एस्ट्रोसेज में अब आरूढ़, उपग्रह व भिन्नाष्टकवर्ग भी, जानें क्या है ये नए फ़ीचर!

अब पाएँ आरूढ़ लग्न कुंडली और उपग्रह कुंडली, वह भी एस्ट्रोसेज क्लाउड में !

आरूढ़ कुंडली – लग्न पद, उपपद आदि

एस्ट्रोसेज डॉट कॉम सदैव से ही ज्योतिष के क्षेत्र में बेहतर काम करता रहा है और ज्योतिष जिज्ञासुओं के लिए भी नए-नए फ़ीचर लेकर प्रस्तुत होता रहा है। इसी क्रम में एस्ट्रोसेज क्लाउड में अब आरूढ़ लग्न कुंडली भी उपलब्ध करवाई गई है। आरूढ़ कुंडली विशेष रूप से जैमिनी पद्धति का प्रयोग करने वाले ज्योतिषियों द्वारा प्रयोग की जाती है और ज्योतिष फल कथन में सटीकता के लिए इसका प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण परिणाम प्रदान करता है। लग्न कुंडली जिस प्रकार हमारे शरीर और हमारे बारे में बताती है, उसी प्रकार आरूढ़ कुंडली यह बताती है कि समाज में हमारी क्या छवि रहने वाली है। इसका अध्ययन भी लग्न कुंडली की तरह ही किया जाता है और इस पर ग्रहों का प्रभाव उसी प्रकार फलादेश करने में सफलता प्रदान करता है, जैसे कि लग्न कुंडली में।

आरूढ़ पद की गणना

आरूढ़ लग्न कुंडली की गणना करना अत्यंत ही सरल है। इसके अंतर्गत लग्न से सभी 12 भावों के लिए गणना की जाती है और उसी के अनुसार उनको अंकित किया जाता है।  आरूढ़ लग्न को पद लग्न या अरुधा लग्न भी कहा जाता है। इसकी गणना के लिए जिस भाव की गणना की जाती है, उससे उस राशि के स्वामी की स्थिति को जानकर उस ग्रह द्वारा अवस्थित राशि से आगे गणना प्रारंभ की जाती है। उदाहरण के लिए ऊपर दी हुई कुंडली में सिंह लग्न है। सिंह लग्न का स्वामी सूर्य होता है, जो कि लग्न से तीसरे भाव में तुला राशि में उपस्थित है। इसलिए आरूढ़ लग्न की गणना करते हुए सूर्य से तीसरे भाव तक गणना करनी पड़ेगी। अर्थात तुला से गणना करते हुए हम देखेंगे – तुला, वृश्चिक, धनु अर्थात धनु राशि ही आरूढ़ लग्न बनेगा, जिसे ए एल (AL) के रूप में अंकित किया गया है।

इसी प्रकार दूसरे भाव की गणना भी की जाती है। इसके लिए दूसरे भाव का स्वामी बुध है, जो अपने से तीसरी राशि वृश्चिक में विराजमान है। इसलिए दूसरे भाव के लिए द्वितीय पद की गणना के लिए बुध द्वारा अधिष्ठित राशि से तीसरे भाव तक जाएगी, जोकि मकर राशि में छठे भाव में आता है। इसलिए द्वितीय पद को A2 के नाम से छठे भाव में दर्शाया गया है। इसी प्रकार सभी भावों के लिए गणना की जाती है। इसी प्रकार कुंडली के सभी भावों  का आरूढ़ ज्ञात किया जाता है। बारहवाँ भाव भी काफी महत्वपूर्ण होता है, जिसे उप-पद भी कहा जाता है। इस कुंडली में उप-पद को UL के रूप में दर्शाया गया है।

आरूढ़ लग्न कुंडली की गणना के कुछ अपवाद

आरूढ़ लग्न कुंडली की गणना में कुछ अपवाद भी सामने आते हैं। जैसा कि हमने आपको बताया है कि यह आरूढ़ लग्न कुंडली एक तरीके से उस शीशे का काम करती है, जो हमारी छवि को दर्शाता है। ऐसे में लग्न और सप्तम भाव में आरूढ़ लग्न को नहीं लिया जाता और यदि आरूढ़ लग्न, लग्न अथवा सप्तम भाव में आता है, तो वहीं से दशम भाव में उसकी स्थिति अंकित की जाती है।

उदाहरण के लिए दी गई उपरोक्त कुंडली में लग्न का स्वामी शनि है, जो कि लग्न से दशम भाव में विराजमान है। अब यहां से गणना करने पर अरुधा लग्न या आरूढ़ लग्न सप्तम भाव में आएगा, जो कि अपवाद के रूप में माना जाता है। इसलिए हम सप्तम भाव से दशम भाव को आरूढ़ लग्न मानेंगे और इसी वजह से इस कुंडली में चतुर्थ भाव (सप्तम भाव से दशम भाव) में आरूढ़ लग्न लिया गया है, जिसे AL के रूप में दर्शाया गया है। एक अन्य उदाहरण भी इसी कुंडली में उपस्थित है। जैसे चतुर्थ भाव में मेष राशि है, इसका पद गिनने के लिए मंगल की स्थिति को देखेंगे। मंगल चूंकि इसी राशि में स्थित है, तो यही चतुर्थ पद होना चाहिए, लेकिन अपवाद के रूप में हम इससे दशम भाव को चतुर्थ पद लेंगे। इसी वजह से मकर राशि (चतुर्थ भाव से दशम भाव) में A4 लिखा गया है।

इस प्रकार आरूढ़ लग्न कुंडली को समझा जा सकता है और इसके आधार पर अच्छी से अच्छी भविष्यवाणियां की जा सकती हैं।

उपग्रह कुण्डली

ज्योतिष में फल कथन में अप्रकाशीय छाया ग्रहों को भी मान्यता प्रदान की गई है, जिन्हें उपग्रह के नाम से जाना जाता है। मंत्रेश्वर जी द्वारा रचित फलदीपिका के 25 वें अध्याय में भी सभी उपग्रहों का उल्लेख किया गया है। बहुत से ज्योतिषी अपनी फल विवेचन क्षमता का प्रयोग करते हुए इन उपग्रहों को भी अवश्य ध्यान पूर्वक देखते हैं और उनकी स्थिति के आधार पर भी फल कथन करते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने एस्ट्रोसेज क्लाउड में अब उपग्रह कुंडली भी एक नए फ़ीचर के रूप में जोड़ दी है, जिसका प्रयोग आप कर सकते हैं।

इन उपग्रहों के स्वामी मुख्य ग्रहों को माना जाता है और यह भी माना जाता है कि ये चुपचाप अपना फल भी प्रदान करते हैं। आमतौर पर उपग्रह अशुभ फल प्रदान करने वाले माने जाते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियों में यह शुभ फल भी प्रदान करते हैं।  इसलिए ज्योतिष में फल कथन के समय उपग्रहों को भी ध्यान पूर्वक देखना चाहिए।

भिन्नाष्टकवर्ग

उपरोक्त दो कुंडलियों के अतिरिक्त हमने एक नई कुंडली प्रस्तार भिन्नाष्टकवर्ग का भी समायोजन किया है। वैदिक ज्योतिष के प्रणेता महर्षि पराशर ने अपने शिष्य मैत्रेय को अष्टक वर्ग पद्धति का ज्ञान दिया। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र के उत्तर खंड के अध्याय 1 के श्लोक संख्या 19 से 74 के मध्य सभी ग्रहों के विभिन्न भावों में रेखा और बिंदुओं के बारे में बताया गया है। वास्तव में रेखा और बिंदु अष्टक वर्ग पद्धति में ही अपनाए जाते हैं,  जिसमें कोई ग्रह शुभ रेखा अथवा अशुभ बिंदु प्रदान करता है और उसी के आधार पर उसकी शक्ति और बला-बल का निर्णय किया जा सकता है। इस प्रकार प्रत्येक ग्रह के द्वारा अनुकूल रेखा अर्थात शुभ रेखा और अशुभ बिंदु दिए जाते हैं, जिससे प्रत्येक ग्रह का प्रस्तार पता चलता है और इस प्रकार प्रस्तार अष्टक वर्ग कुंडली बनती है।

प्रस्तार अष्टक वर्ग कुंडली की गणना

प्रत्येक ग्रह कुंडली के प्रत्येक भाव के लिए कुछ शुभ रेखा अथवा अशुभ बिंदु प्रदान करता है। उसके आधार पर जाना जाता है कि किस ग्रह ने किस भाव में कितने बिंदु और रेखा दिए हैं। यदि ग्रह ने 0 से 3 अंक दिए हैं, तो उसका फल अशुभ माना जाता है। 4 अंक होने पर सम प्रभाव अर्थात ना अधिक शुभ ना अधिक अशुभ और जब ग्रह 5 या उससे अधिक अंक प्रदान करता है, तो शुभ माना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक ग्रह की एक कुंडली बनती है, जैसे सूर्य का प्रस्तार, चंद्रमा का प्रस्तार, मंगल का प्रस्तार, बुध का प्रस्तार, बृहस्पति का प्रस्तार, शुक्र का प्रस्तार, शनि का प्रस्तार और उसके बाद इन सभी को मिलाकर एक सर्वाष्टकवर्ग बनाया जाता है, जिससे किसी भी भाव में कुल बिंदु देखे जाते हैं और उसके आधार पर पता लगाया जाता है कि फल अनुकूल मिलेगा अथवा प्रतिकूल। जब संबंधित ग्रह की दशा मिलती है अथवा ग्रह का गोचर होता है, तब बिंदुओं और अंकों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रस्तार अष्टकवर्ग कुंडली की सहायता से बहुत ही सरलता से फल कथन किया जा सकता है।

एस्ट्रोसेज द्वारा प्रदान की गई प्रस्तार अष्टक वर्ग कुंडली में प्रत्येक ग्रह का प्रस्तार दिया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि कोई ग्रह किस भाव के लिए किस प्रकार का सूचक है। अर्थात किस भाव के लिए शुभ, किस भाव के लिए अशुभ और किस भाव के लिए मिश्रित फल देगा। इसके साथ ही उस ग्रह के मुख्य कार्यकत्व भी प्रदान किए गए हैं। इसकी सहायता से विद्वत ज्योतिषी गण किसी भी जातक की जन्म कुंडली के साथ अन्य कुंडलियों का विश्लेषण करते हुए अनुकूल फल कथन बड़ी ही सटीकता के साथ कर सकते हैं।

उदाहरण के लिये आप निम्नलिखित कुंडली का अवलोकन कर सकते हैं:

भिन्नाष्टकवर्ग   

इस सूर्य के प्रस्तार में आप देख सकते हैं कि सूर्य ने मेष राशि में 7 शुभ अंक प्रदान किए हैं, वहीं वृषभ राशि में 4 और मिथुन राशि में 3 अंक प्रदान किया है। इसी प्रकार सभी अंकों को आप देख सकते हैं। किसके लिए सूर्य का फल शुभ, किसके लिए अशुभ और किसके लिए मिश्रित रहेगा, यह भी जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य के मुख्य कार्यकत्व पिता, सरकार और स्वास्थ्य भी इसमें बताए गए हैं। इस प्रकार आप प्रस्तार अष्टक वर्ग कुंडली की सहायता से भी फल कथन कर सकते हैं और कम समय में अधिक अच्छा फलादेश कर सकते हैं।

हम आशा करते हैं कि एस्ट्रोसेज क्लाउड में इन तीनों कुंडलियों का समावेश आपके लिए काफी लाभदायक साबित होगा।