सनातन धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने एक अमावस्या की तिथि पड़ती है। फिलहाल आषाढ़ महीना चल रहा है इसलिए इस महीने में पड़ने वाली अमावस्या को आषाढ़ी अमावस्या या फिर आषाढ़ अमावस्या भी कहते हैं।
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ऐसे में आज हम आपको इस लेख में आषाढ़ महीने में पड़ने वाली अमावस्या की तिथि, महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि की जानकारी देने वाले हैं।
कब है आषाढ़ अमावस्या?
साल 2021 में आषाढ़ महीने की अमावस्या तिथि 09 जुलाई को शुक्रवार के दिन पड़ रही है। 09 जुलाई को अमावस्या तिथि सुबह 05 बजकर 18 मिनट पर प्रारंभ हो जाएगी और इसका समापन अगले दिन यानी कि 10 जुलाई को शनिवार की सुबह 06 बजकर 48 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में आषाढ़ अमावस्या का व्रत 09 जुलाई को रखा जाएगा और पारण 10 जुलाई को किया जाएगा।
आइये अब आपको आषाढ़ अमावस्या का महत्व बता देते हैं।
आषाढ़ अमावस्या का महत्व क्या है?
आषाढ़ महीने में पड़ने वाली अमावस्या को वर्षा ऋतु के शुरुआत के तौर पर देखा जाता है इस वजह से इस अमावस्या को हलहारिणी अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन देश के किसान अपने हल और खेती-किसानी से जुड़े औज़ार, मशीन व सामान की पूजा करते हैं। सनातन धर्म में मान्यता है कि अमावस्या के दिन जो भी जातक पवित्र नदियों में स्नान करता है, उसे जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र से मुक्ति मिल जाती है। अमावस्या की तिथि को पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और जातक का जीवन खुशहाल होता है। इस दिन दान करने से पुण्य फल प्राप्त होता है।
आइये अब आपको आषाढ़ अमावस्या की पूजा विधि बता देते हैं।
आषाढ़ अमावस्या पूजा विधि
अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठें। इस दिन जल्दी उठने के बाद पवित्र नदी में स्नान करें। यदि आप कोरोना महामारी की वजह से पवित्र नदियों में स्नान करने में असमर्थ हैं तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें। इसके बाद एक तांबे के पात्र में गंगाजल, लाल पुष्प, अक्षत और लाल चंदन मिलाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें। इसके बाद पितरों की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पितरों का तर्पण और कर्मकांड करें। मुमकिन हो तो इस दिन व्रत रखें। इससे भी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। भगवान विष्णु की पूजा के बाद पूरे दिन फलाहार पर रहते हुए भजन-कीर्तन करें। अगले दिन पारण से पहले गरीब व जरूरतमंद लोगों को दान दें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
चूंकि कोरोना महामारी की वजह से गरीबों को दान देना व ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन करवाना मुश्किल कार्य है। ऐसे में आप गरीबों को दान की जाने वाली वस्तु अलग रख दें और फिर बाद में आप इसका दान कर सकते हैं। इसी तरह अगले दिन भोजन ग्रहण करने से पहले ब्राह्मणों के नाम से भोजन अलग कर दें और उसे किसी मंदिर में दान कर दें।
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