सनातन धर्म में कई व्रत और त्योहार मनाने की परंपरा रही है। इनमें से कुछ व्रत तो आसान होते हैं लेकिन कुछ व्रत काफी कठिन होते हैं। हालांकि इन कठिन व्रतों के फल भी बेहद शुभ माने जाते हैं। ऐसा ही एक व्रत है चंद्रायण व्रत जो कि बहुत ही कठिन और उतना ही फलदायी भी माना जाता है। आज हम आपको इस लेख में इसी व्रत के बारे में बताने वाले हैं और साथ ही व्रत से होने वाले फायदे तथा व्रत के दौरान पालन किए जाने वाले नियमों की भी जानकारी आपको इस लेख में मिल जाएगी।
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चंद्रायण व्रत
चंद्रायण व्रत के बारे में आम लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। वजह यही है कि यह व्रत है काफी कठिन लेकिन इसके शुभ फलों की वजह से आज भी कई लोग इस व्रत को करते हैं। पुराने समय में ऋषि मुनि विशेष तौर पर चंद्रायण व्रत रखते थे। मान्यता है कि इस व्रत से शरीर तो रोगमुक्त होता ही है, इसके साथ साथ इस जन्म में किए गए सभी पापों का प्रायश्चित भी होता है। यही वजह है कि इसे कई लोग साधना का दर्जा भी देते हैं और चंद्रायण व्रत की जगह चंद्रायण साधना भी कहते हैं।
चंद्रायण व्रत की शुरुआत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इस व्रत का सीधा संबंध चंद्रमा की कलाओं से होता है। इस व्रत के दौरान भोजन को 16 कौर के हिस्से में बांटा जाता है और फिर व्रत के पहले दिन केवल एक कौर भोजन ग्रहण करता है। इसी तरह व्रती व्रत के दूसरे दिन दो कौर भोजन ग्रहण करता है और यह प्रक्रिया निरंतर सोलह दिनों तक चलती रहती है। इस तरह से व्रती पूर्णिमा तिथि तक सोलह कौर भोजन कर लेता है जो कि उसका सम्पूर्ण भोजन होता है।
शुक्ल पक्ष के बाद कृष्ण पक्ष की शुरुआत होती है। अब फिर से सम्पूर्ण भोजन को सोलह कौर के हिस्सों में बांटा जाता है और हर दिन एक कौर भोजन कम किया जाता है। इस तरह अमावस्या के दिन व्रती उपवास रखता है और इसके साथ ही यह व्रत या फिर कहें तो साधना पूरी हो जाती है।
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चंद्रायण व्रत के नियम
पहला नियम : चंद्रायण व्रत करने वाले जातकों को इस व्रत के दौरान पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इस दौरान मन में दूसरों के प्रति कोई बुरा ख्याल नहीं रखना चाहिए और न ही किसी को हानि पहुंचाने के बारे में सोचना चाहिए।
दूसरा नियम : चंद्रायण व्रत के दौरान हर रोज 40 माला से या फिर कम से कम 11 माला से गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। व्रत के खत्म होते होते आपके सवा लाख गायत्री मंत्र के अनुष्ठान पूरे हो जाने चाहिए।
तीसरा नियम : व्रत के दौरान नियमित रूप से स्वाध्याय, गायत्री पूजा, यज्ञ, संध्या पूजन आदि करना चाहिए। साथ ही इस दौरान हर रोज व्रती को जमीन पर सोना चाहिए।
चौथा नियम : व्रत के खत्म होने के बाद व्रती को यज्ञ जरूर करना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन गरीब व जरूरतमंद लोगों को दान जरूर करना चाहिए।
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