और काल बल कितना है, ये सभी जानकारियां एकत्रित की जाती हैं। उसके बाद ही कोई ग्रह किस हद तक प्रभावित है और ग्रह युद्ध में विजेता है अथवा पराजित, इसके आधार पर फल कथन किया जाता है। ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह अपनी फल देने की शक्ति को खो देता है और कई बार उसके शुभ फलों में कमी आ जाती है। वह अपनी महादशा, अंतर्दशा अथवा प्रत्यंतर दशा में विशेष रूप से अपने कारकत्वों में कमी करते हुए फल प्रदान करता है।
ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न ग्रंथों जैसे कि सर्वार्थ चिंतामणि, जातकाभरण और मंत्रेश्वर जी की फलदीपिका, आदि इन सभी में खल ग्रह अर्थात ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह के अशुभ परिणाम ही बताए गए हैं। उनके अनुसार उस ग्रह की दशा में व्यक्ति को विदेश भ्रमण करना पड़ता है। वह आर्थिक रूप से कमजोर हो सकता है। बुद्धि का ह्रास हो सकता है। अपने लोगों का वियोग सहन करना पड़ सकता है। पारिवारिक जीवन में कभी भी हो सकती है। यदि ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह योगकारक ग्रह अथवा राजयोग बनाने वाला ग्रह भी हो तो भी उसके फल कम हो जाते हैं।
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ग्रह युद्ध का फलादेश कैसे करें
ग्रह युद्ध में पराजित ग्रह अर्थात खल ग्रह की दशा प्रतिकूल परिणाम देने वाली मानी जाती है। ऐसा ग्रह कुंडली के जिन भावों का स्वामी होता है, उनके फलों को प्रभावित करता है और उनसे संबंधित फलों में कमी आती है और खराब परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा ग्रह जिस भाव में विराजमान होकर ग्रह युद्ध में पराजित हो रहा है, उस भाव के फलों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान दिया जाता है कि जो ग्रह युद्ध में शामिल ग्रह है, वह एक दूसरे से किस प्रकार का संबंध रखते हैं। यदि वे एक दूसरे के लिए मैत्रीपूर्ण हैं तो पराजित ग्रह के अशुभ प्रभावों में कमी आ जाती है लेकिन यदि वे एक दूसरे के शत्रु ग्रह हैं या उनके ऊपर पाप ग्रहों का विशेष प्रभाव पड़ रहा है तो इसकी स्थिति और भी खराब हो जाती है। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रहों से किसी भी प्रकार का संबंध हर ग्रह की फल देने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। यदि शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो परिणामों में कमी आती है और यदि अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो प्रतिकूल प्रभाव मिलते हैं।
उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का पंचमेश ग्रह युद्ध की स्थिति में होकर पराजित हो रहा है तो ऐसे व्यक्ति को शिक्षा में रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है। यहां तक कि प्रेम संबंधों में सफलता या संतान को लेकर समस्याएं हो सकती हैं। हालांकि देश, काल और परिस्थिति का ध्यान दिया जाता है और जातक की किस आयु में खल ग्रह की दशा आ रही है, उसके अनुसार परिणाम बताएं जा सकते।
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उदाहरण के तौर पर यदि किसी विद्यार्थी के जीवन में यदि खल ग्रह की दशा आ रही है और वह उसके पंचम भाव का स्वामी है तो उसकी शिक्षा में व्यवधान आ सकते हैं अथवा मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है। यदि उससे बड़ी आयु के व्यक्ति की कुंडली में खल ग्रह की दशा आई है और उसका पंचमेश ग्रह युद्ध में पराजित है तो उसे प्रेम संबंधों में समस्या होगी। यदि कोई शादीशुदा व्यक्ति खल ग्रह की दशा का प्रभाव झेल रहा है और उसका पंचमेश ग्रह युद्ध में पराजित है तो उसे संतान होने में समस्या हो सकती है अथवा संतान के स्वास्थ्य की समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं।
जब कोई ग्रह युद्ध होता है और उसमें कोई ग्रह पराजित होता है तो उसके जो नैसर्गिक कारकत्व हैं, उनमें कमी आ जाती है और विशेष रूप से व्यक्ति के जीवन में भी उनका प्रभाव दिखाई देता है। उदाहरण के लिए शुक्र ग्रह को भोग और विलास का कारक भी माना जाता है। यदि यह शुक्र ही ग्रह युद्ध में पराजित हो जाए तो व्यक्ति के भोग विलास में कमी आ सकती है और अपनी दशा अंतर्दशा में शुक्र ग्रह व्यक्ति को यौन रोग भी दे सकता है।
इस प्रकार किसी भी व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर ग्रह युद्ध की स्थिति का आकलन किया जा सकता है और उसके आधार पर उसका फल कथन किया जा सकता है।
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