दिवाली पर्व पांच पर्वों का अनूठा त्योहार है, जिसे इस वर्ष 14 नवंबर, शनिवार के दिन मनाया जाएगा। इससे पहले नरक चतुर्थी और धनतेरस व इसके बाद भाईदूज और गोवर्धन का पर्व मनाए जाएंगे। ऐसे में अभी से देशभर में दिवाली पर्व की धूम मच गई है। जहाँ बाजारों में खरीदारी शुरू हो गई है तो वहीं घरों और दफ्तरों की साफ़-सफाई का कार्य भी शुरू हो चला है।
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दिवाली के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश और माता सरस्वती की विशेष पूजा का विधान है। ऐसे में हर व्यक्ति इन्हे प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग तरह से प्रयास कर विधि अनुसार इनकी पूजा-अर्चना करता है। इसलिए आज हम आपको दीपावली पर्व से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाओं के बारे में बताएँगे जिनका दिवाली पर विशेष महत्व होता है:-
दिवाली पर्व से जुड़ी पौराणिक कथाएं
पहली कथाः माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश की पूजा करना
पौराणिक काल में एक राजा ने एक लकड़हारे से खुश होकर उसे चंदन की लकड़ी का एक विशाल जंगल उपहार स्वरूप भेट किया। परन्तु गरीब लकड़हारा चंदन की लकड़ी का महत्व नहीं समझता था और वो जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर ही उन्हें जलाकर, अपने लिए भोजन बनता था। ऐसा कई दिनों तक होता रहा। जिसके बाद अपने गुप्तचरों से यह बात राजा तक पहुंची। राजा को समझ आ ही गया कि धन का उपयोग केवल और केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाता है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि तभी से दिवाली के दिन लक्ष्मी जी के साथ भगवान गणेश जी की पूजा किये जाने का विधान शुरू हुआ।
दूसरी कथाः श्री राम का अयोध्या वापस आना
रामायण में इस बात का उल्लेख पढ़ने को मिलता है कि जब चौदह साल का वनवास काटकर भगवान राजा राम, लंकापति रावण का वध कर, वापस अयोध्या नगरी माता सीता, भाई लक्ष्मण और श्री हनुमान संग लौटे, तो उनके अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्या वासियों ने पूरी नगरी को दीयों से सजाया था। चूँकि ये दिन अमावस्या का था ऐसे में अमावस्या की काली रात भी दीपक के प्रकाश से जगमगा उठी और मान्यता अनुसार तभी से दिवाली के दिन दिए जलाकर ख़ुशियाँ मनाए जाने की शुरुआत हुई।
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तीसरी कथा: भगवान कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि दिवाली के एक दिन पहले भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध कर उसे मोक्ष दिलाया था। दानव नरकासुर को मिक्ष दिलाकर भगवान ने पृथ्वी लोक को उसके आतंक से मुक्त किया था और यही कारण था कि इसके अगले दिन पृथ्वी वासियों ने बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रुप में भी दीपावली पर्व मनाया।
चौथी कथा: राजा और साधु
पौराणिक कहानियों के अनुसार प्राचीन काल में एक बार एक साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार उत्पन्न हुआ। जिसे पूरा करने की चाह में उस साधु ने माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या करनी शुरू की। साधु की तपस्या पूरी भी हुई और उसके पश्चात लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर साधू को मनोवांछित वरदान दिया। माता लक्ष्मी से वरदान पाकर साधु अहंकारी हो गया और वो सीधा अपने राज्य के राजा के दरबार में पहुंच गया। दरबार में पहुँचते ही उसने राजा के सिंहासन पर चढ़कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया।
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मुकुट गिरते ही उसके अंदर से एक विषैला सर्प निकल बाहर की ओर भागा। जिसे देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि इस प्रकार साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की। जिसके बाद राजा ने साधु से कुछ माँगने को कहा। साधु ने अपनी बात को मनवाते हुए राजा समेत सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर निकाल दिया। जिसके बाद दरबारियों के बाहर जाते ही, विशाल राजमहल ताश के पत्तों की भाँती गिर कर खंडहर में बदल गया। राजा ने फिर एक बार अपनी और पूरे राजदरबारियों की जान बचने के लिए साधु की प्रशंसा की।
जिसके बाद साधु को अपनी गलती का पता चला, और उसने गणपति को प्रसन्न कर वापस साधु रूप धारण कर लिया। माना जाता है कि तभी से माता लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा किये जाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
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