सनातन धर्म में चातुर्मास का बड़ा महत्व है। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि से चातुर्मास शुरू हो जाता है। इस दौरान कई कार्य निषेध भी होते हैं और कई कार्यों को करने पर शुभ फल की प्राप्ति भी होती है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में बताने वाले हैं कि क्या होता है यह चातुर्मास, कितनी अवधि होती है इसकी और इस दौरान पालन किए जाने वाले कौन-कौन से नियम होते हैं।
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क्या होता है चातुर्मास?
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूरे सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु पूरी सृष्टि का संचालन भगवान शिव को सौंप कर स्वयं क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। इसके बाद वे कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जागते हैं।
भगवान विष्णु के शयन काल की यह पूरी अवधि चार महीने की होती है। इसी वजह से इस पूरी अवधि को चातुर्मास कहते हैं।
आज से शुरू रहा है चातुर्मास?
हिन्दू पंचांग के अनुसार चातुर्मास आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को शुरू हो रहा है जो कि आज के दिन यानी कि 20 जुलाई 2021 को मंगलवार के दिन पड़ रही है। 14 नवंबर 2021 को कार्तिक मास के एकादशी तिथि को रविवार के दिन इसका समापन हो जाएगा।
आइये अब आपको बताते हैं कि सनातन धर्म में चातुर्मास का क्या महत्व है।
सनातन धर्म में चातुर्मास का महत्व क्या है?
मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सो जाते हैं और इस दौरान भगवान शिव के हाथों में सृष्टि का संचालन आ जाता है। ऐसे में इस दौरान तमाम तरह के मांगलिक कार्य तो वर्जित रहते हैं लेकिन धर्म-कर्म व दान-पुण्य के लिए इस समय को अनुकूल माना जाता है। इसके पीछे जो वजह बताई जाती है वह भगवान शिव से जुड़ी है।
चूंकि इस समय भगवान शिव के हाथों में सृष्टि का संचालन करने की ज़िम्मेदारी होती है और भगवान शिव को स्वभाव से बेहद भोला माना जाता है। वे जल्द ही किसी बात पर प्रसन्न हो जाते हैं और जल्द ही किसी बात पर नाराज भी हो जाते हैं। ऐसे में चातुर्मास में किए गए दान-पुण्य, पूजा-पाठ व धर्म-कर्म का फल भी तुरंत प्राप्त होता है। वहीं इस दौरान किए गए गलत कार्यों पर भगवान शिव दंड भी देते हैं। यही वजह है कि चातुर्मास में निषेध कार्यों का कड़ाई के साथ पालन करना चाहिए।
ऐसे में आपके मन में एक सवाल यह भी उठ रहा होगा कि जब सारे शुभ कार्य चातुर्मास में किए जा सकते हैं तो फिर मांगलिक कार्य जैसे कि विवाह व जनेऊ आदि पर क्यों पाबंदी है। दरअसल मांगलिक कार्यों में सभी देवताओं का आवाहन किया जाता है और उन सभी का आशीर्वाद लिया जाता है लेकिन चातुर्मास के दौरान सो रहे भगवान विष्णु किसी भी मांगलिक कार्य में उपस्थित नहीं हो पाते हैं जिसकी वजह से उनका आशीर्वाद किसी को प्राप्त नहीं हो पाता है। यही वजह है कि सारे मांगलिक कार्य उनके नींद से उठने के बाद ही शुरू किए जाते हैं।
आइये अब जान लेते हैं कि वे कौन से कार्य हैं जिन्हें करना चातुर्मास की अवधि में वर्जित बताया गया है।
कौन से कार्य हैं चातुर्मास में वर्जित?
चातुर्मास के दौरान खानपान का विशेष तौर पर ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। चातुर्मास के चार महीनों में खानपान को लेकर कुछ नियम हैं जैसे कि सावन में साग व हरी सब्जियां, भादो के महीने में दही, अश्विन के महीने में दूध और कार्तिक माह में दाल खाना वर्जित माना गया है। इसके अलावा इन चार महीनों में मांस, मदिरा व तामसिक भोजन का सेवन करने से भी बचना चाहिए। कांसे के पात्र में भोजन करना भी निषेध माना गया है।
शरीर पर तेल लगाना भी चातुर्मास में वर्जित माना गया है। इसके अलावा इस अवधि में किसी की निंदा करने से भी जातक पाप के भागीदार बनते हैं। गुड़, मूली, बैंगन, परवल व शहद का सेवन भी इस दौरान निषेध माना गया है। चातुर्मास के दौरान पलंग पर सोना भी वर्जित है।
कौन से कार्य चातुर्मास में किए जा सकते हैं?
चातुर्मास के कड़े नियमों की वजह से ही सनातन धर्म में इस अवधि को आत्मसंयम काल भी कहा जाता है। इस दौरान जातकों को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए। साफ वस्त्र धारण कर प्रत्येक दिन भगवान विष्णु की आराधना करें। भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप इस दौरान विशेष रूप से फलदायी माना गया है। भगवान विष्णु को इस दौरान पीले फूल और फल अर्पित करें। पीली मिठाई का भोग लगाएं। ब्रह्मचर्य का पालन करें और दान-पुण्य करें।
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