भैया पंचमी: जानें व्रत विधि और कथा का महत्व

भैया पंचमी को भैया पांचम भी कहा जाता है। भैया पांचम का व्रत सावन माह में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ता है। हालाँकि आँचलिक विविधता के कारण यह पर्व कहीं-कहीं पर सावन माह में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भी मनाया जाता है। यह पर्व भारत सहित नेपाल के अलावा कई अन्य देशों में हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाता है। इस दिन बहनों के द्वारा भैया पांचे व्रत रखा जाता है। इस ख़ास मौक़े पर मंदिरों में बहिनों के द्वारा वृक्षों की पूजा तथा कलावा बांधकर अपने भाई के स्वस्थ्य जीवन और लंबी उम्र की कामना की जाती हैं।

भैया पांचम व्रत विधि

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है।
  • एक पात्र में रात के भीगे हुए चने, मोठ, पैसे, हल्दी, कच्चा दूध मिलाकर जल से भरा हुआ लोटा लेकर एक पौधे पास जाते हैं
  • पौधे की किसी एक टहनी पर जल चढ़ाया जाता है और हल्दी का तिलक लगाया जाता है।
  • घर के सदस्यों को भी हल्दी का टीका लगाया जाता है।
  • लोटे पर कलावा बांधकर उस पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है।
  • भैया पाँचे के दिन कहानी सुनाने का प्रचलन है।
  • कहानी सुनते हुए हाथ में मोठ चने लेकर छीलते रहते हैं और कहानी सुनने के बाद मोठ चने वहीं चढ़ा दिए जाते हैं।
  • इसके पश्चात् सूर्य देव को जल चढ़ाया जाता है।
  • वहीं घर में दरवाजे पर भी स्वास्तिक का प्रतीक बनाया जाता है।
  • इसके बाद पानी लेकर मोठ, चने, फल, मिठाई, रुपये सब एक थाली में रखकर सीधा निकालते हैं।
  • यह सीधा सास, जेठानी, ननद आदि को दिया जाता है।
  • यदि उपरोक्त में से कोई न हो तो यह सीधा किसी बुजुर्ग महिला को भी दिया जा सकता है।

भैया पाँचे की व्रत कथा

कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक गाँव में एक गरीब माँ बेटे रहते थे। भैया पाँचे के दौरान बेटे ने अपनी माँ से कहा कि “माँ मै अपनी बहिन के घर राखी बंधवाने जा रहा हूँ।” माँ ने कहा कि “बेटा हमारे पास तो कुछ भी नही है हम क्या देंगे।” बेटे ने कहा “लकड़ी बेचकर जो मिलता है वह पर्याप्त है।“ यह कहकर बेटा अपनी बहिन के घर रवाना हो गया। वह अपनी बहिन के घर पहुँचता है। बहिन भाई को देख लेती है लेकिन उस समय वह सूत कात रही थी। सूत का तार बार बार टूट रहा था। बहिन तार जोड़ने में व्यस्त थी। भाई ने सोचा, लगता है कि मेरी बहिन को मेरे आने से खुशी नहीं हुई इसलिए वह वापस जाने लगा।

इतने में बहिन के सुत का तार जुड़ गया। वह दौडकर भाई को रोकती है। बहिन कहती है “भाई, मै तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी लेकिन सूत का तार बार बार टूट रहा था इसी वजह से मै तुम्हारा स्वागत नही कर पाई।” बहिन ने भाई को पाटे पर बिठाया और उसकी कलाई पर राखी बांधी। बहिन अपनी पड़ोसन के पास गयी और बोली कि “मेरा भाई आया है। मै उसके स्वागत के लिए क्या करू ?“ पड़ोसन उससे इर्ष्या करती थी।

उसने कहा “तेल से पोंछा लगाना और घी में चावल बनाना।” बहिन भाई के आने में खुशी से पागल हो रही थी। उसने वैसा ही किया जैसा पड़ोसन ने बताया। बहुत देर हो गई भाई ने बहिन से कहा कि “अब तो बहुत भूख लग रही है।” बहिन ने कहा कि “भैया इतनी देर से चावल पक ही नही रहे।“ जब भाई को यह मालूम हुआ कि चावल घी में पक रहे हैं तो उसने कहा कि “चावल घी में कभी नही पकेंगे।“ भाई के कहने पर बहिन ने दूध लाकर खीर बनाई।

बहिन ने भाई को बहुत से पकवान बनाकर खिलाये। भाई ने बहिन से कहा कि “सुबह अँधेरे में ही मैं वापस घर चला जाऊंगा।“ बहिन सुबह जल्दी उठकर गेहूँ पीसती है और अपने भाई के लिए लड्डू बनाती है। बहिन ने भाई के लिए लड्डू बांधे और भाई रवाना हो गया। भाई के रवाना होने के बाद बहिन के बच्चे भी अपनी माँ से लड्डू मांगते है। वह देखती है कि लड्डूओं में सांप पिस गया। वह दौडकर अपने भाई के पीछे भागती है।

जब वह अपने भाई के पास पहुँचती है और कहती है “भाई वे लड्डू मत खान क्योंकि उसमें साँप पिस गया है।” तब भाई ने कहा “बहिन जब मैं पेड़ के नीचे आराम कर रहा था तो उन लड्डुओं को कोई चोर ले गया।” हालाँकि चोर ने भाई-बहिन की ये बात सुन ली। चोर को अपनी चोरी का पाश्चाताप हुआ। साथ ही उसने उस बहिन से कहा, “हे बहिन तुमने मेरी जान बचाई है। आज से तुम मेरी धर्म बहिन हो।”