उत्तराखंड की चार धाम यात्रा हिंदुओं की पवित्र और आध्यात्मिक यात्राओं में से एक है। इस यात्रा को “छोटा चार धाम” भी कहा जाता है, जिनमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री मंदिरों के दर्शन शामिल हैं। इन चारों धार्मिक स्थलों को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र और खास माना जाता है, जिनकी अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक ही राज्य में होने के कारण यह चार धाम भक्तों के लिए सुगम माने जाते हैं। माना जाता है कि चार धामों की पवित्र यात्रा और दर्शन करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है और मनुष्य जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। तो चलिए आज इस लेख में आपको उत्तराखंड की चार धाम यात्रा के विषय में विस्तार से बताते हैं।
यमुनोत्री
छोटा चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव “यमुनोत्री” माना जाता है। यमुनोत्री का मंदिर बांदरपूंछ के पश्चिमी छोर पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना को सूर्य की पुत्री और यम को उनका पुत्र मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करता है, यमराज उसके साथ सख्ती नहीं बरतते। यमुना में स्नान करने से मौत का भय भी दूर हो जाता है। मंदिर के पास गरम पानी के कई सोते हैं, जिसमें सूर्य कुंड अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस कुंड में श्रद्धालु चावल और आलू कपड़े में बांधकर पकाते हैं, और इसे प्रसाद के तौर पर घर ले जाते हैं। यमुनोत्री का मंदिर अक्षय तृतीया यानि मई में खुलता है, और नवंबर में यामा द्वितीया यानि दिवाली के दो दिन बाद बंद हो जाता है। मंदिर सुबह 6 बजे से लेकर शाम 8 बजे तक खुला रहता है।
गंगोत्री
पौराणिक कथाओं में कहा गया है, कि गंगा नदी सबसे पहले गंगोत्री में ही अवतरित हुई थी। गंगोत्री को गंगा का उद्गम स्थल मानते है। छोटा चार धाम यात्रा में यमुनोत्री के बाद गंगोत्री की यात्रा करने का विधान है। यहाँ गंगा मंदिर जिसमें शंकराचार्य द्वारा स्थापित प्रतिमा मौजूद है, सूर्यकुण्ड, विष्णुकुंड, ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल हैं। हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। मंदिर अक्षय तृतीया यानि मई में खुलता है, और यामा द्वितीया या दीवाली के दो दिन बाद यानि नवंबर में बंद हो जाता है। गर्मियों में सुबह 6.15 से दोपहर 2 बजे तक और उसके बाद शाम 3 बजे से रात 9.30 तक, जबकि सर्दियों में सुबह 6.45 से 2 बजे दोपहर तक और उसके बाद शाम 3 बजे से शाम 7 बजे तक मंदिर खुला रहता है।
केदारनाथ
हिंदू धर्म में यमुनोत्री से केदारनाथ के ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक को पवित्र माना जाता है। वायुपुराण के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए भगवान विष्णु बद्रीनाथ में अवतरित हुए। बद्रीनाथ में पहले भगवान शिव का निवास था, लेकिन भगवान विष्णु के लिए शिव जी बद्रीनाथ छोड़ कर केदारनाथ चले आए। भगवान शिव द्वारा किए त्याग की वजह से केदारनाथ को प्राथमिकता दी जाती है। केदारनाथ समुद्र तल से 11,746 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान गणेश, पार्वती, विष्णु और लक्ष्मी, कृष्ण, कुंती, द्रौपदी, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा अर्चना भी की जाती है।
बद्रीनाथ
गंगा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ समुद्र तल से 3050 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यह मंदिर नर और नारायण पर्वत के बीच स्थित है, साथ ही अलकनंदा नदी भी इस मंदिर की खूबसूरती में चार चाँद लगाती है। बद्रीनाथ मंदिर में हमेशा अखंड-ज्योत जलती रहती है। ऐसा माना जाता कि इस स्थान पर भगवान विष्णु ध्यानमग्न रहते हैं। इस मंदिर में नर और नारायण के अलावा माता लक्ष्मी, शिव-पार्वती और भगवान गणेश की मूर्ति भी है।
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