नवरात्रि संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की देशभर में अलग-अलग तरीके से पूजा की जाती है, लेकिन एक चीज़ जो हर जगह सामान्य होती है, वो है माँ दुर्गा को लेकर भक्तों की श्रद्धा।
चैत्र माह के नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है। नवरात्रि में घटस्थापना यानि कलश स्थापना का बहुत महत्व होता है। कलश स्थापना प्रतिपदा यानि नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि घटस्थापना शुभ मुहूर्त में संपन्न हो, तो देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को मनचाहा फल देती हैं।
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लेकिन वहीँ यदि यह पूजा पूरे विधि-विधान और शुभ मुहूर्त में ना हो, तो 9 दिनों तक की जानें वाली यह पूजा सार्थक नहीं मानी जाती और इससे शुभ फलों की प्राप्ति भी नहीं होती। इसलिए ये बेहद ज़रूरी है कि आप नवरात्रि के पहले दिन से जुड़ी सारी जानकरी रखें, ताकि माता की पूजा में कोई कमी न रह जाये और आप छोटी-छोटी ग़लतियाँ जो अक्सर कर देते हैं वो ना करें। चलिए बिना देर किए आपको बताते हैं, नवरात्रि के पहले दिन से जुड़ी हर एक छोटी-बड़ी जानकरी
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नवरात्रि के दौरान मां के 9 रूपों की पूजा की जाती है। माता के इन नौ रूपों को ‘नवदुर्गा’ के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले जानते हैं कि नवरात्रि में कौन से दिन माता के किस रूप की पूजा करनी चाहिए-
- नवरात्रि का पहला दिन – प्रतिपदा – शैलपुत्री
- नवरात्रि का दूसरा दिन – द्वितीया – ब्रह्मचारिणी
- नवरात्रि का तीसरा दिन – तृतीया – चंद्रघंटा
- नवरात्रि का चतुर्थी दिन – चतुर्थी – कूष्मांडा
- नवरात्रि का पाचवां दिन – पंचमी – स्कंदमाता
- नवरात्रि का छठा दिन – षष्ठी – कात्यायनी
- नवरात्रि का सातवां दिन – सप्तमी – कालरात्रि
- नवरात्रि का आठवां दिन – अष्टमी – महागौरी
- नवरात्रि का नौवां दिन – नवमी – सिद्धिदात्री
नवरात्रि में पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। पुराणों के अनुसार कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है, इसलिए लोग माँ दुर्गा की पूजा से पहले कलश स्थापित कर उसकी पूजा करते हैं। जानते हैं कि इस साल घटस्थापना किस मुहूर्त में करनी चाहिए।
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घटस्थापना मुहूर्त और समय
घटस्थापना मुहूर्त | 05:58:27 से 10:14:09 तक |
अवधि | 4 घंटे 15 मिनट |
घटस्थापना की आवश्यक सामग्री
घटस्थापना के लिए सबसे पहले आपको कुछ आवश्यक सामग्रियों को एकत्रित करने की ज़रूरत है। इसके लिए आपको चाहिए-
- चौड़े मुँह वाला मिट्टी का कलश (सोने, चांदी या तांबे का कलश भी आप ले सकते हैं)
- किसी पवित्र स्थान की मिट्टी
- सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज)
- जल (संभव हो तो गंगाजल)
- कलावा/मौली
- सुपारी
- आम या अशोक के पत्ते (पल्लव)
- अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
- छिलके/जटा वाला नारियल
- लाल कपड़ा
- फूल और फूलों की माला
- पीपल, बरगद, जामुन, अशोक और आम के पत्ते (सभी न मिल पाए तो कोई भी 2 प्रकार के पत्ते ले सकते हैं)
- कलश को ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का)
- फल और मिठाई
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घटस्थापना की संपूर्ण विधि
- कलश स्थापना की विधि शुरू करने से पहले सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहने।
- कलश स्थापना से पहले एक साफ़ स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता रानी की प्रतिमा स्थापित करें।
- सबसे पहले किसी बर्तन में या किसी साफ़ स्थान पर मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज डालें। ध्यान रहे कि बर्तन के बीच में कलश रखने की जगह हो।
- अब कलश को बीच में रखकर मौली से बांध दें और उसपर स्वास्तिक बनाएँ।
- कलश पर कुमकुम से तिलक करें और उसमें गंगाजल भर दें।
- इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र, पंच रत्न, सिक्का और पांचों प्रकार के पत्ते डालें।
- पत्तों के इस तरह ऱखें कि वह थोड़ा बाहर की ओर दिखाई दें। इसके बाद ढक्कन लगा दें। ढक्कन को अक्षत से भर दें और उसपर अब लाल रंग के कपड़े में नारियल को लपेटकर उसे रक्षासूत्र से बाँधकर रख दें।
- ध्यान रखें कि नारियल का मुंह आपकी तरफ होना चाहिए। (जानकारी के लिए बता दें कि नारियल का मुंह वह होता है, जहां से वह पेड़ से जुड़ा होता है।)
- देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए कलश की पूजा करें।
- कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूल माला, इत्र और नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
- जौ में नित्य रूप से पानी डालते रहें, एक दो दिनों के बाद ही जौ के पौधे बड़े होते आपको दिखने लगेंगे।
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नवरात्रि के प्रथम दिन इस माँ की करते हैं पूजा
नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा के 9 रूपों को समर्पित होते हैं। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। ये दुर्गा के नौ रूपों में पहला रूप हैं, जिसका संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा करने से पहले घटस्थापना यानि कलशस्थापना की जाती है। ऊपर हमने आपको घटस्थापना के दौरान इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्री और पूरी विधि के बारे में विस्तार से बताया है। प्रतिपदा यानि पहले दिन पीला रंग इस्तेमाल करना चाहिए। इस दिन माँ शैलपुत्री की पूजा में “ह्रीं शिवायै नम:” मंत्र का जाप किया जाता है। प्रसाद के तौर पर इस दिन गाय के शुद्ध घी का प्रयोग करना शुभ माना गया है।
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ऐसा होता है माता शैलपुत्री का स्वरूप
माता शैलपुत्री ने पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया था। यही कारण है की, उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना गया। माता के स्वरुप की बात करें, तो माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल है। देवी के माथे पर अर्ध चंद्र सुशोभित है। माता की सवारी नंदी बैल यानि वृषभ है, इसलिए देवी को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। माँ शैलपुत्री को ही सती के नाम से भी जानते हैं। माता के इस रूप को करुणा व स्नेह का प्रतीक माना जाता है। माँ शैलपुत्री ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा को दर्शाती हैं, इसलिए इसकी उपासना करने से चंद्रमा के द्वारा व्यक्ति पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव निष्क्रिय हो जाते हैं।
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क्यों पहले दिन की जाती है शैलपुत्री की पूजा
शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय को पर्वतों का राजा माना जाता है, जो हमेशा अपने स्थान पर कायम रहता है। ऐसी मान्यता है कि, यदि कोई भक्त अपने आराध्य देवता या देवी के लिए ऐसी ही अडिग भावना रखे, तो उसे इसका भरपूर फल मिलता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ही नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
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हम आशा करते हैं कि घटस्थापना और नवरात्रि के प्रथम दिन के विषय में ऊपर दी गयी जानकारियाँ आपको पसंद आयी होंगी। नवरात्रि के पहले दिन की आप सभी को एस्ट्रोसेज की तरफ़ से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।