भगवान सूर्य का वो मंदिर जिसके द्वार रातों-रात घूम गए थे, औरंगजेब से जुड़ा है किस्सा

भगवान सूर्य का वो मंदिर जिसके द्वार रातों-रात घूम गए थे, औरंगजेब से जुड़ा है किस्सा

भारत को अगर मंदिरों का देश कहा जाये तो यह गलत नहीं होगा लेकिन अगर इसे अद्भुत व चमत्कारिक मंदिरों का देश कहा जाये तो वो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत में इतने चमत्कारी मंदिर हैं कि उनकी गिनती करना भी कठिन है। ऐसा ही एक मंदिर बिहार के औरंगाबाद में स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर ने रातों रात अपनी दिशा बदल ली थी। जी हाँ! सुनने में ये थोड़ा अजीब लगे लेकिन इसको लेकर एक कथा भी है और लोग इसके प्रमाण भी देते हैं। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में एक ऐसे अद्भुत सूर्य मंदिर के बारे में बताएंगे जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर ने रातों-रात अपनी दिशा बदल ली थी और जहां भगवान सूर्य तीन अवतार में विराजमान हैं।

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देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद

देव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या फिर सिर्फ देवार्क कह लीजिये। ये तीनों नाम एक ही मंदिर के हैं। भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर कई मायनों में बेहद खास है। मान्यता है कि यह मंदिर त्रेता युग में बनाया गया था। इसे देश के तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। अन्य दो प्रमुख सूर्य मंदिर हैं कोणार्क जो कि उड़ीसा राज्य में है और एक लोलार्क मंदिर जोकि वाराणसी में स्थित है। इस मंदिर के निर्माण की कई कथाएं मौजूद हैं।

कथा 01

इनमें से एक कथा के अनुसार इक्ष्वाकु के पुत्र राजा एल कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। एक बार वे देवारण्य में शिकार खेलने के लिए गए तो उन्हें प्यास लगी। जल स्रोत के तौर पर उन्हें वहाँ एक पुराना पोखर नजर आया। राजा ने जब अपने अंजुली में पानी भर कर अपनी प्यास बुझाई तो उन्होंने देखा कि उस पानी की बूंदे उनके शरीर पर जहां-जहां पड़ी, वहां-वहां उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। यह देखकर राजा ने उस पोखर में छलांग लगा दी और स्नान कर अपने शरीर को स्वस्थ किया। 

इसके बाद उसी दिन देर रात राजा को एक स्वप्न आता है कि जिस पोखर में उन्होंने स्नान किया था उसके तलहटी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में भगवान सूर्य की मूर्ति दबी हुई है। अगले दिन राजा ने उस पोखर की खुदाई करवाई तो वहां सच में तीन मूर्तियां निकली। जिसके बाद राजा ने वहां मंदिर का निर्माण कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित कर दिया।

कथा 02

एक और कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के दो भक्त माली और सोमाली सूर्य लोक जा रहे थे। यह बात किसी वजह से भगवान सूर्य को पसंद नहीं आई और उन्होंने उन दोनों को जलाना शुरू कर दिया। सूरज की गर्मी से झुलसने पर उन दोनों ने भगवान शिव से मदद मांगी जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने सूर्य पर हमला किया और सूर्य के तीन टुकड़े हो गए और वे तीनों धरती पर आकर गिरे। जहां-जहां ये तीन टुकड़े गिरे वहां-वहां मंदिर है। इन मंदिरों के नाम हैं कोणार्क, लोलार्क और देवार्क।

मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने रातो रात किया था। मंदिर का शिल्प बेहद अद्भुत और आकर्षक है। इसकी शिल्प कला में नागर, द्रविड़ और बेसर तीनों का संगम नजर आता है। मंदिर की छवि बहुत हद तक कोणार्क मंदिर जैसी ही है। मंदिर लगभग 100 फीट ऊंचा है। मंदिर के अंदर भगवान सूर्य तीन रूपों में विराजमान हैं। उनके ये तीन रूप उदयाञ्चल, मध्यांचल और अस्तांचल के रूप हैं यानी कि उगते हुए सूरज, दोपहर के सूरज और अस्त होते सूरज का रूप है। मंदिर के बाहर भगवान शिव और माता पार्वती की भी मूर्ति है जो बेहद अलग है। पूरे देश में यही एक ऐसा मंदिर है जहां माता पार्वती भगवान शिव की जांघों पर बैठी हुई हैं। मंदिर की एक और खास बात ये है कि यह इकलौता ऐसा सूर्य मंदिर है जो पश्चिमाभिमुख है।

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जब मंदिर का द्वार खुद ब खुद पश्चिम की ओर मुड़ गया

मान्यता है कि जब औरंगजेब भारत के अलग-अलग मंदिरों को तोड़ रहा था तब वह यहाँ भी पहुंचा। उसे देख कर मंदिर के पुजारी उससे अनुनय-विनय करने लगे कि औरंगजेब इस मंदिर को न तोड़े। यह सुनकर औरंगजेब ने उन पंडितों से कहा कि वो कल सुबह दोबारा आएगा, ऐसे में अगर इस मंदिर में सच में कोई भगवान है तो यह मंदिर रातों-रात घूम क्यों नहीं जाती। अगर ये रातों-रात घूम जाये तो वो इस मंदिर को नहीं तोड़ेगा। अगली सुबह जब औरंगजेब पहुंचा तो उसने पाया कि वह मंदिर सच में घूम चुकी थी।

कहते हैं कि तब से यह मंदिर ऐसा ही है और देश का पहला ऐसा सूर्य मंदिर है जिसकी दिशा पश्चिम की ओर है। मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। लोगों की मान्यता है कि भगवान सूर्य सभी की मनोकामना पूरी करते हैं। हर साल यहां छठ के समय बहुत बड़ा मेला लगता है।

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