Dayanand Saraswati Jayanti 2021: वेदों में अटूट विश्वास रखने वाले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती साल 2021 में 8 मार्च को सोमवार के दिन, यानी आज है। आइए इस मौके पर जानते है दयानंद सरस्वती के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें। महर्षि दयानंद सरस्वती को समाज में एक समाज सुधारक और महान चिंतक का दर्जा मिला है। इतिहास के पन्नों को पटल कर देखें तो मालूम होता है, कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने जीवन में भारत को जोड़ने और अंग्रेजों के चंगुल से उसे छुड़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय : (Dayanand saraswati jeevan parichay)
महर्षि दयानंद सरस्वती जी का जन्म सन् 1924 में 12 फरवरी को हुआ था। दयानंद सरस्वती गुजरात के टंकारा गांव के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इनका वास्तविक नाम मूल शंकर अंबा शंकर तिवारी था। दयानंद सरस्वती के पिता अंबाशंकर तिवारी एक टैक्स कलेक्टर थे। दयानंद की माता जी एक धर्मिक महिला थी। उनका नाम अमृता था, और वह परिवार की देखरेख करती थी। महर्षि दयानंद सरस्वती जी का परिवार आर्थिक तौर पर संपन्न था। बचपन से ही दयानंद बुद्धिमान थे। उनके घर का वातावरण धार्मिक रहा जिसका असर दयानंद के संस्कारों से पता लगाया जा सकता है। बचपन से ही उन्हें उपनिषद, वेद, धार्मिक पुस्तकों का अच्छा ज्ञान हो गया था। दयानंद जी ने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन किया था।
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किस घटना से बदल दिया दयानंद सरस्वती का जीवन
ब्राह्मण घर में जन्म लेने के कारण दयानंद सरस्वती हमेशा अपने पिता जी के साथ धार्मिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होते थे। एक बार की बात है, वह अपने पिता के साथ शिवरात्रि के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। जहां रात्रि जागरण के दौरान उन्होंने देखा की भगवान शिव के भोग की थाली को चारों तरफ से चूहों ने घेर रखा है। यह वाक्य देख दयानंद सरस्वती के मन में ख्याल की यदि स्वयं ईश्वर अपने प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकते, तो भला वह लोगों की रक्षा कैसे करेंगे। उसके बाद दयानंद सरस्वती जी पर इसका गहरा असर पड़ा, और इस घटना ने उनका जीवन बदल दिया। दयानंद सरस्वती का पूरी तरह ईश्वर पर से विश्वास खत्म हो गया। आगे चलकर दयानंद सरस्वती ने मथुरा में स्वामी विरजानंद से शिक्षा लेकर देशभर में चल रहे पाखंड का खंडन भी किया।
दयानंद सरस्वती के जीवन से जुड़ी रोचक बातें
- दयानंद सरस्वती का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। और इसी वजह से उनके पिता ने उनका नाम मूल शंकर तिवारी रखा।
- दयानंद सरस्वती बचपन से ही होनहार थे। दो साल की उम्र में वह गायत्री मंत्र का उच्चारण करने लगे थे।
- 14 साल की उम्र में दयानंद सरस्वती धर्म शास्त्रों के साथ-साथ संस्कृत व्याकरण, और वेदों का अध्ययन करने लगे थे।
- जब महर्षि दयानंद सरस्वती का आस्था पर से विश्वास उठने लगा तो उन्होंने मथुरा में स्वामी विरजानंद से शिक्षा लेकर देशभर में चल रहे पाखंड का खंडन करना शुरू कर दिया।
- दयानंद सरस्वती ने सन् 1875 में आर्य समाज की स्थापना की, और दुनिया को इसका महत्व भी बताया।
- महर्षि दयानंद ने जीवन में हर तरह की सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई।
- जातिवाद और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ महर्षि दयानंद ने एक बड़ी लड़ाई लड़ी।
- महर्षि दयानंद सरस्वती ने समाज में विधवा विवाह को बढ़ावा दिया।
- दयानंद सरस्वती ने सन् 1846 में घर छोड़ दिया था। उसके बाद वह अंग्रेजों के खिलाफ प्रचार करने में जुट गए।
- स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कुछ पुस्तकें भी लिखी थी, जिसमें प्रमुख है सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेद भाष्य, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, यजुर्वेद भाष्य, पंचमहायज्ञ विधि, आर्याभिविनय, संस्कार विधि, गो-करुणानिधि, वेदांग प्रकाश, संस्कृतवाक्यप्रबोध, भ्रान्ति निवारण, अष्टाध्यायी भाष्य, और व्यवहारभानु।